ईएसआईसी चिकित्सा सेवा दुरुस्त करने के लिये जीडीएमओ की जगह विशेषज्ञ फैकल्टी जरूरी

ईएसआईसी चिकित्सा सेवा दुरुस्त करने के लिये जीडीएमओ की जगह विशेषज्ञ फैकल्टी जरूरी
March 03 15:56 2024

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) किसी भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल को चलाने के लिये एक डीन तथा एक चिकित्सा अधीक्षक (एमएस) का होना पहली शर्त होती है। डीन पद के लिये किसी व्यक्ति का मेडिकल कॉलेज में 10 वर्षों तक प्रोफेसर एवं 5 साल तक एचओडी (विभागाध्यक्ष) होना जरूरी है। इसी तरह एमएस पद के लिये भी मेडिकल कॉलेज में कम से कम पांच साल तक प्रोफेसर आवश्यक शर्त है। ये शर्तें मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया जिसे अब नेशनल मेडिकल कमिशन कहा जाने लगा है, द्वारा उस वक्त से लागू हैं जब से मेडिकल शिक्षा आरम्भ हुई है।

अब देश का दुर्भाग्य देखिए कि ईएसआईसी मेडिकल कॉलेजों में इन उच्च प्रशिक्षित मेडिकल विशेषज्ञों की नियुक्ति व उनके द्वारा किये जाने वाले काम का अवलोकन वह मेडिकल कमिश्रर मेडिकल एजुकेशन (एमसीएमई) दीपिका गोविल करती है जो खुद जीडीएमओ यानी कि साधारण डॉक्टर (एमबीबीएस)है। जाहिर है इतने कम पढ़े-लिखे डॅाक्टरों द्वारा उक्त कार्य कराया जाना निहायत ही मूर्खतापूर्ण है। यह काम ठीक वैसा ही है जैसे कि एक दसवीं पास आदमी किसी कॉलेज में नियुक्त होने वाले प्रोफेसरों का चयन एवं उनके काम का अवलोकन करे।

मोर्चा के गतांक में विस्तार से बताया गया था कि समय-समय पर आने वाले केन्द्रीय श्रम मंत्रियों एवं अन्य प्रभावशाली नेताओं ने किस प्रकार अपने-अपने गृहक्षेत्रों में मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल आदि का निर्माण कॉर्पोरेशन फंड से करवाया था। बेशक इन नेताओं ने अपने संकुचित दृष्टिकोण के चलते अपनी सत्ता का प्रयोग केवल अपने गृहक्षेत्र तक ही सीमित रखा था; उन्होंने कभी यह सोचने का प्रयास नहीं किया था कि उनके न रहने पर इन संस्थानों की कैसी दुर्दशा होने वाली है। यदि उनमें जरा भी दूर-दृष्टि होने के साथ-साथ बहुजन हिताय में रुचि होती तो वे ईएसआई कॉर्पोरेशन की प्रशासनिक व्यवस्था का व्यापक अध्ययन करके इसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकते थे, जो उन्होंने नहीं किया।

दरअसल 1952 में लागू हुई ईएसआई योजना में उस वक्त की आवश्यकताओं के अनुसार केवल साधारण डॉक्टरों से ही काम चलाया गया था। जिसका डायरेक्टर जनरल एक विशेषज्ञ डॉक्टर को बनाया गया था, लेकिन बहुत जल्दी इस पोस्ट पर आईएएस का कब्जा हो गया। समय के साथ-साथ इसका स्वरूप एवं आवश्यकताएं बदलती गईं। इसमें बड़े अस्पतालों, विशेषज्ञ डॉक्टरों तथा होते-होते मेडिकल कॉलेजों तक की आवश्यकता होने लगी। समय के साथ-साथ होने वाले इन बदलावों को नज़रअंदाज करते हुए कॉर्पोरेशन के प्रशासनिक ढांचे में आवश्यक बदलाव नहीं किये गये। इसी के चलते आज उच्च-पदासीन साधारण एमबीबीएस डॉक्टर अपने से कहीं अधिक पढ़े-लिखे विशेषज्ञ मेडिकल प्रोफेसरों एवं डीन आदि के ऊपर अ$फसरी झाड़ते हैं। न केवल अ$फसरी झाड़ते हैं बल्कि उनके द्वारा सुझाये जाने वाले हर काम का विरोध करना अपना अधिकार समझते हैं। उच्चतम पदों पर विराजमान हो चुके इन मूर्ख अ$फसरों को कोई भी बात समझाना किसी भी डीन के लिये भैंस के आगे बीन बजाने से अधिक कुछ नहीं होता।

किसी भी अस्पताल को चलाने का उत्तरदायित्व एमएस पर होता है। इसलिये तमाम वित्तीय शक्तियां एमएस के पास ही रखी गईं। मेडिकल कॉलेज के अस्पतालोंंंंंं में एमएस पद पर नियुक्ति की आवश्यक शर्त यानी कि पांच साल की प्रोफेसरी को नज़रअंदाज करते हुए कॉर्पाेरेशन पर काबिज जीडीएमओ गिरोह ने अपने ही गिरोह के साधारण डॉक्टरों को एमएस बनाकर बैठाए रखा। यह सब इसलिये किया जाता रहा कि वित्तीय शक्तियां अपने गिरोह से बाहर न जाएं। विदित है कि किसी भी अस्पताल को सही ढंग से चलाने यानी कि आने वाले तमाम मरीज़ों को बेहतर चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिये आवश्यक साजो सामान की खरीदारी करनी होती है। जीडीएमओ गिरोह का एमएस ये खरीदारियां न करके कॉर्पोरेशन के खर्च में बचत करके खजाने में बढ़ोत्तरी करता है। इसके परिणामस्वरूप इलाज से वंचित मरीज़ों को दायें-बायें भटकाया जाता है। एनएमसी के अत्यधिक दबाव पडऩे पर बीते वर्ष फरीदाबाद तथा अन्य मेडिकल कॉलेजों मेें एमएस पद पर वरिष्ठ प्रोफेसरों को नियुक्त किया गया है जबकि यह संस्थान 2015 से चालू है।

लेकिन बसई दारापुर दिल्ली और बंंबई अस्पताल का दुर्भाग्य है जहां अभी भी एमएस के पद पर जीडीएमओ का ही कब्जा है। इसी के चलते दिल्ली, बंबई के इन दोनों संस्थानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। केन्द्रीय श्रममंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव ने बीते करीब तीन वर्षों में भले ही कुछ भी कारगर न किया हो इसके बावजूद इस चला चली की बेला में यदि वे कॉर्पोरेशन की प्रशासनिक व्यवस्था में यथोचित सुधार कर दें तो देश भर के बीमाकृत मज़दूरों के लिये एक बड़ी राहत होगी। इसके लिये उन्हें चाहिए कि बतौर शुरूआत मुख्यालय में काबिज तमाम जीडीएमओ अफसरों को निकाल-बाहर करें तथा उनके स्थान पर डीन एवं डीन स्तर से ऊपर के लोगों को मुख्यालय की कमान सौंपें।

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Mazdoor Morcha
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