ईएसआई मेडिकल कॉलेज: पांव जंजीर से बंधे हैं $िफर भी ऊंची उड़ान जारी

ईएसआई मेडिकल कॉलेज: पांव जंजीर  से बंधे हैं $िफर भी ऊंची उड़ान जारी
February 09 01:18 2023

रीदाबाद (म.मो.) एनएच तीन स्थित ईएसआई मेडिकल कॉलेज का जन्म कोई आसानी से नहीं हो गया था। ईएसआई कॉर्पोरेशन मुख्यालय (नई दिल्ली) में बैठे अफसरों के कड़े विरोध के चलते बड़ी मुश्किल से यह मेडिकल कॉलेज 2015 चालू हो पाया था। चालू होने के बावजूद भी इसके विरोधियों ने इसके संचालन में तरह-तरह की रुकावटें खड़ी करने का कभी कोई मौका नहीं गंवाया। आज भी उस लॉबी के अफसर टांग खींचने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहते। लेकिन उनके ऊपर बैठे समझदार आईएएस अफसरों ने उनकी नकेल कस कर काफी हद तक थाम रखा है।

सुपर-स्पेशलिटी चिकित्सा क्षेत्र में बढ़ते इस संस्थान को डिस्पेंसरी स्तर पर देखे जा सकने वाले मरीजों को भी देखना पड़ रहा है क्योंकि फरीदाबाद में मौजूद ईएसआई की 15 डिस्पेंसरियां व एक अस्पताल लगभग पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। इसके चलते या प्रति दिन ओपीडी में चार से साढे चार हजार तक मरीज़ आते हैं। 510 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में 700 से अधिक मरीज़ दाखिल रहते हैं। कार्यभार क्षमता से डेढ़ गुणा बढ़ चुका है जबकि स्वीकृत स्टाफ के आधे से भी अधिक पद खाली पड़े हैं। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि मरीजों व कार्यरत स्टाफ को कैसी-कैसी कठिनाईयों से आये दिन दो-चार होना पड़ता है। नासमझ मरीजों को इसके लिये सरकार के बजाय कार्यरत स्टाफ ही दोषी दिखाई देता है। जबकि स्टाफ खुद दुखी है।

बीते करीब डेढ साल से सुपर-स्पेशलिटी चिकित्सा के लिये 500 बेड की एक अलग बिल्डिंग बनाने की बात तो चल रही है लेकिन, धरातल पर अभी तक कुछ भी होता नजर नहीं हो रहा है। यह तो तब है जब कि मज़दूरों द्वारा दिये जा रहे अंशदान से ईएसआई कार्पोरेशन का खजाना लबालब भरा पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक इसमें डेढ लाख करोड़ से अधिक रुपया पड़ा है। इस रुपये को, नियम विरुद्ध, शेयर बाजार में लगा कर डुबोने पर तो चर्चा हो रही है लेकिन जहां आवश्यकता है वहां खर्च नहीं किया जा रहा।

प्रति वर्ष भर्ती होने वाले 100 एमबीबीएस छात्रों के लिये बने इस कॉलेज एवं हॉस्टल में अब 150 छात्र भर्ती किये जा रहे हैं। इसके अलावा 19 विधाओं में 100 से अधिक पीजी (स्नातकोत्तर) छात्र भी आ चुके हैं। ये छात्र होने के साथ-साथ डॉक्टर भी होते हैं। ये मरीजों को देखने के साथ-साथ पढ़ाई भी करते हैं। इन पर दोहरा कार्यभार होने के चलते, इन्हें अस्पताल परिसर में ही रहना होता है। इसके लिये हॉस्टल होना लाजमी है। लेकिन बीते दो साल से हॉस्टल की इस भयंकर कमी को दूर करने के लिये कॉर्पोरेशन मुख्यालय कुछ भी करता नजर नहीं आ रहा है। हां, संस्थान से करीब 10 किलो मीटर दूर सूरजकुंड रोड पर कुछ फ्लैट अवश्य किराये पर लेकर अस्थायी हॉस्टल में परिवर्तित कर दिये गये हैं। वहां से छात्रों को लाने-ले जाने के लिये दो बसों की भी व्यवस्था कर रखी है। जाहिर है इस व्यवस्था से छात्रों का समय व कार्पोरेशन का करोड़ों रुपया बर्बाद हो रहा है। हो रहा है तो होता रहे परन्तु नये हॉस्टल का निर्माण नहीं करेंगे।

ईएसआई कार्पोरेशन मुख्यालय एवं श्रम मंत्रालय की बेरुखी के चलते आज तक एक ग्रामीण व एक शहरी ट्रेनिंग सेंटर नहीं बन पाये जो किसी भी मेडिकल कॉलेज के लिये जरूरी होते हैं। इन सेंटरों में  एक-एक माह के लिये एमबीबीएस पास करने वाले डॉक्टरों को नियुक्त किया जाता है। ये चौबीसों घंटे केन्द्र में मौजूद रहते हैं तथा इनके साथ आवश्यकतानुसार एक-एक-दो-दो वरिष्ठ डॉक्टर भी रहते हैं। इसके अलावा ये सीधे तौर पर अपने संस्थान से भी जुड़े रहते हैं। आवश्यकता पडऩे पर मरीज़ को तुरन्त संस्थान तक ले जाने के लिये एक-एक एम्बुलेंस भी इनके पास रहती है।

लगातार विस्तृत हो रहे संस्थान को आगे बढने के लिये अतिरिक्त जमीन की आवश्यकता होना स्वाभाविक है। लेकिन मुख्यालय एवं मंत्रालय इस ओर ध्यान देने की कतई कोई आवश्यकता महसूस कर नहीं रहे। विदित है कि संस्थान के पड़ोस में स्थित बीके अस्पताल व दशहरा ग्राऊंड के आस-पास ज़मीन की कोई कमी नहीं है। इस ज़मीन पर झोपड़पट्टी बसाने की अपेक्षा इसे संस्थान को देकर इसकी विस्तार योजनाओं को आसान किया जा सकता है।

संस्थान के उत्कृष्ट कार्यों एवं उपलब्धियों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जहां चाह वहां राह होती है। संस्थान के डीन डॉ. असीम दास के नेतृत्व में समर्पित तमाम फेकल्टी ने हर तरह की रुकावटों से जूझते हुए एक से बढक़र एक उत्कृष्ट सेवाओं को अंजाम दिया है। सेवाओं का जो स्तर इस संस्थान में मौजूद है वह हरियाणा सरकार के 60 साल पुराने रोहतक मेडिकल कॉलेज में भी नहीं है, अन्य मेडिकल कॉलेजो में  तो होना ही क्या था। उत्कृष्टता की ओर बढ़ते इस संस्थान को प्रोत्साहित करने की अपेक्षा हरियाणा सरकार तथा रोहतक मेडिकल कॉलेज के अधिकारी इसकी टांग खींचने का कोई अवसर छोडऩा नहीं चाहते। संस्थान ने आँख  प्रत्यारोपण शुरु करने की पूरी तैयारी कर ली है। इसका निरीक्षण करने के लिये रोहतक मेडिकल कॉलेज से आये निरीक्षक ने इस पर रोक लगा दी। खुद कुछ कर नहीं सकते कोई और करना चाहे तो करने नहीं देते। यही है सरकारी संस्थानों का रवैया।

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Mazdoor Morcha
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