फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) एक के बाद एक सफलता की सीढिय़ां चढ़ते हुए, एनएच तीन स्थित ईएसआई मेडिकल कॉलेज- अस्पताल शीघ्र ही किडनी प्रत्यारोपण जैसा महत्वपूर्ण काम करने को तैयार हो चुका है। बीते माह नेशनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट अथॉरिटी (नोटा) ने इस संस्थान का बारीकी से निरीक्षण करने के पश्चात इसकी स्वीकृति प्रदान कर दी थी। इससे पहले भी नोटा की टीम ने यहां का निरीक्षण करके कुछ खामियों की ओर संस्थान का ध्यान आकृष्ट किया था जिन्हें यहां की मेहनती व लगनशील फैकल्टी ने दूर करके नोटा को पुन: आमंत्रित किया था।
नियमानुसार नोटा की सिफारिश पर हरियाणा सरकार द्वारा इसके लिए लाइसेंस जारी करने का प्रावधान है। अब हरियाणा सरकार के पास तो ऐसा कुछ है नहीं जो नोटा के निरीक्षण से बढक़र इस संस्थान की जांच कर सके। इस सरकार के पास ले-दे कर कुछ है तो वह है रोहतक मेडिकल कॉलेज जिसे यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया गया है। दर्जा भले ही यूनिवर्सिटी का दे दिया गया हो लेकिन कामकाज एवं उत्कृष्टता के मामले में रोहतक का यह संस्थान ईएसआई मेडिकल कॉलेज के सामने कहीं नहीं ठहर पाता। रोहतक से आने वाली टीम के सदस्य अपनी इसी हीनभावना से ग्रस्त होकर सदैव ईएसआई मेडिकल कॉलेज के रास्ते में रोड़े अटकाने का काम करते रहे हैं। चाहे ब्लड बैंक का मामला रहा हो या आई बैंक का या फिर कैथ लैब का या कोई भी काम जब भी इस संस्थान ने करना चाहा हो, रोहतक की टीम ने सदैव अड़ंगे लगाकर ही अपने अहम की संतुष्टि करने का प्रयास किया है।
और तो और उन्हें यहां पर पीजी की बढ़ती सीटों से भी तकलीफ रहती है क्योंकि जो काम रोहतक वाले बीते साठ साल में नहीं कर पाए वे सभी काम ये संस्थान अपने छोटे से यानी सात साल के कार्यकाल में ही करके दिखा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) द्वारा पीजी सीटों की संख्या बढ़ाने तथा डीएम के लिए स्वीकृ़ति प्रदान करने के बावजूद रोहतक वालों ने पूरा जोर इन सीटों की बढ़ोतरी को रोकने पर लगा दिया, लेकिन इसके बावजूूद फैकल्टी एवं डीन के प्रयासों द्वारा बढ़ी हुई सीटें इस संस्थान को मिल ही गई।
हालांकि रोहतक मेडिकल कॉलेज की यह दुर्दशा वहां के स्टाफ या प्रबंधन के कारण नहीं बल्कि इस पर सरकारों की कुदृष्टि रहने के कारण हुई है। चाहे किसी भी दल की सरकार सत्ता में आई उसने मेडिकल कॉलेज की उन्नति करने के बजाय अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने, चाटुकारों को पद देने में ज्यादा रुचि दिखाई।
नतीजा हुआ कि मेडिकल कॉलेज को अच्छे और बेतहरी का फैसला लेने वाले डायरेक्टर की जगह सत्ता के दलाल, बेहतरीन फैकल्टी की जगह अयोग्य चाटुकारों को और स्टाफ की जगह नेताओं के भाई-भतीजों को भर लिया गया। किसी भी संस्था की कामयाबी उसके कुशल मानव संसाधनों पर निर्भर करती है जो रोहतक मेडिकल कॉलेज को स्थायी रूप से कभी हासिल नहीं हो सका, यही कारण है कि अच्छा आधारभूत ढांचा व संसाधन होने के बावजूद रोहतक मेडिकल कॉलेज यूनिवर्सिटी तो बना दिया गया लेकिन वांछित परिणाम नहीं दे पाया।
उन्हें इस बात से भी बड़ी भारी तकलीफ हो रही है कि सर्वोत्तम छात्र जो पहले रोहतक मेडिकल कॉलेज को प्राथमिकता देते थे अब ईएसआई मेडिकल कॉलेज को देने लगे हैं। खैर, जो भी हो, उनकी तमाम अड़ंगेबाजियों के बावजूद हरियाणा सरकार ने इस संस्थान को किडनी प्रत्यारोपण का लाइसेंस जारी कर दिया है। हजारों हृदयरोगियों, सैकड़ों कैंसर रोगियों अनेकों बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन वाले मरीजों का सफल इलाज करने के बाद शीघ्र ही किसी न किसी सफल किडनी प्रत्यारोपण की खबर सामने आ सकती है।
किडनी प्रत्यारोपण हो अथवा किसी प्रकार की सुपरस्पेशलिटी चिकित्सा इसका सबसे बड़ा लाभ उन गरीब मज़दूरों को मिलेगा जो सारी उम्र तो ईएसआई को भुगतान करते रहे पर कभी इलाज कराने तक की नौबत तक न आई। लेकिन जब रिटायरमेंट के बाद इस तरह केे सुपरस्पेशलिटी इलाज की जरूरत पड़ी तो ईएसआई वाले पल्ला झाड़ लेते थे। दरअसल, कॉरपोरेशन ने नियम यह बना रखा है कि अपने अस्पताल में तो जो मर्जी इलाज कर दो आप रेफर नहीं करोगे। सर्वविदित है कि अपने अस्पतालों में तो होता ही कुछ नहीं था और रेफर करना नहीं तो मज़दूर ने तो मरना ही मरना था लिहाजा अब उन सेवानिवृत्त मज़दूरों को बड़ी राहत मिलेगी जो पूरी सेवाकाल के दौरान ईएसआई को मोटा भुगतान करते रहे।