फरीदाबाद (म.मो.) सर्वविदित है कि मेडिकल कॉलेज का अस्पताल प्राथमिक सेवायें देने के लिये नहीं होता। यह केवल बड़ी गंभीर तथा अति विशिष्ट चिकित्सा सेवायें देने के लिये होता है। प्राथमिक सेवाओं के लिये जि़ले भर में 15 डिस्पेंसरियां व एक अस्पताल सेक्टर आठ में स्थापित है। इसी गणित के आधार पर यहां 1000-1500 ओपीडी की अपेक्षा की गई थी। इसी सम्भावना के आधार पर यहां दवा वितरण के 5 काऊंटर बनाये गये थे।
दवा लेने के लिये मरीजों को बार-बार दूर-दराज से चलकर यहां न आना पड़े इसके लिये माना गया था कि आवश्यक दवायें तमाम 15 ईएसआई डिस्पेंसरियों से मिल जायेंगी। लेकिन उक्त डिस्पेंसरियों तथा सेक्टर आठ के अस्पताल से संतोषजनक इलाज व दवायें आदि न मिल पाने के कारण सारा बोझ इसी मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर आन पड़ा। मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुये दवा वितरण काऊंटरों की संख्या बढ़ा कर 9 कर दी गई है। इसके बावजूद भी प्रात: साढे आठ बजे से लगी मरीजों की लाइन शाम के सात बजे तक भी खत्म नहीं होती जबकि अस्पताल का समय प्रात: 9 से शाम 4 बजे तक ही होता है। जाहिर है कि ऐसे में दवा वितरण करने वाले स्टाफ का कार्यभार अत्यधिक बढ़ गया है।
काऊंटरों से मरीजों को दवा देने वाले कर्मचारियों की एक और मुसीबत यह है कि बार-बार ऊंचा बोल कर, उन्हें मरीजों को समझाना पड़ता है कि दवाईयां किस-किस टाईम पर कैसे-कैसे लेनी होंगी। कई मरीज़ों को तो यही बात समझाने के लिये कई बार बताना पड़ता है। जाहिर है जो कर्मचारी सुबह से शाम तक 100-150 मरीजों से झख मारेगा उसका गला तो वैसे ही जवाब दे जायेगा और चिड़चिड़ा भी हो जायेगा। ऐसे में अस्पताल प्रशासन अधिक नहीं कुछ तो इन काऊंटरों पर माइक तो लगवा ही सकता है जिससे कि उन्हें ऊंचा न बोलना पड़े। ऐसी सुविधा एम्स के तमाम काऊंटरों के अलावा रेलवे इन्क्वायरी खिडक़ी पर हैं। यह सुविधा दवा वितरण काऊंटरों के अलावा, भीड़ वाले अन्य काऊंटरों पर भी दी जानी चाहिये।