ईएसआई मेडिकल कॉलेज के डीन को सम्मानित करेंगे केंद्रीय श्रम मंत्री

ईएसआई मेडिकल कॉलेज के डीन को सम्मानित करेंगे केंद्रीय श्रम मंत्री
March 04 04:26 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) ईएसआई कॉरपोरेशन द्वारा देश भर में 12 मेडिकल कॉलेज चलाए जा रहे हैं, उनमें से एक एनएच-3 फरीदाबाद में स्थित है। कॉरपोरेशन के तमाम मेडिकल कॉलेजों में से यहां के संस्थान की कार्यशैली एवं गुणवत्ता को सर्वोत्तम पाया गया है। इसे देखते हुए केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव द्वारा यहां के डीन डॉ. असीम दास को दिनांक 24 फरवरी को दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में सम्मानित किया जाएगा।

विदित है कि 2012 में जब इस संस्थान को स्वीकृत किया गया था तो उसी समय डॉ. असीम दास को यहां का डीन तैनात कर दिया गया था। सन 2015 में यहां एमबीबीएस का पहला सत्र शुरू हुआ था। सन 2012 से लेकर 2015 तक यह संस्थान काफी उतार-चढ़ाव से गुजऱता रहा, इस दौरान मुख्यालय में बैठे अधिकारियों का पुरज़ोर प्रयास रहा कि इसे न बनने दिया जाए, और जब बन गया तो प्रयास रहा कि चलने न दिया जाए। इस उहापोह के समय में जहां एक ओर स्थानीय मज़दूर संगठन इस प्रोजेक्ट को कामयाब करने के लिए आंदोलन कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर डॉ. असीम दास ने भी इसे चलवाने में कोई कोर-कसर न छोड़ी थी। डॉ. दास को तो यहां तक भी कहा गया था कि उन्हें जब वेतन मिल रहा है तो चुप करके वेतन लेते रहो और इसे चलाने के लिए क्यों परेशान हो रहे हो। मुख्यालय में बैठे कुछ अफसरों ने इस संस्थान की बनी बनाई इमारत को मुफ्त में ही हरियाणा सरकार को सौंपने का असफल प्रयास किया था। जिसका डटकर विरोध यहां के मज़दूर संगठनों ने किया था।

तमाम तरह के दबावों के बाद जब कॉरपोरेशन को यह लगा कि अब तो मेडिकल कॉलेज चलाना ही पड़ेगा तो उन्होंने इसके लिए लंबा समस खींचने का प्रयास किया लेकिन डॉ. दास के सद्प्रयासों एवं तत्कालीन डीजी दीपक कुमार के सहयोग से 2015 में यहां छात्रों का पहला बैच आ सका। इसके लिए डीजी को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तथा सुप्रीम कोर्ट तक भी जाना पड़ा था। एक बार कॉलेज शुरू हो जाने के बाद इस संस्थान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मुख्यालय में बैठे तमाम धूर्त अधिकारियों के चाल-फरेब के बावजूद यह संस्थान डॉ. दास केे निर्देशन में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्क़ी करता चला गया। यह डॉ. दास के सद्प्रयासों का परिणाम है जो यहां पर 20 विभागों में बीते दो सालों से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई हो रही है और अब तो इससे भी ऊपर डीएम की पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है।

थोड़ी भी समझ रखने वाले लोग समझ सकते हैं कि जिस संस्थान में इस तरह की पढ़ाई होती है वहां आने वाले मरीज़ों को बेहतरीन से बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हो सकती हैं, जो यहां हो रही हैं। इसी का परिणाम है कि कैंसर मरीज़ों का जो बोन मैरो ट्रांसप्लांट दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में नहीं होता था वो यहां होने लगा। रोहतक मेडिकल कॉलेज मे बीते कई वर्षो से लगी जो कैथ लैब हृदय संबंधित रोगों का संतोषजनक उपचार पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पा रही थी, वही कैथ लैब यहां अपने मरीज़ों को बेहतरीन सेवा दे रही है। यहां की कार्यशैली को देखकर रोहतक मेडिकल यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर डॉ. अनिता सक्सेना ने डीन डॉ. दास से पूछा कि क्या वे रोहतक मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को यहां कुछ ट्रेनिंग दे सकेंगे। यह कोई छोटी बात नहीं है, कहां 1960 का बना रोहतक मेडिकल कॉलेज और कहां 2015 में बना यह मेडिकल कॉलेज, यानी कि कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली। कैथ लैब की इसी महारत के चलते यहां कई मरीज़ों के हार्ट के वॉल्व सफलता पूर्वक बदले जा चुके हैं। किडनी प्रत्यारोपण और आंख का कॉर्निया के प्रत्यारोपण का काम भी यहां सफलता पूर्वक किया जा रहा है। नेफ्रोलॉजी में प्रतिदिन 70-80 मरीज़़ो का डायलिसिस करना तो यहां के लिए साधारण सी बात है।

कोरोना काल में जिस ढंग से हरियाणा सरकार ने इस संस्थान को मज़दूरों से छीन कर अपने कब्ज़े में कर लिया था, बेशक वह बहुत ही दुखदायी रहा, इसके बावजूद जिस ढंग से यहां आए कोरोना मरीज़ स्वस्थ होकर गए उसकी राज्य स्तर बहुत पर प्रशंसा की गई। यदि यह संस्थान न होता तो न जाने कितनी मौतें और होतीं। उस समय दिल्ली मुख्यालय तक के वे लोग भी इलाज के लिए आए जो लोग कभी इस संस्थान के विरोधी थे। आज इस संस्थान की उत्कृष्टता को देखते हुए न केवल हरियाण बल्कि एनसीआर से मरीज़़ों को यहां रेफर किया जा रहा है। कम से कम दो केंद्रीय श्रम मंत्री एवं उनके परिजन भी यहां अपने इलाज हेतु दाखिल रह चुके हैं, बल्कि एक श्रम राज्य मंत्री तेली के एक परिजन को तो यहां दाखिला भी न मिल सका जिसका उन्हें बड़ा अफसोस रहा। अपनी इसी जिज्ञासा को लेकर वे इस संस्थान को देखने भी एक बार आए थे। मौजूदा श्रममंत्री भी वक्त बेवक्त यहां इलाज के लिए आते हैं। जबकि एक मेडिकल कॉलेज उनके करीब बसई दारापुर में भी मौजूद है। उनके अलावा मंत्रालय के अन्य बड़े अधिकारी भी दिल्ली में अस्पताल होने के बावजूद यहीं आना पसंद करते हैं, समझा जा सकता है कि अभावों के बावजूद यह संस्थान कितनी स्तरीय सेवाएं दे रहा है।

अब इस संस्थान की दुर्दशा भी थोड़ी देख लें, संस्थान की उत्कृष्ट सेवाओं को देखते हुए जहां इसका कार्य भार क्षमता से दोगुणा बढ़ गया वहीं मुख्यालय आवश्यकता के अनुरूप स्टाफ नहीं देने पर अड़ा रहा। ज़ाहिर है ऐसे में मरीज़ों की बढ़ती भीड़ को काफ़ी कुछ यहां भुगतना पड़ रहा है। यहां मरीज़ों की बढ़ती भीड़ का एक और बड़ा कारण यह है कि जिन मरीज़ो का इलाज फरीदाबाद, गुडग़ांवां और दिल्ली की डिस्पेंसरियों व छोटे अस्पतालों में किया जाना चाहिए उसके लिए भी मरीज़ों को यहां धकेल दिया जाता है। यदि शासन- प्रशासन तमाम संबंधित डिस्पेंसरियों एवं अस्पतालों को भी सुचारु ढंग से काम में लगाए तो यहां की भीड़ बहुत घट सकती है। ख़ैर जो भी है, जैसे भी हालात यहां के हैं, मुख्यालय के असहयोग के बावजूद डॉ. दास के नेतृत्व में फैकल्टी ने चिकित्सा के जो उत्कृष्ट कीर्तिमान बनाए हैं उसके लिए उन्हें सम्मानित किया जाना तो बनता ही है।

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Mazdoor Morcha
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