ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मंत्रियों की नौटंकी जारी है

ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मंत्रियों की नौटंकी जारी है
April 02 14:18 2023

नये भवन की घोषणा, दो कमरों का काटा फीता

रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) बीते रविवार 26 मार्च को केन्द्रीय श्रम मंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव ने एनएच तीन स्थित ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल का दौरा किया। इस अवसर पर स्थानीय सांसद एवं केन्द्रीय राज्यमंत्री केपी गूजर, स्थानीय विधायक सीमा त्रिखा जिला भाजपा अध्यक्ष गोपाल शर्मा के अलावा इनके कई लगुए-भगुए भी मौजूद रहे। उद्देश्य जनता को यह संदेश देना था कि भाजपा सरकार इस संस्थान के माध्यम से उनके लिये कितनी भारी सेवा कर रही है। इसकी पुष्टि उस सरकारी प्रेसनोट से होती है जिसमें कहा गया है कि मंत्री केपी गूजर की मांग पर अस्पताल का विस्तार करके 500 बेड की नई इमारत बनाई जाए जिसे श्रममंत्री भूपेन्द्र यादव ने स्वीकार कर लिया।

प्रेसनोट में यह भी कहा गया है कि अस्पताल के इस विस्तार के लिये प्रस्ताव बना कर स्वीकृति हेतु सरकार को भेजा जायेगा। यह कथन पूर्णतया निराधार एवं गलत है। विदित है कि ईएसआई कार्पोरेशन एक स्वायत्त संस्थान है। इसे किसी भी काम के लिये सरकार से न तो कोई पैसा लेना होता है और न ही किसी प्रकार की स्वीकृति। कार्पोरेशन पूर्णतया मज़दूरों के वेतन से वसूले गये अंशदान से चलता है। इसमें किसी भी सरकार का कोई पैसा नहीं लगता, बल्कि इसके सर पर बैठे तमाम मंत्री-संत्री व अफसरों का सारा खर्चा भी इसी पैसे से किया जाता है।

मंत्रियों द्वारा नारियल फोडऩे व फीता काटने की कुप्रथा का पालन करते हुए श्रम मंत्री यादव ने उन दो कमरों का भी फीता काटा जिनमें पहले से ही कैंसर मरीजों का इलाज होता आ रहा है। विदित है कि इस अस्पताल में बीते करीब एक साल से बोन मैरो ट्रांसपलांटेशन का काम होता आ रहा है। अब तक 27 मरीजों का सफल बीएमटी किया जा चुका है। यदि उक्त दो कमरों की जगह और अधिक कमरे तथा पर्याप्त स्टाफ इस काम के लिये उपलब्ध कराये गये होते तो उपचारित मरीजों की संख्या और भी अधिक हो सकती थी। इस उपचार के लिये चेन्नइ सहित देश के विभिन्न भागों से मरीज सफल इलाज करा कर जा चुके हैं। इसके अलावा प्रतीक्षा सूची काफी लम्बी है। बीएमटी के अलावा भी अन्य श्रेणियों के कैंसर मरीजों का, स्टाफ के भयंकर कमी के बावजूद यहां सफल इलाज हो रहा है।

कैथलैब बीते 14 महीने से यहां कार्यरत है। इसके द्वारा 2000 से अधिक ह्दय रोगियों का सफल इलाज किया जा चुका है। इसमें एंजिओग्राफी, एंजिओ प्लास्टी तथा ह्दय के वॉल्व बदलने तक के काम हो चुके हैं। इसके बावजूद अभी तक केन्द्रीय श्रममंत्री के मातहत काम करने वाले मुख्यालय ने न तो कोई टेक्नीशियन उपलब्ध कराये हैं और न ही आवश्यक पैरामेडिकल स्टाफ।

पैदाइशी गूंगे-बहरे बच्चे जो इलाज के अभाव में सदा के लिये गूंगे बहरे रह जाया करते थे, उनका भी यहां सफल इलाज होने लगा है। इस अस्पताल में अब तक ऐसे करीब 35 बच्चों का सफल इलाज किया जा चुका है। इसमें कॉक्लीेयर नामक एक महीन सा यंत्र छोटे बच्चे के कान में शल्य चिकित्सा द्वारा फिट किया जाता है जिससे बच्चा सुनने लगता है और जब सुनने लगता है तो वह बोलने भी लगता है। इस उपकरण की कीमत करीब पांच लाख रुपये तथा सर्जरी का खर्चा (व्यापारिक अस्पतालों में) पांच लाख से भी अधिक आता है।

सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा न होने के चलते और ईएसआई कार्पोरेशन अपना खर्चा बचाने के लिये ऐसे मरीजों को घुमा-फिरा कर भगाती रही है। अस्पताल में तेजी से बढ़ते कार्यभार तथा स्टा$फ की भारी कमी के साथ-साथ स्थानाभाव की ओर बार-बार मुख्यालय का ध्यान आकृष्ट करने के बावजूद जब किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी तो संस्थान के डीन डॉ. असीम दास ने अपने इस्तीफे का नोटिस दे दिया था। बताया जाता है कि मसले की गम्भीरता को समझते हुए श्रममंत्री भूपेन्द्र यादव ने शीघ्र ही अस्पताल का विस्तार करके सुपरस्पेशलिटी विभाग के निर्माण का आश्वासन दिया था। इसे लेकर बीते करीब साल डेढ़ साल से चर्चा तो चलती रही लेकिन धरातल पर तो क्या कागजों तक पर भी कोई काम नहीं हुआ। इतना लम्बा समय बीत जाने के बाद अब कहीं जाकर इसके निर्माण की घोषणा की गई है और वह भी इस तरह की ड्रामेबाजी के द्वारा।

देर आये दुरुस्त आये, आ तो गये। परन्तु अब सवाल यह है कि यह नई इमारत कब तक बन कर तैयार हो जायेगी? करने की नीयत हो तो यह काम एक साल से अधिक का नहीं है। और नीयत खराब हो तो मंझावली पुल की तरह दस साल में भी न हो।

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Mazdoor Morcha
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