फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) बीते 13 फरवरी को ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कैथलैब की वर्षगांठ बहुत ही उत्साहपूर्वक लेकिन निहायत सादे तरीके से मनाई गई। सुधी पाठक भूले नहीं होंगे कि एक वर्ष पूर्व यानी इसकी स्थापना के समय ‘मज़दूर मोर्चा’ ने कैथ लैब की पूरी रिपोर्ट चित्र सहित प्रकाशित की थी। इसकी स्थापना से पहले ह्दय सम्बन्धी तमाम रोगों के लिये मरीजों को व्यापारिक अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता था जहां एंजिओ प्लास्ट्री के लिये कम से कम 50 हजार रुपये का भुगतान कॉर्पोरेशन को करना पड़ता था। इसके अलावा मरीज़ को डरा-बहका कर वे जो वसूली कर लेते थे वो अलग से।
बीते एक साल में इस कैथलैब द्वारा कुल 1033 एनजीओग्राफी की गई। इनमें से 650 की एंजिओ प्लास्ट्री की गई तथा 33 पेसमेकर भी लगाये गये। व्यापारिक अस्पतालों से अनुबंध के अनुसार केवल एनजीओग्रा$फी के लिये उन्हें 10 हजार का भुगतान किया जाता है। परन्तु ये व्यापारिक अस्पताल इतने भले भी नहीं कि मात्र एनजीओग्राफी करके मरीजों को छोड़ दें, ये कुछ न कुछ करके एंजिओ प्लास्ट्री का केस बना कर अच्छा-खासा बिल वसूल करते रहते थे।
सुधी पाठक समझ सकते हैं कि यहां पर कैथलैब स्थापित होने के बाद से 1033 केस रेफर होने से बच गये। इसका सीधा लाभ न केवल मरीजों को बल्कि ईएसआई कॉर्पोरेशन को भी अर्थिक रूप से हुआ। इसी कार्यकाल में 33 मरीजों को पेसमेकर भी लगाये गये जिसके लिये करीब दो लाख रुपये प्रति केस भुगतान व्यापारिक अस्पतालों को करना पड़ता। बीते दो सप्ताह पूर्व ‘मज़दूर मोर्चा’ ने प्रकाशित किया था कि बिना चीर-फाड़ के इसी मशीन के द्वारा दो मरीजों के ह्दय वाल्व बदल कर उन्हें नया जीवन प्रदान किया गया था। वर्षगांठ मनाने के सादे से समारोह में मेडिकल कॉलेज फैकल्टी, पीजी छात्र, कॉर्डियोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. मोहन नायर, डॉ. राकेश वर्मा तो थे ही साथ में विशेष रूप सेे आमंत्रित 88 वर्षीय डॉ. कौल भी उपस्थित थे। डॉ. कौल उन अग्रणी कॉर्डियोलॉजिस्ट में से एक हैं जिन्होंने दिल्ली में इस चिकित्सा की शुरूआत की थी। जि़ला प्रशासन से डॉ. गरिमा मित्तल आईएएस, प्रशासक ‘हूडा’ को भी मेडिको होने के नाते आमंत्रित किया गया था।
इस सादे से समारोह को मनाने के पीछे आत्यधिक उत्साह उन टेक्निशियनों नर्सों तथा नर्सिंग अर्दलियों आदि का था जो इस काम के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित न होते हुए भी सम्बन्धित डॉक्टरों द्वारा प्रशिक्षित कर दिये गये। पैरामेडिकल स्टाफ के ये लोग, बीते एक साल की इस उपलब्धि को अपनी बड़ी सफलता के रूप में लेते हैं। दूसरी ओर दिल्ली स्थित ईएसआई कॉर्पोरेशन के मुख्यालय में बैठे हुए ढीठ एवं जन विरोधी अफसरों को इस सफलता से बड़ी भारी तकली$फ होती नजर आ रही है। उनकी तकलीफ को देखते हुए ऐसा लगता है कि वे नहीं चाहते कि रैफर करने का धंधा बंद हो जाये। इसी के चलते मुख्यालय ने एक साल में भी कैथलैब के लिये आवश्यक 45 स्टा$फ की स्वीकृति प्रदान नहीं की है जो कि पहले ही दिन हो जानी चाहिये थी। फिलहाल संस्थान के डीन डॉ. असीम दास ने अस्पताल के अन्य स्थानों से स्टाफ को निकाल कर ट्रेंड करके इस काम पर इस उम्मीद से लगाया था कि स्टाफ की स्वीकृति आ जायेगी। स्वीकृति तो क्या आनी थी संस्थान पर उल्टे रेफरल बिल को बढ़ाने का आरोप जरूर लगा दिया गया। कैथलैब के साथ-साथ कार्डियोलॉजी विभाग में ईको तथा टीएमटी की भी सुविधा उपलब्ध करा दी गई है। इससे पहले इन कामों के लिये मरीजों को व्यापारिक असपतालों की शरण में भेजा जाता था।