ईएसआई कार्पोरेशन पैसा लेना जानती है, सुविधायें देना नही

ईएसआई कार्पोरेशन पैसा लेना जानती है, सुविधायें देना नही
June 19 14:56 2022

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
देश भर के 3 करोड़ 39 लाख मज़दूरों से उनके वेतन का नियमित चार प्रतिशत वसूलने के बावजूद उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधायें देने से ईएसआई कार्पोरेशन किनारा करती आ रही है। इन बीमाकृत मज़दूरों पर आश्रित कुल 13 करोड़ 16 लाख लोग हैं। इन लोगों को चिकित्सा सेवायें देने के जो तय शुदा मानक हैं, कार्पोरेशन उनका खुलकर उल्लंघन करती आ रही है।

चिकित्सा सुविधायें देने के लिये कार्पोरेशन स्वयं 50 अस्पताल चलाती है तथा 110 अस्पताल राज्य सरकारों के द्वारा चलवाती है। इसके लिये राज्य सरकारों को कार्पोरेशन कुल खर्च का सात भाग देती है शेष आठवां भाग राज्य सरकारें वहन करती हैं। अधिकतर राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली चिकित्सा सेवायें निहायत दुर्दशा का शिकार बनी हुई है। उदाहरण के लिये फरीदाबाद का सेक्टर आठ का अस्पताल तथा कार्पोरेशन द्वारा अधिग्रहण करने से पहले एनएच तीन वाला अस्पताल भयंकर दुर्दशा के शिकार थे। इसी को देखते हुए एनएच तीन वाले अस्पताल को कार्पोरेशन ने अपने हाथ में लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल स्थापित किया।

फरीदाबाद तथा हैदराबाद वाले मेडिकल कॉलेज अस्पतालों को छोडक़र कार्पोरेशन के शेष 48 अस्पताल भयंकर दुर्दशा के शिकार बने हुए हैं। इसका निकटतम उदाहरण गुडग़ांव के दो अस्पताल हैं तथा दिल्ली का बसई दारापुर स्थित अस्पताल है।

दुर्दशा के अधिक विवरण में जाये बगैर फ़िलहाल  इनमें उपलब्ध बिस्तरों की स्थिति का जायजा लेते हैं। कार्पोरेशन के इन 50 अस्पतालों में कुल 12440 बिस्तर स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 8835 बिस्तरें चालू हैं अर्थात इन पर मरीज़ों को लिटाया जा सकता है।

यहीं पर समझने वाली बात यह है कि कुल स्वीकृत बिस्तरों में से 3605 बिस्तर उपलब्ध ही नहीं हैं। इससे भी गंभीर एवं दुखदायी तथ्य यह है कि चालू बिस्तरों में से केवल 36 प्रतिशत यानी कुल 3180 बिस्तरों पर ही मरीज़ अपना इलाज करा पा रहे हैं। संदर्भवश डब्लूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार प्रति 1000 लोगों पर तीन बिस्तर होने चाहिये। इस हिसाब से भारत की 138 करोड़ की आबादी पर बिस्तरों की संख्या 41 लाख 40 हजार होनी चाहिये। जबकि उपलब्ध हैं केवल 11 लाख 85 हजार। चलो यह तो भारत सरकार का मसला है जिसके पास जनता के इलाज पर खर्च करने को पैसा नहीं है। परन्तु ईएसआई कार्पोरेशन धन की कमी का बहाना नहीं ले सकती। इसके पास मज़दूरों के वेतन से वसूला गया एक लाख 37 हजार करोड़ रुपया पड़ा हुआ है। डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार ईएसआई कार्पोरेशन को अपने बीमाकृत मज़दूरों के लिये तीन लाख 94 हजार बिस्तर उपलब्ध कराने चाहिये। जबकि उपलब्ध केवल 27 हजार हैं। यह संख्या दोनों तरह के अस्पतालों को मिलाकर है।

डॉ. दीपक शर्मा जैसे निकृष्ट एवं हरामखोर जहां इंचार्ज होते हैं वहां बिस्तर खाली ही रहते हैं।
मन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि देश भर में 8835 चालू बिस्तरों में से केवल 36 प्रतिशत पर ही मरीज़ क्यों इलाज कराने को दाखिल हैं? जवाब स्पष्ट है कि मरीज़ वहीं दाखिल होता है जहां उसे अपने इलाज की कोई सम्भावना नज़र आती हो। जहां डॉक्टरों व अन्य स्टाफ की नीयत इलाज करने की ही न हो तो वहां कोई मरने के लिये दाखिल क्यों होगा?
इसका जीता-जागता उदाहरण बसई दारापुर के अस्पताल में देखा जा सकता है 600 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में सन 2019 तक एक भी बिस्तर खाली नहीं रहता था, बल्कि बिस्तर खाली होने के इन्तजार में 20-30 मरीज़ कैजुअल्टी में स्ट्रेचरों व ज़मीन पर अपनी बारी के इन्तजार में पड़े रहते थे। आज उसी अस्पताल में आधे से अधिक बेड खाली पड़े हैं। यह कमाल किया डॉ. दीपक शर्मा ने। ये साहब 2019 के बाद वहां के चिकित्सा अधीक्षक रहे हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य यह रहा था कि इस अस्पताल को फेल करना है। इन्होंने कभी भी आवश्यक साज़ो सामान की आपूर्ति ढंग से नहीं होने दी। जाहिर है कि जब डाक्टरों को आवश्यक चीजें ही उपलब्ध नहीं होंगी तो वे इलाज क्या करेंगे?

समझा जा सकता है कि इन हालात में कोई मरीज़ ऐसे अस्पताल में दाखिल होकर अपनी जान जोखिम में क्यों डालेगा? परिणामस्वरूप डॉ. दीपक शर्मा का जो लक्ष्य इस अस्पताल को उजाडऩे का था वह काफी हद तक पूरा हो गया। डॉ. शर्मा की इसी ‘उपलब्धि’ से प्रसन्न होकर ईएसआई कार्पोरेशन ने उन्हें पदोन्नत करके मेडिकल कमिश्नर बना दिया। अब उनके हाथ में देश भर के 50 अस्पतालों को बर्बाद करने का लक्ष्य सौंपा गया है।

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