ईएसआई अस्पताल सेक्टर आठ की गाड़ी डबल ड्राइविंग की शिकार

ईएसआई अस्पताल सेक्टर आठ की गाड़ी डबल ड्राइविंग की शिकार
July 29 17:32 2022

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अखिल महाजन के प्रयासों से हुआ कुछ सुधार

फरीदाबाद (म.मो.) करीब 45 वर्ष पूर्व 200 बिस्तरों के लिये बनाये गये इस अस्पताल को मात्र 50 बिस्तरों तक ही सीमित रखा गया है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि इन 50 बिस्तरों में भी 10-15 से अधिक कभी भरे नहीं रहे। लेकिन बीते 4-5 माह से यानी जबसे डॉ. अखिल महाजन ने बतौर चिकित्सा अधीक्षक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया है, 30-40 मरीज़ दाखिल रहने लगे हैं।

दाखिल मरीजों में अधिकांश प्रसूति सम्बन्धित मरीज़ हैं। इसके लिये डॉ. महाजन ने सेवानिवृत सिविल सर्जन डॉ. रजनी गुप्ता जो एक बेहतरीन स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं की सेवायें ठेके पर ली हुई हैं। कुछ अन्य डॉक्टरों के सहयोग से, तमाम अभावों के बावजूद जैसे-तैसे ऑपरेशन थियेटर को चालू करके कुछ सर्जरी भी करा रहे हैं। अस्पताल के रख-रखाव की हालत यह है कि कुल 50 बिस्तरों में से भी 9 बिस्तर ऐसे हैं जिन पर न कोई गद्दा है न ही चादर, खाली लोहे की चरपाईयां पड़ी हैं l जिन पर गद्दे आदि खरीद कर लगाने का अधिकार डॉ. महाजन के पास नहीं है।

पहली-दूसरी मंजिल पर जाने के लिये लगाई गई लिफ्ट बीते न जाने कितने वर्षो  से खराब होकर बंद पड़ी है। जाहिर है कि लिफ्ट के न होने से मरीजों को उनके बिस्तरों तक पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है। इस बाबत बार-बार क्षेत्रीय निदेशक को लिखे जाने के बावजूद किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

विदित है कि इस अस्पताल रूपी गाड़ी को चलाने के लिये एक साथ दो-दो ड्राइवरों की व्यवस्था की गई है। दरअसल यह व्यवस्था चलाने के लिये कम और सत्यानाश करने के लिये अधिक कारगर है।

इस अस्पताल को चलाने के लिये जहां एक ओर हरियाणा के पंचकूला में बैठा ईएसआई हेल्थ केयर निदेशालय है तो दूसरी ओर फरीदाबाद के सेक्टर 16 में बैठा क्षेत्रीय निदेशालय है। इन दोनों की आपसी खींच-तान कभी समाप्त नहीं होती जिसके परिणामस्वरूप इस अस्पताल तथा इससे जुड़ी 10 डिस्पेंसरियों का बेड़ागर्क हुआ पड़ा है जिसे भुगतने को लाखों मज़दूर अभिशप्त हैं।

अस्पताल परिसर तथा इसमें बने रिहायशी मकानों की हालत एकदम खस्ता हो चुकी है, सडक़ें सब टूट चुकी हैं। अस्पताल की मुख्य इमारत जो वातानुकूलित व्यवस्था के अनुरूप बनाई गई थी, उसमें वातानुकूलन मशीन तो कभी लगी नहीं, हां उसके लिये बनी फाल्स सीलिंग सारी की सारी उखड़ कर गिर चुकी है।

4 लाख रुपये के ट्रांसफार्मर  का12 लाख दे चुके हैं किराया
अस्पताल का पॉवर लोड 289 किलोवाट है तथा रिहायशी मकानों का लोड 125 किलोवाट है। इसे देखते हुए अस्पताल में 400-400 केवी के दो ट्रांसफार्मर शुरू से ही लगाये गये थे। जब एक बिगड़ गया तो सारा लोड दूसरे पर डाल कर निश्चिंत हो गये और बिगड़े ट्रांसफार्मर को ठीक कराने या नया खरीदने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। जाहिर है ऐसे में एक न एक दिन यह ट्रांस्फारमर भी बिगडऩा ही था सो बिगड़ गया। कई दिन अस्पताल अंधेरे में रहा।

मज़दूरों के पैसे का दुरुपयोग करते हुए एवं कमीशनखोरी के चक्कर में क्षेत्रीय निदेशालय ने करीब 4 लाख कीमत का ट्रांसफार्मर खरीद कर लगाने की अपेक्षा इसे किराये पर लिया जिसका बीते तीन साल में 12 लाख रुपये किराया दिया जा चुका है और अभी किराये का मीटर चालू है। मज़दूरों को सुविधायें देने के लिये पैसा खर्च करने में तो इनकी जान निकलती है लेकिन उसी पैसे को बर्बाद करते वक्त कोई दर्द नहीं होता। दवाओं की कोई कमी नहीं

अस्पताल एवं दवाओं की स्थिति के बारे में डॉ. महाजन ने बताया कि उनके पास किसी भी दवा की कोई कमी आज की तारीख में नहीं है। बीते तीन साल से रैबीज़ यानी कुत्ता काटे के टीके न होने के जवाब में उन्होंने बताया कि आज उनकी कोई कमी नहीं है। अभी-अभी उन्होंने 54 टीके सीधे मुख्य वितरक से न्यूनतम संभव दरों पर खरीदे हैं। इनके समाप्त होने से पूर्व और मंगा लिये जायेंगे।

डिस्पेंसरियों में दवायें न मिलने के बारे में डॉ. महाजन का कहना था कि वहां से कोई लेने ही नहीं आता तो वे क्या करें? दरअसल लेने तो कोई तब आये न जब वहां पर्याप्त मात्रा में स्टाफ हो और उनकी रुचि मरीजों को दवायें देने में हो। वैसे ये डिस्पेंसरियां डॉ. महाजन के आधीन न होकर सीधे सिविल सर्जन डॉ. अनिता खुराना के आधीन होती हैं। डिस्पेंसरियों में दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करना उनके कार्यक्षेत्र में आता है।

स्टाफ की कमी
अस्पताल में 50 डॉक्टरों की जगह मात्र 31 स्वीकृत पद हैं इनमें से भी आठ खाली पड़े हैं। 60 नर्सों की जगह केवल 24 पद स्वीकृत हैं इनमें से भी 14 खाली पड़े हैं। फार्मासिस्टों के 22 पदों में से 17 खाली पड़े हैं। रेडियोग्रफर के दो पदों में से एक खाली पड़ा है। ड्रेसर यानी पट्टी बांधने वाला तथा ईसीजी ऑपरेटर के पद पर कोई नहीं है।

डॉ. महाजन के पदासीन होने से पूर्व इन्टरनेट का बिल तो भरा जाता था परन्तु इन्टरनेट चलता नहीं था। जाहिर है कि ऐसे में ऑनलाइन हो सकने वाले काम नहीं हो पाते थे। डॉ. महाजन ने पहल करते हुए सारी व्यवस्था को सुधार कर कम्प्यूटरों को चालू कराया। इससे काम को सुचारु करने में काफी सुगमता हो गई।

डॉ. महाजन के मुताबिक रोजमर्रा के खर्चों, जैसे जनरेटर के लिये डीजल, किचन के लिये राशन और अन्य छुट-मुट खर्चों के लिये इम्प्रेस्ट मनी के लिये रोजाना इन्हें क्षेत्रीय निदेशालय के सामने हाथ पसारने पड़ते थे। उक्त चीजें खरीद लेने केे बाद महीनों तक निदेशालय से पेमेंट नहीं होती थी। इसके लिये उन्होंने संघर्ष करके इम्प्रेस्ट मनी को व्यवस्थित तो करा लिया है परन्तु क्षेत्रीय निदेशालय कभी-कभी ठुंगी मारने से बाज नहीं आता। हर छोटे-छोटे काम में अड़ंगा लगाना वे अपना परम धर्म समझते हैं। हाल ही में उन्होंने सफाई कर्मचारी भी अस्पताल से हटा लिये हैं।

इन सब विपरीत स्थितियों के बावजूद लड़ते-झगड़ते जैसे-तैसे इस अस्पताल को जिस बेहतर ढंग से चलाने का प्रयास डॉ. महाजन ने किया है, वह सराहनीय है। बेशक इतने बड़े अस्पताल को जिन-जिन संसाधनों की आवश्यकता है उन्हें पूरा कर पाना उनके बूते की बात नहीं है। फिर  भी बीते पांच महीने में उन्होंने जुनून के साथ काम किया है, अगले माह इनके सेवा निवृत होते ही यह सब किया-धरा चौपट हो जायेगा।

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Mazdoor Morcha
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