ईएसआई : फेको मशीन के बिना ही किए जा रहे आंखों के ऑपरेशन

ईएसआई : फेको मशीन के बिना ही किए जा रहे आंखों के ऑपरेशन
March 04 04:22 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) एनएच तीन स्थित ईएसआई मेडिकल कॉलेज में 29 जनवरी को आंखों का ऑपरेशन करते समय फेको मशीन खराब हो जाने के चलते पांच-छह मरीजों का ऑपरेशन तो बिना मशीन के यानी नश्तर से ही कर दिया लेकिन एक ग्लूकोमा मरीज़ को नश्तर का उपयोग काफी जोखिम भरा मानते हुए लौटा दिया गया था। उपलब्ध जानकारी के अनुसार मशीन का मदर बोर्ड खराब हो जाने के चलते उसे चेन्नई भेजा गया था जो खबर लिखते समय तक ठीक होकर नहीं आया था और इस दौरान आखों के ऑपरेशन नश्तर से ही किए जा रहे हैं

समझने वाली बात यह है कि नश्तर से आंख में चीरा लगाकर मोतिबयाबिंद को निकालना व उसके स्थान पर लेंस डालना एक बहुत पुरानी पद्धति है। इसमें एक तो चीरे से लगा घाव भरने में समय अधिक लगता है दूसरे मोतियाबिंद निकालने व लेंस डालने में सटीकता नहीं आ पाती। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए फेको मशीन का आविष्कार किया गया है, इस मशीन द्वारा केवल इंजेक्शन की सुई जैसी चीज़ आंख के अंदर जाती है जो कि मोतियाबिंद को अपने अंदर खींच कर बाहर ले आती है और उसी के द्वारा आंख के अंदर नया लेंस बड़ी सटीकता के साथ फिट कर देती है। इस विधि से ऑपरेशन करने में समय तो कम लगता ही है और मरीज़ को स्वस्थ होने में भी चंद घंटे ही लगते हैं। लेकिन इन सब बातों से ईएसआई मुख्यालय में बैठे धूर्त अफसरों को क्या लेना देना? कॉरपोरेशन का खज़ाना भरने वाला मज़दूर कटता मरता है तो उन अफसरों की सेहत पर क्या असर पड़ता है। उनके द्वारा मरीजों की इसी उपेक्षा के चलते इस फेको मशीन के बार-बार खराब होने के बावजूद उन्होंने इसकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने की आवश्यकता नहीं समझी।

संदर्भवश, यहां इस्तेमाल की जाने वाली फेको मशीन अपेक्षाकृत काफी सस्ती यानी 20-25 लाख की बताई जाती है। इस मशीन में बेशक कोई बड़ी ख़ामी नहीं है लेकिन यह केवल वहीं सफल हो सकती है जहां केवल एक ही डॉक्टर ने इसका इस्तेमाल करना हो। लेकिन किसी भी मेडिकल कॉलेज में जहां छात्रों ने आंख की सर्जरी सीखने के लिए इस मशीन का इस्तेमाल करना होता है वहां यह मशीन कामयाब नहीं हो सकती। इस अस्पताल में सर्जरी करने व सीखने वाले दर्जनों छात्र हमेशा लगे रहते हैं, ऐसे में मशीन का आए दिन बिगडऩा स्वाभाविक है। इसके उपाय के तौर पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन बीते कऱीब दो साल से उच्च गुणवत्ता की मशीनों की मांग कर रहा है जिनकी टेक्निकल बिड हो चुकी है, इनकी क़ीमत कऱीब अस्सी लाख से एक करोड़ तक बताई जाती है, संस्थान की इस मांग पर मुख्यालय में बैठे धूर्त अधिकारी कुंडली मारे बैठे हैं। उनको इन कीमती मशीनों की उपियोगिता को समझाना ठीक वैसा ही साबित हो रहा है जैसा कि सुई के नाके में से ऊंट निकालना।

इन धूर्त अधिकारियों का तर्क यह होता है कि जब 20-25 लाख की मशीन से ऑपरेशन हो सकता है तो एक करोड़ की मशीन लेने की ज़रूरत क्या है? उक्त अधिकारी यह समझने में असमर्थ हैं कि किसी शिक्षण संस्थान की आवश्कताएं उस छोटे अस्पताल से बहुत अलग होती हैं जहां केवल एक डॉक्टर ने दिन भर में दो-तीन ऑपरेशन करने होते हैं। जबकि यहां विभिन्न डॉक्टरों एवं छात्रों द्वारा प्रतिदिन 8-10 ऑपरेशन किए जाते हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार हरियाणा सरकार द्वारा संचालित ईएसआई के पानीपत अस्पताल में एक फेको मशीन केवल इसलिए बेकार पड़ी है क्योंकि उसे वहां इस्तेमाल करने वाला कोई नहीं है। फरीदाबाद के ही सेक्टर आठ अस्पताल में किए जाने वाले तमाम आंख के ऑपरेशन नश्तर वाली पुरानी पद्धति से ही किए जा रहे हैं, क्योंकि वहां न तो फेको मशीन है और न ही वहां तैनात डॉक्टर इसे चलाने में सक्षम हैं।

फेको मशीन से ऑपरेशन करने में ट्रेंड डॉक्टर आखिर आएंगे कहां से? जब मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थान में ही छात्रों के लिए ये मशीन उपलब्ध न हो इसलिए मुख्यालय में बैठे धूर्त अधिकारियों को व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए बिना किसी देरी के एक नहीं दो तीन ऐसी मशीनें अपने तमाम मेडिकल कॉलेजों में उपलब्ध करानी चाहिए।

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Mazdoor Morcha
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