दुर्गा भाभी महिला मोर्चा , अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जि़ंदाबाद ‘पूंजी के गुलामी से मुक्ति के बगैर, महिला मुक्ति मुमकिन नहीं’

दुर्गा भाभी महिला मोर्चा , अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जि़ंदाबाद ‘पूंजी के गुलामी से मुक्ति के बगैर, महिला मुक्ति मुमकिन नहीं’
March 10 15:18 2024

‘जिस दिन महिलाएं अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी’- रोज़ा लक्ज़म्बर्ग

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) कदम-दर-कदम अपनी मुक्ति की ओर बढ़ते हुए महिलाओं ने शानदार संघर्ष छेड़े हैं। गुलामी की कोई भी बेड़ी उनकी गौरवशाली कुर्बानियों के बगैर नहीं टूटी। महिला आजादी और स्वाभिमान की जंग यूं तो उतनी ही पुरानी है जितनी समाज में वर्ग विभाजन की उम्र है लेकिन संघर्षों के मौजूदा दौर की शुरुआत 8 मार्च 1857 को हुई, जब अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के कपड़ा उद्योग में काम करने वाली 15,000 से अधिक महिलाओं ने मोर्चा निकाला। ‘रोटी और गुलाब’ का नारा आकाश में गूंज उठा था, रोटी मतलब आर्थिक आजादी और गुलाब मतलब सम्मानजनक सेवा शतें; 16 घंटे की जगह 10 घंटे काम, पुरुषों के बराबर वेतन, वोटिंग का अधिकार और बाल-श्रम पर सम्पूर्ण पाबन्दी।

8 मार्च 1857 को अमेरिका के न्यूयॉर्क महानगर में प्रज्वलित हुई स्त्री मुक्ति आन्दोलन की मशाल को लाख दमन-उत्पीडऩ के बावजूद महिलाओं ने बुझने नहीं दिया। 1904 में ये ज्वाला तेजी से भडक़ी, महिलाएं अब दमन-उत्पीडऩ, अपमान और गैर बराबरी की जि़ल्लत बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थीं। ये मजदूर आंदोलन, समाजवादी/ कम्युनिस्ट आंदोलन के उभार का दौर था। इसी आन्दोलन ने दो महान जर्मन महिलाओं को पैदा किया जिनके बगैर स्त्री मुक्ति आंदोलन की दास्तान पूरी नहीं हो सकती; क्लारा जेटकिन और रोजा लक्जमबर्ग। अगस्त 1910 में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में दूसरा विश्व समाजवादी सम्मलेन होना था। क्लारा जेटकिन के प्रयासों से उस सम्मलेन के ठीक पहले ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला समाजवादी सम्मेलन’ आयोजित हुआ। जिसमें क्लारा जेटकिन का न्यूयॉर्क की बहादुर महिला आन्दोलनकारी महिलाओं के संघर्षों के सम्मान में हर साल, 8 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ।

जाहिर है, ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’, महिला किट्टी पार्टी या फैशन परेड का विषय नहीं है, जैसा इसे मौजूदा मानवद्रोही बाजार-मुनाफ़ा संचालित निजाम ने बना डाला है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस; शोषण-मुक्त समाज बनाने, सम्मानपूर्ण जीवन और हर

तरह की गैर-बराबरी के विरुद्ध, महिलाओं के शानदार संघर्षों को याद कर मंजिल तक पहुंचाने के संघर्षों का नाम है।
1917 की रूस की महान बोल्शेविक क्रांति ने प्रकाश का जो चिराग रोशन किया उसने दमन-उत्पीडऩ शोषण-जिल्लत के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हर तबक़े का हौसला बढ़ाया, मार्ग दर्शन किया, महिला-मुक्ति की जंग भी नए आयाम में पहुंची। पहली बार महिलाओं ने असली आज़ादी का स्वाद चखा, महिलाएं, रसोई और बेडरूम की चारदीवारी से भी आजाद हुई। समान वोट का अधिकार, मातृत्व अवकाश अथवा कार्यस्थल पर कैच की सुविधा, अब उनके अधिकार बन गए, महान नेता लेनिन और स्टालिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने समाज से महिला गैर-बराबरी के अवशेषों को खुरच-खुरच कर मिटा डाला। “स्त्रियों के बगैर मेहनतकश वर्ग और मेहनतकश वर्ग के बगैर स्त्रियां मुक्त नहीं हो सकतीं”, लेनिन की वो सीख अब महिला मुक्ति संघर्षों का नारा बन गई।

ज़ोर-जबर, शोषण-उत्पीडन और पीड़ादायक गैर बराबरी के खिलाफ, स्त्री-मुक्ति और आत्म-सम्मान के लिए बेखौफ़ लडक़र अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाली वीरांगनाओं की लिस्ट बहुत लंबी है; सावित्रीबाई फुले, फ़ातिमा शेख, झलकारी बाई, उदा देवी, अजीजन बाई, रानी अबक्का, दुर्गा भाभी, गुलाब कौर, तृषा पाठक, बिशनी देवी शाह, चकली इलम्मा, मतंगिनी हजरा, वेलू नचियार, आशा देवी, बख्तावरी, हबीबा, मन कौर, रहीमी, भगवती देवी त्यागी, इन्द्र कौर, जमीला खान, शोभा देवी, उम्दा, असगरी बेगम, रानी गैदिन्लिउ, वेलू नाचियार आदि काले नागरिकता कानूनों के विरुद्ध शानदार तहरीक़ चलाने वाली शाहीन बाग की अनाम महिलाएं तथा किसान- मजदूर आंदोलनों में अपनी जिम्मेदारी निभाती हज़ारों महिला कार्यकर्ता। ये सब महिला सशक्तिकरण की असली प्रतीक हैं।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles