मज़दूर मोर्चा ब्यूरो भारत के केन्द्रीय श्रम मंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव खुद कह चुके हैं कि ईएसआई कॉर्पोरेशन दुनियां की बेहतरीन चिकित्सा स्कीम है; इसके बावजूद भारत में स्कीम का बेड़ा गर्क हुआ पड़ा है। मज़दूरों से पैसे की तो भरपूर वसूली हो रही है लेकिन चिकित्सा के नाम पर ठेंगा दिखाया जा रहा है।
भारत में ईएसआई कॉर्पोरेशन द्वारा चिकित्सा सेवा देने की दो पद्धतियां है, एक तो सीधे कॉर्पोरेशन द्वारा तथा दूसरे राज्य सरकारों के माध्यम से सेवायें उपलब्ध कराना। पहली पद्धति में अस्पतालों का संचालन खुद कार्पोरेशन करता है जबकि दूसरी पद्धति में राज्य सरकारों के माध्यम से सेवायें उपलब्ध कराई जाती हैं। इस पद्धति में कुल खर्च का केवल आठवां भाग राज्य सरकार वहन करती हैं। यानी कि कुल खर्च यदि आठ रुपये है तो सात रुपये कॉर्पोरेशन तथा एक रुपया राज्य सरकार का होता है इसके अलावा इमारत एवं तमाम इन्फ्रास्ट्रक्चर भी कॉर्पोरेशन ही उपलब्ध कराता है।
देश भर में 51 अस्पताल कॉर्पोरेशन स्वयं चलाता है तथा 103 अस्पताल राज्य सरकारों द्वारा चलाये जाते हैं। कॉर्पोरेशन के 51 अस्पतालों में कुल 12 हजार 705 बेड मरीज़ों के लिये बनाये गये हैं। इनमें से केवल 9 हजार 678 बेड ही चालू हैं यानी कि उन पर मरीजों को लिटाया जा सकता है। मतलब स्पष्ट है कि बिल्डिंग व ढांचा तो 12 हजार 705 बेड का खड़ा कर दिया गया लेकिन मरीजों की सेवा के लिये केवल 9 हजार 678 बेड ही रखे गये। इस पर भी गजब यह है कि इन चालू बेड में से भी 50 प्रतिशत बेड ही भरे रहते हैं। इसका मतलब कदापि यह नहीं निकालना चाहिये कि मरीजों को इससे अधिक बेड की जरूरत ही नहीं है। समझने वाली बात यह है कि मरीज तभी अस्पताल में आकर भर्ती होगा जब उसे वहां कुछ इलाज एवं सुविधा मिलेगी अन्यथा मरने के लिये कोई क्यों आकर भर्ती होगा?
इन 51 अस्पतालों में से आठ ऐसे भी हैं जिनके साथ मेडिकल कॉलेज भी जुड़े हैं और दो ऐसे हैं जिनमें केवल पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई होती है। इन दो में से एक दिल्ली स्थित बसइ दारापुर है जहां केवल 59 प्रतिशत बेड भरे हैं। तथा दूसरा बाम्बे में है जहां केवल 33 प्रतिशत बेड भरे हैं। मेडिकल कॉलेजों के साथ जुड़े फरीदाबाद व हैदराबाद के अस्पताल ही बेहतर स्थिति में है जहां न केवल शत प्रतिशत बेड भरे हैं बल्कि अतिरिक्त बेड भी लगाने पड़ रहे हैं। फरीदाबाद के इस अस्पताल की बेहतरीन सेवाओं को देखते हुए मरीजों की संख्या इस कदर बढती चली गई कि 300 बेड से शुरू होने वाला यह अस्पताल अब 900 बेड का हो चुका है। इतना ही नहीं 500 बेड का एक और अतिरिक्त भवन बनाने की योजना पर चर्चा बीते एक वर्ष से चल रही है।
दिल्ली के रोहिणी तथा ओखला के 300 बेड वाले अस्पतालों में क्रमश: 72 व 60 प्रतिशत बेड ही भरे रहते हैं। दिल्ली के यह अस्पताल पूर्णतया कार्पोरेशन द्वारा संचालित होने के बावजूद बहुत बेहतर सेवाये देने में असमर्थ हैं। दिल्ली से बड़ी संख्या में मरीजों को फरीदाबाद रेफर तो किया जा रहा है लेकिन बढते कार्य भार से निपटने के लिये आवश्यक पैरामेडिकल स्टाफ आदि को नहीं बढाया जा रहा। इसकी वजह से यहां की सेवायें भी बूरी तरह से प्रभावित हो रही हैं जिसे लेकर $फरीदाबाद के मज़दूरों में रोष बढता जा रहा है।
कॉर्पोरेशन के इन 51 अस्पतालों के लिये 6 हजार 231 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं लेकिन केवल 4082 पदों पर ही डॉक्टर नियुक्त हैं। यानी कि 2200 से अधिक डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं जबकि देश में न तो डॉक्टरों की कमी है और न ही कॉर्पोरेशन में मज़दूरों द्वारा दिये गये पैसे की। कमी है तो केवल कॉर्पोरेशन के सिर पर कुंडली मारे बैठे अफसरशाहों व राजनेताओं की इच्छाशक्ति की।
संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि ईएसआई कॉपोरेशन मुख्यालय में लगे डिसप्ले बोर्ड पर प्रत्येक अस्पताल में होने वाले इलाज तथा भर्ती एवं डिस्चार्ज का आंकड़ा ऑनलाइन प्रदर्शित होता रहता है। यानी कि कार्पोरेशन में बैठे निठल्ले अफसर पूरे देश भर में फैले अपने तमाम अस्पतालों के आंकड़े को निहारते तो रहते हैं परन्तु वे इस पर विचार करने की कतई कोई जरूरत नहीं समझते कि बेड खाली क्योंं पड़े हैं, मरीज़ क्यों नहीं आ रहे? विचार करने की जरूरत ही क्या है जब उन्हें पता है कि न तो पर्याप्त डॉक्टर न ही अन्य स्टाफ और न ही आवश्यक उपकरण व साजो सामान।
चिकित्सा क्षेत्र में ईएसआई कॉर्पोरेशन की महत्व एवं सामर्थ्य को समझने वाले माननीय केन्द्रीय श्रममंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव पर सवाल तो बनता ही है कि क्या उन्हें ईएसआई की यह सारी दुर्दशा नजर नहीं आ रही? यदि सब कुछ निकम्मे नालायक एवं हरामखोर अफसरों ने ही करना है तो मंत्री जी आप यहां किस लिये बैठे हैं?