दुनिया और वे

दुनिया और वे
January 17 02:44 2023

घर-बार
खेत-खलिहान
जहां रहती है दुनिया
खाती है, पीती है
मौज करती है
और ये सब
जुटाते हैं वे
जिनके
न घर हैं
न बार
न खेत-खलिहान
वे भूखे हैं
अधनंगे हैं
तरबतर हैं पसीने से
और सर पर खुला आकाश है..

गजेन्द्र  रावत

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