फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक 9 दिसम्बर को सेक्टर 31 की एक सडक़ पर गड्ढे और स्ट्रीट लाइट गुल होने के चलते अंकुर अग्रवाल अपनी स्कूटी से पत्नी नमिता और ढाई साल की बच्ची के साथ घर जा रहे था तो गड्ढे व अंधेरे की वजह से संतुलन बिगडऩे से तीनों गिर पड़े। पत्नी व ढाई साल की बच्ची को तुरंत एक व्यापारिक अस्पताल में भर्ती कराया गया। लाखों रुपया खर्च करने के बावजूद बच्ची की मौत हो गई और पत्नी अभी भी गंभीर हालत में है। यह घटना न तो पहली है और न ही आखिरी। यह सिलसिला, शहर में लगातार चलता आ रहा है क्योंकि घायल होने वाले व मरने वाले इसके लिये शासन-प्रशासन को दोषी न मानकर भगवान की मर्जी मानकर संतोष प्राप्त कर लेते हैं। पिछले कुछ दिनों में हुई ऐसी चंद घटनायें: एयरफोर्स रोड पर बच्चा नाले में डूब कर मरा, दूसरा, एक युवक पल्ला थाने के निकट सडक़ किनारे गड्ढे में डूब कर मरा, तीसरा, सेक्टर 21 की पत्थर मार्किट के निकट सडक़ के गड्ढे में गिरकर मरा, चौथा, बैंककर्मी थाना 55 क्षेत्र में मैन होल में गिर कर मरा। इसके अलावा बाइपास रोड के निर्माणकर्ताओं की लापरवाही के चलते थाना सराय के क्षेत्र में दो मोटरसाइकिल सवार सडक़ पर खुदी खाई में गिर कर मरे थे। इन मरने वालों के अतिरिक्त अनेकों को समय रहते बचा लिया गया उनकी कोई गिनती नहीं है।
विदित है कि वर्ष 2014 में राष्ट्रीय राजमार्ग पर बाटा मोड़ के निकट मनोज वधवा नामक एक स्कूटर सवार के बच्चे की मौत व पत्नी गंभीर रूप से घायल हुई थी। वधवा जी इस मामले को लेकर हाईकोर्ट तक केवल इसलिये गये कि दुर्घटना की जिम्मेवारी तय करके सम्बन्धित अधिकारियों को उचित सजा दी जाय। उस मामले में आज तक तारीख पर तारीख लग रही है और किसी को कोई सजा नहीं मिली है।
जनता की इन मौतों का सिलसिला तुरन्त रोका जा सकता है यदि सम्बन्धित जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक लापरवाही का मुकदमा दर्ज करके जेल भेज दिया जाय। परन्तु जिस देश में पूरा शासन व शासक वर्ग लूट-खसूट में जुटा हो तो कौन किसको पकड़े और जेल भेजे? विदित है कि उक्त कुछ मामलों में मुकदमें दर्ज करने की औपचारिकता तो जरूर, जन दबाव के चलते हुई है, लेकिन किसी भी दोषी को आज तक जेल नहीं भेजा गया औ न ही उनसे वसूली करके पीडि़तों को कोई मुआवजे दिये गये हैं।