फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। नगर निगम में दो सौ करोड़ गबन के मामले में छोटे अधिकारियों पर कार्रवाई कर वाहवाही लूटने वाले सीएम खट्टर भ्रष्ट आईएएस अफसरों और राजनेताओं के खिलाफ एक्शन लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। हिम्मत करें भी तो कैसे? शासन चलाने के लिए वह इन्हीं आईएएस अफसरों पर पूरी तरह निर्भर हैं। कहने को मुख्यमंत्री खट्टर हैं लेकिन शासन की बागडोर उनके इर्द गिर्द रहने वाले चंद नौकरशाहों के हाथ में है जो उन्हें कठपुतली की तरह चला रहे हैं। राजनेताओं के बीच भी खट्टर की छवि कमजोर सीएम की है जो अपनी मर्जी से किसी मंत्री का कद छोटा-बड़ा करने की हैसियत नहीं रखते।
दो सौ करोड़ का घोटाला केवल चीफ इंजीनियर स्तर का अदना अधिकारी अपने दम पर नहीं कर सकता। विजिलेंस रिपोर्ट में आईएएस अफसरों से लेकर राजनेताओं तक नाम सामने आए थे लेकिन जांच और कार्रवाई के नाम पर पूर्व चीफ इंजीनियर डीआर भास्कर, ठेकेदार सतबीरा और वित्त नियंत्रक विशाल कौशिक को जेल भेज कर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। विजिलेंस जांच में आईएएस सोनल गोयल, एम शाईन और अनीता यादव के नाम आए थे। आईएएस यश गर्ग ने भी जाते जाते करोड़ों रुपयों के विकास कार्यों की फाइलें पास की थीं। गबन के कमीशन के रूप में राजनेता को फार्च्यूनर आदि कई बड़ी गाडिय़ां गिफ्ट किए जाने का खुलासा भी हुआ था। गिरफ्तार ठेकेदार सतबीरा को संरक्षण देने वाले मंत्री मूलचंद का नाम भी जांच में सामने आया था।
आईएएस अफसर और राजनेताओं का नाम आने के साथ ही विजिलेंस जांच डीआर भास्कर, सतबीरा और विशाल कौशिक को जेल भेजने के बाद थम गई। गबन में आईएएस सोनल गोयल के सक्रिय रूप से शामिल होने के बड़े साक्ष्य मिले थे। आईएएस एम शाईन और अनीता यादव ने भी करोड़ों रुपये के फर्जी विकास कार्यों की फाइलें पास कीं लेकिन उनसे गहन पूछताछ तक नहीं की गई। गबन के गवाह रहे नगर निगम के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों का तो यहां तक दावा है कि फर्जी विकास की फाइलों को पास करने का आदेश मुख्यमंत्री के निजी सचिव खुल्लर के पास से आता था, सीएम कार्यालय से आए इस मौखिक आदेश के आधार पर ही गबन और कमीशन का खेल चला। बताया जा रहा है कि मंत्री मूलचंद के पास तो ठेकेदार सतबीरा के नाम पंजीकृत कई फार्च्यूनर भी बरामद की गई थी। इन कारों का इस्तेमाल मंत्री कर रहे थे, लेकिन खट्टर की विजिलेंस उनसे पूछताछ करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।
आईएएस यश गर्ग भी इस जांच में फंसे हैं। उन्होंने अपने तबादले से एक दो दिन पहले ही करोड़ों रुपये के विकास कार्यो की फाइलें पास कीं, हालांकि उन्होंने इस आरोप का खंडन किया और फाइलों पर किए गए हस्ताक्षर उनके नहीं होने का दावा किया। दो साल से अधिक बीत चुके हैं हस्ताक्षर के असली या नकली होने की जांच भी पूरी नहीं हो सकी है। भ्रष्टाचार मुक्त शासन का ढिंढोरा पीटने वाले सीएम खट्टर भी विजिलेंस जांच में तेजी लाने का आदेश नहीं दे पा रहे हैं। अब हाईकोर्ट ने डीआर भास्कर को अपनी चल अचल संपत्ति का ब्यौरा देने का आदेश दिया है। बेहतर तो ये होता कि विजिलेंस जांच में जितने अधिकारियों और नेताओं का नाम सामने आया था उन सबकी चल अचल संपत्ति का हिसाब भी तलब किया जाता। जानकारों का कहना है कि ऐसा करने से खट्टर के भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के ढोल की पोल खुल जाएगी, इसीलिए खट्टर सरकार में दो सौ करोड़ गबन की जांच पूरी नहीं हो सकेगी।