फरीदाबाद (म.मो.) सरकार की जन एवं मज़दूर विरोधी दमनकारी नीतियों के विरुद्ध बीते सोमवार व मंगलवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया था। हड़ताल में देश भर के मज़दूरों व दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों ने भाग लिया। इनमें तमाम बैंक, बीमा तथा परिवहन से जुड़े कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। विदित है कि हड़ताल पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध मेहनतकश लोगों के न केवल आक्रोश का प्रदर्शन होता है बल्कि पूंजीवाद पर एक गंभीर चोट भी होती है।
लेकिन भाजपा सरकार इस तरह की हड़तालों की कोई परवाह नहीं करती। सरकार का चाल-चरित्र और चेहरा पूरे एक वर्ष तक चले किसान आन्दोलन ने पूरी तरह से नंगा करके सार्वजनिक कर दिया था। उस आन्दोलन ने सिद्ध करके दिखा दिया था कि यह सरकार झुकती तो है लकिन एक दो दिन की हड़ताल एवं प्रदर्शन से इसकी मोटी खाल पर जूं तक नहीं रेंगती। हड़ताल से जनता को परेशानी होती है तो होती रहे, बैंकों व दफ्तरों की दो दिन की हड़ताल से तो उल्टे सरकार को फायदा ही है। क्योंकि दो दिन का वेतन बच गया और इस समय का सारा बकाया काम लौटने पर उन्हें ही निबटाना है।
रही बात औद्योगिक मज़दूरों की तो उनका आन्दोलन इस शहर में मृत प्राय है। अधिकांश कारखानों में कोई संगठन है ही नहीं तो वहां हड़ताल का प्रश्न ही नहीं उठता। एस्कॉर्ट जैसे बड़े कारखाने में जहां सबसे पुरानी, बड़ी व साधन-सम्पन्न यूनियन है वहां कोई हड़ताल नहीं हुई। हिंद मज़दूर सभा से सम्बन्धित यूनियन वाले इस कारखाने में रविवार को काम करा कर सोमवार को साप्ताहिक अवकाश करा दिया गया और मंगलवार की छुट्टी के बदले आगामी रविवार को काम पूरा कर दिया जायेगा। इसी को तो कहते हैं कि हड़ताल की हड़ताल और वेतन का वेतन। इन्हीं के नक्शे-कदम पर चलते हुए लगभग तमाम फैक्ट्रियों में इस तरह की नौटंकी की गई। इसके बरक्स कुछ छोटी-छोटी कम्पनियों के न्यूनतम वेतन पाने वाले असंगठित मज़दूरों ने अपनी नौकरी को दांव पर लगा कर ईमानदारी से हड़ताल का वचन निभाया।
रोडवेज कर्मचारियों ने किया कमाल फरीदाबाद, पलवल, गुडग़ांव, चर्खी दादरी व हिसार जैसे कुछ अन्य जि़लों में भी इनकी हड़ताल इस कदर कामयाब रही कि इनके महाप्रबंधकों को खट्टर सरकार ने नोटिस जारी कर दिये। हड़ताल के लिये सरकार ने इन महाप्रबंधकों को दोषी ठहराते हुए नौकरी से बरखास्त तक करने की धमकी दे डाली।
अन्य कहीं की बात तो छोडिय़े फरीदाबाद व पलवल के महाप्रबन्धकों को दोषी ठहराने से पहले खट्टर ने स्थानीय विधायक एवं परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा को नोटिस क्यों नहीं दिया? महाप्रबंधक तो आते-जाते रहते हैं और जनता में उनकी कोई पकड़ भी नहीं होती जबकि मंत्री महोदय तो यहां के मूल निवासी होने के साथ-साथ जनता का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। खट्टर ने हड़ताल के लिये उन्हें दोषी ठहराते हुए मंत्री पद से हटाने का नोटिस क्यों नहीं दिया?