फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) जिले में गंभीर टीबी यानी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस (एमडीआर) टीबी की दवाएं बीते ढाई महीने से खत्म हैं। प्रधानमंत्री के देश को 2025 में टीबी मुक्त करने की घोषणा कर देने से ही यह बीमारी खत्म नहीं हो जाएगी। इसके लिए सच्ची नीयत और ईमानदारी से टीबी को खत्म करने के प्रयास होने चाहिए।
ढिंढोरा पीटने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 में देश से टीबी को समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान की घोषणा की थी, लेकिन उनकी डबल इंजन वाली सरकार के जिले फरीदाबाद में ही उनकी घोषणा जुमला साबित हो रही है। यहां मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस (एमडीआर) टीबी के मरीजों को बीते ढाई माह से दवा के लिए स्वास्थ्य विभाग के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। दवा नहीं मिलने से इनमें से अनेक टीबी मरीज गंभीर और घातक एक्टेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंस (एक्सडीआर) टीबी के मुंह में पहुंच सकते हैं, कई मरीजों की असमय मृत्यु भी हो सकती है। लगता है कि घोषणावीर प्रधानमंत्री ने बिना जरूरी तैयारियों के ही अपने नाम पर टीबी मुक्त भारत अभियान की घोषणा कर दी थी। जिसके नतीजे दवाओं की कमी के रूप में सामने आ रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार जून तक जिले में 113 एमडीआर मरीज थे जबकि छह मरीज एक्सडीआर थे। बताते चलें कि टीबी के वो मरीज जिन्होंने किसी कारण इलाज का कोर्स पूरा नहीं किया है या उनका इलाज बीच में ही छूट गया है, वह अधिक घातक और संक्रामक एमडीआर टीबी के शिकार हो जाते हैं। सामान्य टीबी मरीजों के मुकाबले एमडीआर मरीजों की दवा महंगी तो होती ही है साथ ही इसका कोर्स 18 से 24 महीने तक चलता है। यदि बीच में एक दिन भी दवा की खुराक नहीं ली गई तो पूरा कोर्स दोबारा करना पड़ता है। ऐसे में ढाई महीने तक मरीजों को दवा नहीं मिलना उनके लिए बहुत ही घातक है। टीबी के बैक्टीरिया मल्टी ड्रग्स के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं इससे यह दवा उन पर बेअसर हो जाती है। ऐसेे मरीज एक्सटेंसिवली ड्रग्स रेजिस्टेंट (एक्सडीआर) में तब्दील हो जाते हैं। इनका इलाज बहुत ही मुश्किल और लंबा चलता है, इनमें बहुत ही कम लोग स्वस्थ हो पाते हैं अधिकतर की मृत्यु ही होती है।
एमडीआर और एक्सडीआर मरीज संक्रमण के लिहाज से भी अन्य लोगों के लिए सामान्य टीबी रोगियों से अधिक खतरनाक होते हैं, ऐसे में इनका पूर्ण और पर्याप्त इलाज होना बहुत ही जरूरी होता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी दवा की व्यस्था करना तो दूर मरीजों को भगा रहे हैं।
दो-दो मंत्रियों के होते हुए जिले में टीबी की दवा लंबे समय से खत्म होना इन मंत्रियों ही नहीं केंद्र और राज्य की सरकारों के निकम्मेपन का सुबूत हैं। आयुष्मान योजना हो या किसी प्राथमिक या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर से लेकर परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा, विधायक सीमा त्रिखा सभी श्रेय लेने और फोटो खिंचवाने पहुंच जाते हैं। दवा के बिना धीरे धीरे घुल कर मरने को मजबूर इन नागरिकों और वोटरों के हक में अधिकारियों से सवाल करते या सरकार से दवाओं की मांग करते इनमें से कोई नजर नहीं आ रहा।
बीके अस्पताल की ही तरह के हालात प्रदेश के अन्य जिलों के भी हैं लेकिन निकम्मे अधिकारियों की नीयत ही इन्हें दुरुस्त करने की नहीं है। अंबाला के सीएमओ दो करोड़ रुपये तक का लोकल परचेज कर सकते हैं, सीएमओ फरीदाबाद को भी चालीस लाख रुपये तक लोकल परचेज का अधिकार है। बावजूद इसके कोई भी अधिकारी मरीज और तीमारदारों के लाभ की नहीं सोचता। चालीस लाख हों या दो करोड़, खर्च तो होते हैं लेकिन कमीशनखोरी और बंदरबांट के लिए, न कि अस्पताल की सुविधाएं बढ़ाने, दवाओं की कमी को पूरा करने या मरीजों के हित के अन्य कार्यों के लिए।
बीके अस्पताल में खराब हालात सिर्फ टीबी विभाग के ही नहीं हैं। मॉर्चरी में शवों को संरक्षित रखने वाले डीप फ्रीजर अर्से से खराब पड़े हैं। शवों को, खासकर लावारिस शवों को सडऩे के लिए छोड़ दिया जाता है। पीएमओ और सीएमओ दोनों ही यहां बैठते हैं उन्हें इसकी जानकारी भी है। चालीस लाख रुपये तक लोकल परचेज का अधिकार होने के बावजूद सीएमओ हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और सीएम खट्टर की डबल इंजन सरकार को चाहिए कि टीबी जुमलों से नहीं दवा से खत्म होगी, यदि डबल इंजन सरकार की नीयत सही है तो सभी जिलों में सरकारी अस्पतालों की कमियों को दुरुस्त कराएं और टीबी की पर्याप्त दवाएं समय पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।