ढिंढोरा पीटने से नहीं होते स्कूलों में दाखिले

ढिंढोरा पीटने से नहीं होते स्कूलों में दाखिले
June 08 15:43 2024

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सरकार और शिक्षा निदेशालय द्वारा दो साल से पीटा जा रहा ज़ीरो ड्रॉप आउट का ढिंढोरा जिले में बेकार साबित हो रहा है। तमाम मशक्कत के बावजूद यहां 16 स्कूलों में एक भी बच्चा दाखिला लेने नहीं पहुंचा। शिक्षा विभाग के एमआईएस पोर्टल पर शून्य दाखिला दिखाने पर इन स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को तलब किया गया है, मानो उन्हें कोई जादू की छड़ी थमा दी जाएगी और लौट कर वो बड़ी मात्रा में छात्रों का एडिमशन करेंगे।

जीरो ड्रॉप आउट स्कीम फ्लॉप तो होनी ही है। शिक्षा के लिए जो चीजें जरूरी हैं जैसे पर्याप्त स्टाफ, टीचर, छात्रों के पढऩे के लिए आदर्श हवादार कमरे, विद्यालयों में पर्याप्त मात्रा में छात्र और छात्राओं के लिए अलग अलग शौचालय, बिजली, पेयजल आदि की सुविधा, सरकार इन पर तो कोई काम नहीं कर रही लेकिन दाखिले के पीछे पड़ी है। मान लिया अभिभावकों ने दाखिला दिला भी दिया तो जब स्कूल में पढ़ाने वाला यानि शिक्षक का ही पद खाली होगा तो बच्चा पढ़ाई क्या करेगा?

सुधी पाठकों को बताते चलें कि शिक्षा निदेशालय ने दिसंबर 2023 में दायर एक केस के पक्ष के रूप में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में शपथपत्र दाखिल कर बताया है कि सरकारी स्कूलों में छात्रों के लिए जरूरी 8240 क्लासरूम नहीं हैं। 131 सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था ही नहीं है, इन स्कूलों में पढऩे आने वाले हज़ारों विद्यार्थियों को घंटो प्यासे रहना पड़ता है या फिर घर से पानी लाना पड़ता है।

236 सरकारी स्कूलों में बिजली कनेक्शन नहीं है। सरकार एक ओर स्मार्ट स्कूल और स्मार्ट कक्षाओं के दावे कर रही है, बच्चों को कंप्यूटर साइंस, रॉकेट साइंस, रोबोटिक्स, आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस जैसे आधुनिक कोर्स पढ़ाने के झूठे दावे कर रही है, दूसरी और बिजली कनेक्शन नहीं होने के कारण इन 236 स्कूलों के बच्चे गर्मी, सर्दी सहते हुए बाड़े में रखे गए पशुओं की तरह बैठने को मजबूर हैं।

बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ और स्वच्छ भारत अभियान का झूठ भी उन 538 सरकारी विद्यालयों में खुल जाता है जिनमें छात्राओं के लिए शौचालय नहीं हैं। छात्र तो और भी ज्यादा स्वच्छता के अधिकार से वंचित हैं, 1047 विद्यालयों में लडक़ों के लिए शौचालय नहीं है। शिक्षा निदेशालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के प्रति कितने गंभीर हैं इससे समझा जा सकता है। सरकारी स्कूलों में शौचालय, पीने के पानी, बिजली कनेक्शन जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है लेकिन शिक्षा विभाग ने 10,675.99 करोड़ रुपये की ग्रांट का इस्तेमाल ही नहीं किया और सरकार को लौटा दिया गया।

सरकार जीरो ड्रॉप आउट स्कीम तो लागू कराने का दबाव बना रही है लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के खाली पद भरने को तैयार नहीं है। फरवरी 2024 को शिक्षा निदेशालय द्वारा हाईकोर्ट को दी गई रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रदेश में पीजीटी के 11,341 और टीजीटी के 16,537 पद रिक्त हैं। शिक्षा विभाग में टीजीटी के कुल 41,429 स्वीकृत पद हैं और छात्रों की संख्या के अनुसार 39,748 शिक्षकों की आवश्यकता है। इसी तरह से पीजीटी के प्रदेश में कुल 43,675 स्वीकृत पद हैं और छात्र संख्या के अनुसार पीजीटी के 37,737 शिक्षकों की आवश्यकता है। स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इसलिए एचकेआरएन ने अनुबंध पर 3,915 टीजीटी और 418 पीजीटी उम्मीदवारों को नियुक्त किया है जबकि आवश्यकता 7,651 टीजीटी और 3,330 पीजीटी की है।

सरकारी ढिंढोरेबाजी से परेशान कुछ शिक्षकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकार केवल दिखावा करती है। शिक्षकों को पूरे साल गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाकर रखा जाता है। वैसे ही स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, एक ही शिक्षक द्वारा कई कई विषयों की कक्षा लेकर किसी तरह स्कूलों का संचालन करवाया जा रहा है। ऐसे में अभिभावकों का सरकारी स्कूलों से मोहभंग हो गया है।

एक अप्रैल से पूरे जिले में स्कूल जाने की उम्र वाले अपंजीकृत बच्चों की पहचान करने का सर्वे किया गया, बच्चे मिले, प्रवेश दिलाने के लिए उनके अभिभावकों का प्रेरित किया गया लेकिन अधिकतर ने दाखिला नहीं दिलवाया। दिल्ली के विद्यालयों का उदाहरण देते हुए शिक्षकों ने कहा कि यदि बच्चों को स्कूलों के प्रति आकर्षित करना है तो दिल्ली जैसे स्कूल और शिक्षकों की तैनाती करनी होगी, अन्यथा हमेशा इसी तरह ढिंढोरा पीटा जाएगा और प्रवेश नहीं होने पर प्रधानाचार्यों पर दबाव बना कर उन्हें प्रताडि़त किया जाएगा, इससे न तो शिक्षा में सुधार होगा और न ही बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा।

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने पर एक और गजब की बात सामने आई है, नाम न छापने की शर्त पर ग्रामीणों ने बताया कि उनके बच्चे अपने गांव के सरकारी स्कूल में न पढक़र निजी स्कूलों में पढऩे के लिए जाते हैं, कुछ स्कूलों ने तो दूर दराज के बच्चों को लाने के लिए बसों की भी व्यवस्था कर रख्री है।

लेकिन सरकार द्वारा दिए जाने वाले वजीफे, मिड डे मील व अन्य सुविधाओं को प्राप्त करते रहने के लिए बच्चों के नाम अपने सरकारी स्कूलों में लिखवा रखे हैं। बड़े पैमाने पर हो रही ठगी का लाभ जहां ग्रामीणों को हो रहा है वहीं स्कूल के शिक्षकों को भी हो रहा है। विदित है यदि स्कूल में बच्चे ही नहीं होंगे तो उनकी तैनाती भी वहां नहीं रह सकती, जाहिर है अपनी तैनाती को स्कूल में बनाए रखने या दूसरे शब्दों में स्कूल का अस्तित्व बनाए रखने के लिए इन बच्चों के नाम स्कूल के रजिस्टर में लिख लिए जाते हैं।

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Mazdoor Morcha
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