धमकियों के बीच कारावल नगर के पांच हज़ार बादाम श्रमिक उचित मज़दूरी की मांग पर कर रहे प्रदर्शन

धमकियों के बीच कारावल नगर के पांच हज़ार बादाम श्रमिक उचित मज़दूरी की मांग पर कर रहे प्रदर्शन
March 18 05:41 2024

आस्था सव्यसाची
सर्दियां धीरे धीरे जा रही हैं, इसके साथ ही रात भर भिगो कर रखे गए बादाम को सुबह नाश्ते में खाने का मौसम भी शुरू हो रहा है, भारतीय परंपरा में भीगे हुए बादाम खाना याददाश्त मज़बूत करने वाला व स्वास्थ्य के लिए अन्य तरीकों से फायदेमंद माना जाता है। भारत में बादाम के कुल आयात में अमेरिका के कैलिफोर्निया का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है। अमेरिका के कृषि विभाग की विदेश कृषि सेवाओं का अनुमान है कि बाजार वर्ष (एमवाई) 2023-24 में भारत एक लाख सत्तर हजार मीट्रिक टन बादाम का आयात करेगा।
लेकिन ये चमकते हुए बादाम जो बागान से हमारी मेज तक पहुंचते हैं उनको यहां तक पहुंचने में अनेक श्रमिकों के कठिन परिश्रम और पसीने के बीच से होकर गुजरना पड़ता है। क्या कभी इन श्रमिकों को ये बादाम दिए जाएंगे कि वे अपने बच्चों को भी खिला सकें? यह यक्ष प्रश्न कारावल नगर की संकरी गलियों में गूंजता रहता है। वो कारावल नगर, जहां बीते एक मार्च से पांच हजार श्रमिक जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं, अपनी मज़दूरी बढ़ाने के लिए धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

कारावल नगर में पचास से अधिक गोदाम हैं जिनमें इन बादामों को ठूंठ, डंडियों से अलग कर उनके छिलके उतारे जाने का काम होता है। सबसे पहले इन बादामों को रोलर और बीनने वाली जाली में डाला जाता है, यहां बादाम का ऊपरी छिलका, अंदरूनी छिलका और उसके साथ बाग से आने वाली अन्य गंदगियां जैसे डंठल, मिट्टी, कंकड़ आदि अलग किए जाते हैं। ये आकार के आधार पर भी अलग किए जाते हैं और फिर अलग अलग आकार के बादामों के पैकेट बना कर बेचने के लिए बाजार भेजा जाता है। करीब सौ परिवारों की रोजी रोटी इन्हीं गोदमों पर निर्भर है। ये बादाम दिल्ली के खारी बावली से कारोबार चलाने वाले बड़े सेठ कैलिफोर्निया से मंगाते हैं और कारावल नगर के गोदाम मालिकों को अपने बादाम के छिलके उतारने, साफ करने, बीनने और पैक करने का ठेका देते हैं। इसके लिए ये गोदाम मालिक श्रमिकों को काम पर रखते हैं। इनमें हलिंग, शेलिंग और पैकेजिंग मशीन चलाने के लिए प्रमुख रूप से पुरुष कर्मचारी रखे जाते हैं जबकि महिलाओं को बादाम साफ करने और छांटने का काम मिलता है।

ये गोदाम कारावल नगर के आवासीय क्षेत्र में बनाए गए हैं जो कि घोषित औद्योगिक क्षेत्र से अलग हैं। इनमें से किसी भी गोदाम का लाइसेंस नहीं है और न ही ये वैध हैं। बड़े बड़ेे बंगलों के बेसमेंट को उनके मालिक गोदाम की तरह इस्तेमाल करते हैं। कारावल नगर मज़दूर यूनियन केएमयू के संयोजक योगेश बताते हैं कि अगर आप इन बंगलों की लाइन से गुजरेंगे तो पता नहीं चलेगा कि यहां गोदाम चल रहे हैं। वे अपने गोदाम औद्योगिक क्षेत्र में नहीं चलाते क्योंकि कमोबेश संभावना रहती है कि श्रम विभाग की ओर से निरीक्षण किया जाए। दूसरे, औद्योगिक क्षेत्र में कोई भी श्रमिक इतनी कम मज़दूरी पर काम नहीं करेगा।

इस इलाके में रहने वाले अधिकतर बादाम मज़दूर बिहार से हैं और वहां की अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी मे बिंद जाति के हैं। मशीनों पर अधिकतर पुरुष मज़दूर काम करते हैं, उन्हें प्रति किलोग्राम बादाम तैयार करने का पांच रुपये मिलता है। हाथ का काम अधिकतर महिलाएं करती हैं उन्हें दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से भुगतान किया जाता है। कई श्रमिकों से बात करने पर अधिकतर का कहना था कि शायद ही कोई भाग्यशाली दिन होता हो जिस दिन वो तीन सौ रुपये कमा पाते हों, यह कितना कम है इससे समझा जा सकता है कि दिल्ली सरकार के श्रम कानून के तहत नौसिखुए मज़दूर के लिए प्रतिदिन न्यूनतम मज़दूरी 673 रुपये तय है। इन बादाम श्रमिकों की औसत दैनिक मज़दूरी दो सौ रुपये के आसपास रहती है और कुछ दिन ऐसे भी आते हैं कि केवल पचास रुपये की दिहाड़ी ही बन पाती है। उनके लिए कोई साप्ताहिक छुट्टी तो है नहीं, बल्कि एक दिन में 14 से 15 घंटे तक काम करना आम बात है।

केएमयू के एक और संयोजक विशाल कहते हैं कि यहां अनेकों श्रमिक हैं जो बीते दो दशक से छोटे और गंदे कमरों में जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। इसके विपरीत गोदाम के मालिकों ने कई बंगले बना लिए, एक गोदाम से तरक्की करते हुए कई गोदाम बना डाले, इन लोगों ने अपना कारोबार पास ही स्थित न्यू ट्रोनिका सिटी तक फैला लिया है। हम अपने बच्चों की परवरिश किस तरह करेंगे, क्या उन्हें कटोरा भर चावल पाने का भी हक़ नहीं?

पचास वर्ष की हो चुकी गायत्री देवी (नाम परिवर्तित) बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से यहां दो दशक पहले आई थीं, बताती हैं कि करीब बीस साल पहले जब बादाम के छिलके हाथ से ही उतारे जाते थे, उस समय हमें एक कट्टा (करीब 20-21 किलो) बादाम छीलने, छांटने और भरने के बीस रुपये मिलते थे। लगातार प्रदर्शन करने के बाद हमें इसका चालीस रुपया और फिर बढ़ा कर साठ रुपये कट्टा दिया जाने लगा।

बाद में जब बादाम के छिलके उतारने वाली मशीनें आ गईं तो उन्हें चलाने के लिए मुख्यत: पुरुष श्रमिक रखे जाने लगे। छंटाई और बीनाई अभी भी महिलाएं ही हाथ से करती हैं। हमने 2012 में कारावल नगर मज़दूर यूनियन के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया था, तब कहीं जा कर मज़दूरी एक रुपये से बढ़ा कर दो रुपये प्रति किलोग्राम की गई थी। उस समय मालिकों ने प्रति वर्ष एक रुपये मज़दूरी बढ़ाने का भी वादा किया था लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ। पिछले बारह वर्ष से हमारी मज़दूरी स्थिर है जबकि इस दौरान हर वस्तु के दाम कई गुना बढ़ चुके हैं। आटा, चावल, दालें, सब्ज़ी, खाद्यतेल, गैस सबके दाम बढ़े हैं।

इन गोदामों में 2003 से काम करने वाली अन्य श्रमिक कुसुम सिंह (नाम परिवर्तित) ने बताया कि हम लोग बादाम बीनने के काम में लगे श्रमिकों का मेहनताना 12 रुपये प्रति किलोग्राम और मशीन पर काम करने वालों का मेहनताना दस रुपये प्रति किलोग्राम करने की मांग कर रहे हैं। योगेश इसमें जोड़ते हैं कि हम ये भी मांग कर रहे हैं कि गोदाम मालिक यह सुनिश्चित करें कि हर श्रमिक को प्रत्येक माह की पांच तारीख तक वेतन मिल जाए। उनके काम करने के घंटे भी प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक नहीं रखे जाएं।

गायत्री बताती हैं कि परिवार में सात सदस्य हैं, हम लोग किसी तरह अपने बच्चों को पढऩे के लिए सरकारी स्कूल भेजते हैं, मैं और पति दोनों मिल कर परिवार का पेट पालने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, दो रुपये प्रति किलोग्राम से हमारा परिवार चला पाना मुश्किल है। हमारी मांगे बहुत सच्ची हैं, हम केवल अपना हक मांग रहे हैं, हमें अपनी मेहनत का सही मुआवजा दिया जाए। हम अपने बच्चों की परवरिश किस तरह करें, क्या वे एक कटोरा भर चावल पाने के भी हकदार नहीं हैं।

पंद्रह साल से बादाम गोदामों में काम कर रहीं अनीता देवी से जब हमने पूछा तो उदास चेहरे पर निस्तेज मुस्कान के साथ बोलीं कि किसी किसी दिन हमे दो रोटी खाने को मिल पाती है, अधिकतर दिन तो एक रोटी से ही गुजारा करना पड़ता है। बादाम के छिलके तोडऩे वाली मशीन पर काम करने वाले करीब तीस वर्षीय सुनील कुमार (नाम परिवर्तित) के परिवार के सभी सदस्य इन्हीं गोदामों में काम करते हैं। सुनील कहते हैं कि मालिक हमें कभी रात में बारह बजे बुला लेता है तो कभी भोर पहर चार बजे, कभी कभी तो ऐसा भी हुआ कि हम लोग भोजन करने बैठे और मालिक का बुलावा आ गया, हमें भोजन छोड़ कर गोदाम जाना पड़ता है, अगर हम थोड़ा भी देर से पहुंचते हैं तो मालिक हमें निकालने की धमकी देता है। ऐसा समय भी आता है जब हम लगातार दो-तीन दिन तक गोदाम में काम करते हैं। बताते हैं कि जबसे हमने विरोध प्रदर्शन शुरू किया है मालिकों ने हमारी पिछले महीने की मज़दूरी रोक दी है। जब हम मज़दूरी मांगने गए तो मालिक ने कहा कि पहले काम पर लौटो। तुम्हें पिछले महीने का वेतन इसी शर्त पर मिलेगा जब तुम काम पर लौट आओगे।

बीस वर्षीय राम कुमार (नाम परिवर्तित) का परिवार नालंदा बिहार से यहां तब आया था जब वो बच्चे थे। वो बताते हैं कि उन्होंने इन गोदामों में दस वर्ष की आयु में काम शुरू किया था, तब से आज तक मज़दूरी उतनी ही बनी हुई है लेकिन कमरे का किराया इस दौरान 150-200 रुपये से बढ़ कर 2000 से 2500 रुपये प्रति माह हो चुका है। मैं प्रतिमाह मुश्किल से छह से सात हज़ार रुपये ही कमा पाता हूं।

लंबे अर्से से वेतन बढ़ाए जाने की मांग की सुनवाई नहीं होने पर एक मार्च को इन श्रमिकों ने एक रैली आयोजित की, जिसमें गोदाम मालिकों से वेतन बढाने की मांग की गई। इसके बाद तीन मार्च को एक औपचारिक ज्ञापन प्रधानमंत्री कार्यालय में दिया गया जिसमें उनकी समस्या को ध्यान में रख कर हस्तक्षेप करने की मांग की गई है। इसके साथ ही संबंधित अथॉरिटी, मुख्यमंत्री दिल्ली, श्रम मंत्री और श्रम न्यायालय को भी पत्र भेज कर मामले का संज्ञान ले कर कार्रवाई करने की गुहार लगाई है। इलाके के सभी श्रमिकों ने काम पर जाना बंद कर दिया है, परिणाामस्वरूप बीते दस दिन से सभी गोदाम बंद पड़े हैं। पहले से ही गरीबी से जूझ रहे श्रमिकों के लिए तीन दिन का वेतन छूटना उन्हें बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, बावजूद इसके ये लोग अपना हक पाने के लिए दृढ़ता से डटे हुए हैं।

हर एक- दो साल में गंभीर स्वास्थ्य, जैसे सांस की समस्या के चलते एक श्रमिक की मौत हो जाती है श्रमिकों की काम करने की गंभीर और निराशाजनक परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए सुनील बताते हैं कि जब हम बादाम के छिलके उतारते हैं तो मशीन से बहुत बड़ी मात्रा में छिलकों की धूल और गर्द उड़ती है, हालात ये होते हैं कि खुद मालिक भी नाक पर कपड़ा लगाए या मास्क लगाए बिना वहां एक मिनट भी खड़ा नहीं हो सकता। योगेश इंगित करते हैं कि मशीन की इसी धूल के कारण प्रत्येक एक दो वर्ष में एक कर्मचारी सांस के रोग जैसी गंभीर समस्या के कारण मौत का शिकार हो जाता है। मशीनों से निकलने वाला बुरादा और धूल इनकी व्यवस्था में शामिल हो चुकी है। कुछ वर्ष पहले एक 35 वर्षीय श्रमिक गंभीर रूप से बीमार पड़ा, हमें लगा कि उसे खांसी आ रही है और टीबी हो सकती है लेकिन बाद में जांच में पाया गया कि उसके पूरे शरीर में बादाम के छिलकों का महीन बुरादा जमा हो चुका है, उचित इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई।

सैफोलाइट जो हाइड्रोक्सीमीथेन सल्फिनिक एसिड का सॉल्ट है, इसका इस्तेमाल बादाम को ब्लीच करने के लिए किया जाता है ताकि वे ताजे और चमकदार दिख सकें। सैफोलाइट का इस्तेमाल टेक्स्टाइल प्रिंटिंग उद्योगों में डिस्चार्ज एजेंट के रूप में (पालीमर या सिंथेटिक रबर बनाने के दौरान पॉलीमराइजेशन प्रक्रिया में रेडॉक्स कैटेलिस्ट बनाकर ) किया जाता है।
सैफोलाइट बनाने वाली प्रमुख कंपनी सिलोक्स इंडिया की मटीरियल सेफ्टी डेटा शीट के अनुसार यह रसायन खुजली, आखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत के साथ ही गर्भस्थ शिशु में लैंगिक दोष उत्पन्न करने के साथ उसे खराब कर सकता है (यदि किसी तरह संपर्क में आए तो)। कंपनी की ओर से जारी चेतावनी के अनुसार बिना सुरक्षा उपाय की जानकारी के इसे न छुएं। इसकी धूल, धुआं, भाप, धुंध, स्प्रे आदि को सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचने से बचें। केवल खुली हुई और हवादार जगह मे ही इसका इस्तेमाल करें, इस्तेमाल से पहले सुरक्षा दस्ताने, कपड़े, आंख व चेहरे का सुरक्षा कवच पहनें।

सुनील दुखभरे लहजे में बताते हैं कि यदि आज मैं मशीन पर काम करता हूं तो मेरा लार, कफ आदि इस रसायन से एक सप्ताह तक संक्रमित रहेंगे। मालिक तो चैन से खाते-सोते हैं और हमारा जीवन इन खतरनाक रसायनों के सांस में साथ जाने से तिल तिल कर खत्म हो रहा है। यह सब जानने के बाद हम ये काम कर रहे हैं क्योंकि हम असहाय हैं, हमारे पास आजीविका का दूसरा विकल्प नहीं है। अगर हम लोगों का ठीक से स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति दसियों गंभीर बीमारियों से ग्रस्त पाया जाएगा, हमारी काम करने की परिस्थितियां इतनी ही खतरनाक हैं। गायत्री कहती हैं कि पहले बादाम के छिलके नर्म करने के लिए मालिक हमसे तेजाब का इस्तेमाल कराते थे, जिससे हमारे हाथ जख्मी हो जाते थे कभी कभी तो उनमें से खून भी निकल आता था। विभिन्न प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के कारण हमारे हाथों में लगातार खुजली होती है साथ ही और त्वचा रोग की शिकायतें आम हो गई हैंँ।

आवासीय क्षेत्र में चलाए जा रहे ये सभी गोदाम अवैध हैं
योगेश ने गोदाम मालिक राकेश मिश्रा, प्रमोद, वासुदेव मिश्रा, मनोज, शंकर, चरन सिंह, सुनील, बबलू, संदीप, कैलाश, सचिन, इंद्राज, उत्तम सिंह, प्रमोद, विष्णु और पप्पू के नाम उजागर करते हुए बताया कि इनमें से अधिकतर को स्थानीय भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट और पार्षद सत्पाल सिंह का समर्थन प्राप्त है। गोदाम मालिक वासुदेव मिश्रा तो खुद भी नगर निगम पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ा था और मोहन सिंह बिष्ट ने उसे अपना समर्थन दिया था। लेकिन बाद मे सत्यपाल ने पार्षद चुनाव में जीत हासिल की। वह बताते हैं कि जबकि ये सभी गोदाम अवैध हैं लेकिन मालिक एमएलए को मोटा चंदा देने के साथ ही आवासीय क्षेत्र में गोदाम चलाने के लिए स्थानीय पुलिस को भी मोटी रिश्वत देते हैं। कुछ गोदामों में तो बाल श्रमिक, यहां तक कि छह से आठ साल जितनी छोटी उम्र के बच्चों से काम कराया जा रहा है। इसकी कई बार शिकायत की जा चुकी है लेकिन ऐसे मामलों में मालिक बाल श्रमिकों को छिपा देते हैं।

कारावल नगर के श्रमिक जिंदाबाद, किसी को अपनी मज़दूरी चोरी नहीं करने देंगे
विशाल बताते हैं कि किस तरह उनके विरोध प्रदर्शन को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। बताते हैं पहले तो स्थानीय पुलिस ने हमारे आंदोलन को रोकना चाहा, लेकिन हमने उन्हें बताया कि यह श्रम कानूनों का मामला है और हम शांतिपूर्ण ढंग से रैली निकाल रहे हैं, किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे। पुलिस से दबाव डलवाने में नाकाम रहे गोदाम मालिकों ने स्थानीय गुंडों और अराजक तत्वों को शराब बांटी। शराब पिलाने के बाद इन अराजकतत्वों को लाठी-डंडे देकर क्षेत्र में जाकर श्रमिकों को पीटने के लिए भेजा गया। गोदाम मालिकों की मंशा थी कि एसा होने पर श्रमिक भी मारपीट पर उतारू हो जाएंगे और इसके बाद पुलिस से उन्हें गिरफ्तार करवा कर विरोध प्रदर्शन को तोड़ दिया जाएगा।

गोदाम मालिकों ने श्रमिकों को धमकी दी कि तुम्हें कहीं काम नहीं मिलेगा और तुम लोग सडक़ों पर भूखे मरोगे। अनीता बताती हैं कि उन्होंने हमारा सहयोग करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी श्रमिकों को भडक़ाने की साजिश की। गायत्री देवी कहती हैं कि मिल मालिक हम लोगों से बातचीत करने के इच्छुक नहीं हैं। ये किसी कीमत पर बात नहीं कर रहे उल्टे धमकी दे रहे हैं कि वे लोग अपने गोदाम ऐसी जगह शिफ्ट कर लेंगे जहां इससे भी सस्ते श्रमिक मुहैया हैं, शायद एक रुपये या पचास पैसे प्रति किलोग्राम। हमने उन्हें चुनौती दी है कि वे ऐसा करें, कारावल नगर के श्रमिक जिंदाबाद। हम अपनी आजीविका चलाने के लिए कहीं और काम कर लेंगे लेकिन किसी को अपने श्रम की चोरी नहीं करने देंगे।
गोदाम मालिक इलाके में पोस्टर चस्पा करवा रहे हैं जिनमें बताया गया है कि कारावल नगर के बादाम श्रमिकों को अन्य राज्यों की तुलना में अधिक वेतन दिया जा रहा है। केएमयू के कार्यकर्ता राकेश ने बताया कि ये एक झूठ है जिसका हमने पर्दाफाश किया है।

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Mazdoor Morcha
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