फरीदाबाद (म.मो.) सैक्टर-15 ए स्थित डीसी आवास के सौंदर्यीकरण के लिए 45 लाख रुपये का एस्टीमेट पास किया गया है। यह एस्टीमेट डीसी साहब ऊपर से खुद ही फटाफट पास करवा के लाये हैं ताकि काम मे देरी न हो।
बता दें कि फरीदाबाद सैक्टर-15 ए में स्थित आफिसर्स कालोनी में डीसी व डीसीपी के अलावा 23 और बड़े अधिकारियों व जजों के मकान हैं। एक मकान वन विभाग के डीएफओ का है। इसके अलावा 36 मकान क्लास-3 व 4 कर्मचारियों के है। यानी डीसी और डीसीपी की कोठी के अलावा लगभग 60 मकान और है।
इन 60 मकानों के लिये भी पीडब्ल्यूडी विभाग ने साल भर की मेंटनेंस का कुल एक करोड़ रुपये का एस्टीमेट बनाकर ऊपर भेजा हुआ है। जो राम जाने कब पास होगा और कब आयेगा और कब काम होगा। लेकिन डीसी साहब क्योंकि अपनी कोठी का पूरा लुत्फ उठाने की जल्दी में थे तो वो अपना एस्टीमेट हाथों हाथ पास करवा लाये। एक तो हाथों हाथ और ऊपर से सिर्फ एक अधिकारी के घर की मरम्मत के लिए इतना मोटा बजट, जितने में की 200 गज में एक नया मकान बनकर तैयार हो जाये।
समझने वाली बात यह है कि पूरी कालोनी के लिए मात्र एक करोड़ रुपये का बजट पास होने गया है। जबकि उसका करीब आधा बजट तो डीसी साहब अपने लिये ही ले आये। यहां एक और बात गौरतलब है कि एक करोड़ के बजट में भी कई बड़े अफसरों के मकान आते हैं यानी इसमें से भी बड़ा हिस्सा उनके मकानों पर लग जायेगा। बाकी छोटे कर्मचारियों के पल्ले कुछ भी पड़ता नजर नहीं आ रहा है व थक हार कर मजबूरन अपने खर्चे पर घर मरम्मत आदि के छोटे-मोटे काम करवाते हैं। बता दे कि इसके अलावा डीसी, डीसीपी, सैशन जज, कमिश्रर इन सब के घरों में साल भर मरम्मत और रखरखाव का काम चलता ही रहता है। हर नया अधिकारी आते ही लाखों रुपये के काम अपने आवास पर करवा लेता है। जबकि छोटे कर्मचारियों को मामूली कामों के लिए भी बजट न होने का बहाना बनाकर टाल दिया जाता है।
अभी नये आये डीसी जितेन्द्र यादव ने 2.5 लाख से ऊपर के अपने मकान में साल भर पहले लगे वॉल पेपर और टाईल्स पसंद न आने पर उखड़वा दिये जो अब नये लगेंगे।
कुछ दिन बाद नये डीसी साहब के आने पर उनका मिजाज कुछ अलग ही होगा तो वह इसे उखड़वा कर नये लगवायेंगे। इसी को कहते है माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम। ये सारा खर्चा उस गरीब करदाता की खून पसीने की कमाई से जा रहा है। जिसे दो वक्त की रोटी के लिए खून पसीना एक करना पड़ता है। ऐसे ही पूरे हरियाणा भर में अफसर फिजूलखर्ची में लगे हैं और मंत्रियों का तो कहना ही क्या।
अगर पूरे हरियाणा में नेताओं और बड़े अफसरों के सिर्फ मकानों और गाडिय़ों के साल भर के खर्च का विवरण जुटाया जाये तो शायद ये सैकड़ों करोड़ रुपये में बैठेगा। कई जगह तो अफसर कई-कई एकड़ की कोठियों में जमे बैठे हैं। इतने बड़े घर की साज सज्जा और रखरखाव पर होने वाले खर्च की कल्पना कीजिए। जब ऐसे अफसर, मंत्री और जज खोरी में कब्जे को लेकर उन गरीबों पर सवाल उठाते हैं, उनके घर तुड़वाते हैं जिनको दो वक्त रोटी मुश्किल से मयस्सर है तो हमें भारत का संविधान और लोकतंत्र बौना नजर आता है। क्या यही संविधान द्वारा प्रदत्त सभी नागरिकों की समानता का अधिकार है?