फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) किसी थाने के ऊपर साइबर क्राइम का फट्टा लगाने से वह साइबर अपराधों को पकडऩे लायक नहीं बन जाता, इसके लिए साइबर एवं कंप्यूटर साइंस को समझने की योग्यता का होना अति आवश्यक है। इसके साथ-साथ काम करने की नीयत व ईमानदारी का होना उससे भी कहीं अधिक जरूरी है।
मौजूदा हालात तो ऐसे हैं कि अपराधियों का विवरण दिए जाने के बावजूद भी पुलिस की नीयत उन्हें पकडऩे के बजाय ले-दे कर काम को निपटाने की होती है। इसका जीता जागता उदाहरण दिनांक 14 मई को शिव कुमार जोशी एडवोकेट द्वारा थाना सेक्टर सात में दर्ज कराई गई एफआईआर नंबर 372 है। जेब से मोबाइल फोन चुराने की वारदात के करीब छह सात घंटे बाद दर्ज की गई एफआईआर पर तुरंत कार्रवाई करने के बजाय पुलिस वाले मुंह ढक कर सोते रहे। इस दौरान अपराधियों ने उनके अकाउंट से 1,36,520 रुपये भी निकाल लिए, इसकी सूचना भी जोशी ने पुलिस को दी, उसके बाद भी पुलिस के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। शिकायतकर्ता जोशी ने अपने प्रयासों के बल पर वारदात करने वाले ठग का फोटो भी प्राप्त कर लिया तथा उनके बैंक अकाउंट से निकला हुआ पैसा जिन दो लोगों के पास पहुंचा था उनको भी उन्होंने ट्रेस कर लिया। अपनी सारी मेहनत एवं कार्रवाई से जब उन्होंने पुलिस को अवगत कराया तो पुलिस अपराधियों तक पहुंच तो गई लेकिन उनको उठा कर लाने के बजाय केवल थाने में आने का नोटिस देकर आ गई।
हफ्तों तक पुलिसिया कार्रवाई देखते रहने के बाद शिकायतकर्ता जोशी पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा तथा डीसीपी क्राइम मुकेश मल्होत्रा के चक्कर लगा कर अब आराम से बैठ गए हैं। फिलहाल उन्होंने मान लिया है कि पुलिस के संरक्षण में काम करने वाले अपराधियों को पकडऩे व माल बरामद करने में पुलिस की कोई रुचि लगती नहीं है।
अब डीजीपी कपूर साहब के लंबे चौड़े आकर्षक दावों की रौशनी में जोशी को कुछ उम्मीद तो जगी है, देखना है कि उनकी ये उम्मीद पूरी होती है या कपूर के दावे भी किसी दिवास्वप्न की तरह ही भंग होने वाले हैं।