मजदूर मोर्चा ब्यूरो ईएसआई कॉर्पोरेशन के महानिदेशक पद पर अब तक अनेकों आईएएस अधिकारी बतौर महानिदेशक तैनात रह कर जा चुके हैं। लेकिन मुखमीत सिंह भाटिया ने इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल को कैथलैब देकर मज़दूरों को ह्दय रोग सम्बन्धित इलाज की बड़ी सुविधा प्रदान की है। इसके साथ-साथ बोन मैरो ट्रांस्प्लांट तथा न्यूरो सर्जरी जैसी सुपर स्पेशलिटी की सुविधा यहां के मज़दूरों को उपलब्ध कराई है। कैंसर इलाज के लिये आवश्यक रेडियो थेरेपी के तमाम उपकरण आदि खरीदने के लिये 60 करोड़ रुपये न केवल स्वीकृत कर दिये हैं बल्कि इन उपकरणों की खरीदारी के लिये आदेश देने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। आगामी तीन से चार महीनों में पूरी यूनिट स्थापित हो जाने की सम्भावना है। उसके बाद कैंसर इलाज के मामले में यह अस्पताल पूर्णतया सक्षम हो जायेगा।
इस श्रेणी में पूर्व महानिदेशक दीपक कुमार को याद करना भी बनता है जिन्होंने इस मेडिकल कॉलेज को चालू कराने के लिये खुद सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई थी। वह एक ऐसा समय था जब ईएसआई मुख्यालय में कब्जा जमाये बैठा (जीडीएमओ) गिरोह किसी भी किमत पर इस मेडिकल कॉलेज को चलने नहीं देना चाहता था। इस गिरोह को 2012 से 2015 तक महानिदेशक रहे अनिल कुमार का पूरा संरक्षण प्राप्त था। लेकिन अनिल के जाते ही दीपक कुमार ने कार्यभार सम्भालते ही भाग-दौड़ करके इस मेडिकल कॉलेज को ठीक वैसे ही चालू कराया जैसे चलती ट्रेन का अंतिम डिब्बा किसी मुसाफिर के हाथ लग जाये। अनिल कुमार इतने निकृष्ट थे कि कोयम्बटूर जहां 8 लाख बीमाकृत श्रमिक है वहां का बना बनाया ईएसआई मेडिकल कॉलेज मुफ्त में यहां की सरकार को सौंप दिया। इसी तरह कोल्लम (केरल) का मेडिकल कॉलेज मुफ्त में वहां की सरकार को सौंप दिया। यह मजदूरों के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात था। अच्छे एवं जनहितैषी महानिदेशकों की श्रेणी में अनुराधा प्रसाद का नाम लेना भी बहुत जरूरी है। बेशक वे बहुत कम समय तक इस पद पर रहीं लेकिन फिर भी उन्होंने मेडिकल कॉलेज की राह में रोड़े अटकाने वाले गिरोह की मुश्कें अच्छी तरह खींच कर रखी थीं। महानिदेशक भाटिया को मेडिकल कमिश्नर दीपक शर्मा से भी सावधान रहना होगा क्योंकि उनकी षडयंत्रकारी सोच में फेकल्टी को इधर-उधर बदल कर अच्छे-भले चल रहे कार्यक्रमों का बेड़ा गर्क करना शामिल है। उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि इस कॉलेज में एक साथ इतने सारे सुपर-स्पेशलिटी इलाज चल रहे हैं।
हरियाणा के किसी भी सरकारी अस्पताल में कैंसर का इलाज नहीं है वर्ष 1992-93 में रोहतक मेडिकल कॉलेज से डॉ. प्रताप सिंह गहलोत को बोन मैरो थेरेपी सीखने के लिये पेरिस भेजा गया था। करीब 9 महीने की ट्रेनिंग के बाद लौट कर आये डॉ. गहलोत ने जब यहां पर इलाज शुरू किया तो उन्हें न तो फेकल्टी का कोई सहयोग मिला और न ही सरकार का। लिहाजा रो-पीट कर दो-चार केस करने के बाद उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिये।
9 मई 2022 को हरियाणा के स्वास्थ्यमंत्री अनिल विज ने राजनीतिक नौटंकी करते हुए अपने चुनाव क्षेत्र अम्बाला में 72 करोड़ की रकम खर्च करके एक ईमारत खड़ी करके उसे कैंसर सेंटर का नाम दे दिया। इस सेंटर में केवल दो-चार छोटी-मोटी सिकाई आदि के उपकरण रखे हैं। वहां पर न तो बोन मैरो ट्रांस्प्लांटेशन है और न ही पूर्ण रेडियो थेरेपी व कीमो थेरेपी है। सर्जरी का तो मतलब ही नहीं है। नाम रख दिया कैंसर सेंटर। हालात को देख कर समझा जा सकता है कि यहां कभी भी इससे अधिक कुछ होने वाला भी नहीं है। सर्वविदित है कि कैंसर के इलाज में कई ब्रांचों के डॉक्टरों को एक साथ जुटना पड़ता हैं, जो केवल मेडिकल कॉलेज में ही सम्भव हो सकता है।