फरीदाबाद (म.मो.) मात्र चौदह महीने डीईओ फरीदाबाद पद पर तैनात रहने के बाद बीते माह रितु चौधरी का तबादला प्रशासनिक आधार पर कर दिया गया। लेकिन प्रशासनिक जैसा कोई आधार इस मामले में नज़र नहीं आता। दरअसल उनकी यहां तैनाती के चलते फरीदाबाद से लेकर चंडीगढ स्थित मुख्यालय में बैठे लूट कमाई करने वाले तमाम अधिकारी परेशान हो उठे थे। अपने सर्वश्रेष्ठ सेवा काल के बल पर तीन बार राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त कर चुकी हैं। चौधरी को गत फरवरी में दो वर्ष का सेवा विस्तार दिया गया था।
उनके पूर्व के अधिकारियों ने बच्चों को दी जाने वाली जिन सैंकड़ों साइकिलों को वर्षों पहले एक कमरे में बंद करके कबाड़ा बना दिया था, उनकी मरम्मत आदि करा कर बच्चों में इसी अधिकारी ने बांटा था। इसी तरह एक अन्य जगह साइंस प्रयोगशाला का सामान व पाठ्य पुस्तकों को ठूंस रखा था उनका भी यथोचित इस्तेमाल कराया गया।
यहां का कार्यभार सम्भालते ही इन्होंने पाया कि बड़ी संख्या में अध्यापकों की सर्विस बुक अधूरी पड़ी हैं। इसके चलते उनकी पदोन्नति एवं वार्षिक वेतन वृद्धि आदि अटकी पड़ी थी। अपनी-अपनी सर्विस बुक को पूरा कराने के लिये अध्यापक स्कूल छोड़ कर दफ्तरों के चक्कर ही काटते रहते थे और उन्हें भ्रष्ट बाबुओं की सेवा करनी पड़ती थी। रितु चौधरी ने प्रत्येक खंड में कैम्प लगा कर एक झटके में ही सबकी समस्यायें दूर कर दी। उनका यह कारनामा जब चंडीगढ़ स्थित मुख्यालय के समक्ष लाया गया तो पूरे हरियाणा भर में इसी तरह तमाम अध्यापकों की सर्विस बुक पूरी करने के आदेश जारी किये गये।
रितु चौधरी ने फरीदाबाद में कार्यभार सम्भालते ही आदेश जारी कर दिया था कि कोई भी अध्यापक अपना स्कूल छोड़ कर उनके अथवा खंड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में अपने किसी काम के लिये नहीं जायेगा। अपने किसी भी काम के लिये वे सीधे उनसे सम्पर्क करेंगे। उसके बाद वे खुद उनका काम करवा कर देंगी। इससे पहले दफ्तर के बाबू तब तक किसी का कोई काम नहीं करते थे जब तक कि सम्बन्धित अध्यापक उनके सामने आकर चढ़ावा चढ़ा कर मत्था न टेके। रितु चौधरी ने यह परम्परा पूरी तरह समाप्त कर दी थी, किसी भी फाइल को एक सप्ताह से अधिक लम्बित नहीं रहने देती थी।
लेकिन इतने कड़े प्रशासनिक नियम उन लोगों को कैसे रास आ सकते थे जिनका धंधा दलाली की कमाई के बल पर चलता था। इसी लूट कमाई से ऊपर तक सेवा-पानी पहुंचता था। स्कूलों को मिलने वाली विभिन्न ग्रांटों की होने वाली बंदरबांट पर चौधरी की कड़ी निगरानी के चलते घपले करने मुश्किल हो गये थे। इस तरह के कुछ घपलेबाज़ों के विरुद्ध उन्होंने काफी कड़ी कार्रवाई भी की थी।
रितु चौधरी का प्रयास रहता था कि जिस किसी स्कूल में भी अध्यापकों की कमी होती थी, नये आने वाले अध्यापकों को वे उन्हीं स्कूलों में तैनात करती थी। लेकिन यह नियम उन लोगों को कैसे रास आ सकता था जिन्हें अपने किसी चहेते को अपनी पसंद के किसी शहरी स्कूल में तैनात करवाना हो। इसी मुद्दे को लेकर सेक्टर तीन स्कूल, बल्लबगढ़ के प्रिंसिपल र्धमवीर यादव बूरी तरह से बौखला गये जब उनकी लेक्चरार पुत्रवधू को अमी पुर गांव के स्कूल में तैनात कर दिया गया। इसके अलावा बीते दिनों उनके द्वारा टैबलेट वितरण के लिये स्कूल में किये गये एक कार्यक्रम में पैसे के दुरुपयोग को लेकर जांच के आदेश दे दिये गये थे।
इसी तरह ओल्ड फरीदाबाद के बालिका स्कूल में तैनात प्रिंसिपल संदीप चौहान का यूनियन नेता होने के नाते पुराना धंधा थौक के भाव अध्यापकों के काम कराने का ठेका उठाने का रहा है। चाइल्ड केयर लीव (सीसीएल) को लेकर अध्यापकों में हमेशा ही घमासान मचा रहता है। सेवा नियमों के अनुसार बच्चे की देख-भाल के लिये प्रत्येक महिला शिक्षक को दो साल तक की छुट्टी पूरे वेतन सहित मिलती है। इसे प्रदान करने के लिये रितु चौधरी न्यायपूर्वक अपने विवेक का इस्तेमाल करती थीं और बिना किसी सिफारिश एवं भेद-भाव के प्रदान करती थी। लेकिन प्रिंसिपल यूनियन के नेता चौहान एक साथ इस सम्बन्ध में अनेकों प्रार्थनापत्र उनके सम्मुख रख कर अपनी नेतागिरी की धौंस दिखाकर मंजूर कराने का प्रयास करते थे। इतना ही नहीं विदेश यात्रा की मंजूरी ले चुके शिक्षक को यह छुट्टी नहीं दी जा सकती, जबकि चौहान इसके लिये दबाव बनाते थे जिसे वे ठुकरा दिया करती थी। इसके बावजूद चौहान सीधे मुख्यालय से मंजूर करा लेते थे।
इसी तरह इस महकमे में एक और फ्रॉड ‘ऑन ड्यूटी’ चलता है। इसमें सरकारी ड्यूटी के नाम पर शिक्षक फरलो मारते हैं। जैसे कि 15 अगस्त अथवा 26 जनवरी के नाम पर 20-30 दिन तक की ‘ऑन ड्यूटी’ दिखाकर फरलो मारी जाती है। इसी तरह सूरज कुंड मेले के नाम पर तो इसका बेहिसाब दुरुपयोग होता रहा है। लेकिन रितु चौधरी ने इन यूनियन नेताओं की दखलंदाजी को दूर करते हुए अपने विवेक से जहां जितनी ‘ऑन ड्यूटी’ की जरूरत थी वहां उतनी ही ड्यूटी प्रदान की।
सेक्टर 55 के प्रिंसिपल सतेन्द्र सोरोत ने सरकारी नियमों को ताक पर रखते हुए अपने स्कूल में दाखिले के लिये फार्म छपवा कर बेचे तथा फार्म भरने वाले बच्चों का टेस्ट लेकर दाखिले दिये। इतना ही नहीं बच्चों से ली गई फीस भी सरकारी कोष में जमा न करा कर अपनी जेब में रख ली। जब यह बात रितु चौधरी के नोटिस में आई और उन्होंने जवाब-तलब किया तो कहीं जाकर प्रिंसिपल साहब ने वह रकम कोष में जमा कराई। प्रिंसिपलों के नेताओं पर इतनी सख्ती एवं पूछताछ भला कैसे सहनीय हो सकती है? लिहाजा सबने एकजुट होकर उनके खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया।
जानकार बताते हैं कि संघर्ष की आग में घी डालने के लिये नगर निगम के पूर्व एसई धर्म सिंह भी मैदान में उतरे क्योंकि रितु चौधरी की जगह वे शुरू से ही अपनी निकम्मी व रिश्वतखोर पत्नी को जि़ला शिक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्त करवाना चाहते थे। इस काम में धर्म सिंह का सहयोग दिया उनके कारोबारी साझेदार अजय गौड़ ने जो आज कल मुख्यमंत्री खट्टर के सलाहकार बताये जाते हैं। संघर्ष में घी डालने का फल भी तुरन्त मिल गया। रितु चौधरी का तबादला हुआ और उनकी सीट पर धर्म सिंह की पत्नी मनीष चौधरी, मौलिक शिक्षा अधिकारी को बैठा दे दिया गया।
कहानी का सारांश यह निकलता है कि भ्रष्टाचार की गंगा ठीक सत्ता के शीर्ष से निकल रही है और नीचे तक सबको सराबोर करती जाती है। इसी के चलते शिक्षा विभाग पर भारी-भरकम खर्चा किये जाने के बावजूद इसका कोई लाभ नज़र नहीं आता। सरकारी स्कूलों पर पूरा खर्चा करने के बावजूद वे निजी स्कूलों के सामने कहीं ठहर नहीं पाते।
स्कूलों में दाखिले को लेकर अंतर्विरोध स्कूलों में बच्चों के दाखिले को लेकर सरकारी नीति क्या है यह खुद सरकार को भी नहीं पता। पिछले दिनों कुछ प्रिंसिपलों ने सीबीएससी के नियमानुसार बच्चे दाखिल करने के लिये टेस्ट आयोजित करके दाखिले दिये। देखा जाय तो इस नियम में कोई खामी नहीं है। हर स्तर पर जहां दाखिला लेने वाले अधिक हों और सीट कम हों तो यही नियम लागू होता है। लेकिन हरियाणा सरकार ने इसके विपरीत दाखिले के लिये लॉटरी सिस्टम अपनाने को कहा जो एकदम हास्यास्पद तो है ही, साथ में जटिल भी है। इस नियम के अनुसार 100 आवेदकों में से 50 को चुन लिया तो शेष 50 को तो दाखिला नहीं ही मिलेगा न। दूसरी ओर यही सरकार कहती है कि किसी को भी दाखिला देने से मना मत करो। यानी जो बच्चा स्कूल में पढऩे आये उसे जरूर दाखिल करो। इस पर जब स्कूल प्रिंसिपल स्टाफ और कमरों आदि की कमी बताते हैं तो सरकारी जवाब यह होता है कि बच्चे भर्ती करके बताया जाय कि कितना स्टा$फ और कितने कमरे और चाहिये, उन सबका इंतजाम कर दिया जायेगा।
अजीब तर्क है इस सरकार का यानी कि पहले बच्चों को भर्ती कर लो उसके बाद सरकार को बताओ फिर सरकार तमाम व्यवस्थायें करेंगी। ये व्यवस्थायें कितने दिनों महीनों या सालों में हो पायेगी कोई नहीं जानता? डीईओ व प्रिंसिपलों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण सरकार की यह दाखिला नीति भी रही है। डीईओ सरकारी नीति के अनुसार सभी बच्चों के दाखिले कराने की बात कहती तो प्रिंसिपल अपना रोना रोते।
बायोमीट्रिक हाजिरी व टीचर डायरी से भी खफा थे स्कूलों से गैरहाजिर रहने वाले अध्यापकों से निपटने के लिये रितु चौधरी ने बायोमीट्रिक हाजिरी की सरकारी प्रणाली लागू कर दी थी। तथाकथित उक्त यूनियन नेताओं के विरोध के बावजूद उन्होंने अधिकांश स्कूलों में ये मशीने लगवा दी थी। यूनियन नेताओं का कहना था कि जब अन्य जि़लों में यह प्रणाली लागू नहीं है तो अकेली वे ही इसे लागू करने पर क्यों तुली हैं?
उनका यह तर्क भी हालांकि गलत है। अधिकांश जि़लों में यह प्रणाली लागू है। फरीदाबाद के अनेकों कार्यालयों में यह प्रणाली लागू है। दूसरे जि़लों में क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है उससे तुलना करने की अपेक्षा रितु चौधरी ने सरकारी आदेशों का पालन करके कोई गुनाह नहीं किया था। लेकिन इस प्रणाली से बचने वालों की मंशा को साफ समझा जा सकता है।
नियमानुसार प्रत्येक शिक्षक को अपने दिन भर के कार्यवाही का लेखा-जोखा अपनी डायरी में लिखना होता है जिसे शिक्षक डायरी कहा जाता है। जब रितु चौधरी ने इस नियम को सख्ती से लागू करना चाहा तो हरामखोरी पर तुले नेताओं ने इसे भी संघर्ष का एक मुद्दा बना लिया। इतना ही नहीं कोरोना के बाद जब स्कूल खुले तो डीईओ ने बच्चों के टेस्ट लेने का आदेश दिया तो इस पर भी यूनियन नेताओं को तकलीफ हुई क्योंकि उन्हें पर्चे बनाने व चेक करने का काम करना पड़ता।
भ्रष्टाचार की मूरत मुनीष चौधरी रितु चौधरी के तबादले के बाद जिस मुनीष चौधरी को जिला शिक्षा अधिकारी का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। उन्होंने कभी कोई क्लास को पढ़ाकर नहीं देखी। अव्वल तो उन्होंने स्कूलों में नौकरी करी ही नहीं, उनकी लगभग सारी नौकरी शिक्षा विभाग के दफ्तरों की ही रही है। यहां से उन्होंने हमेशा अच्छी मोटी लूट कमाई की है।
पच्चीस लाख के गबन के एक केस में वह दोषी भी ठहराई जा चुकी है। बाद में इन्होंने अपने असर और रसूख से फाइल गुम करा रखी है। जब कभी इनकी तैनाती स्कूल में हुई तो इन्होंने बच्चों को पढ़ाने की बजाये फरलों मारने पर ज्यादा ध्यान दिया। इस बाबत मजदूर मोर्चा में विस्तृत विवरण प्रकाशित किया जा चुका है। इनके द्वारा नया कार्यभार संभालने से ईमानदार व कर्मठ कर्मचारियों की जहां मुसीबत हो जायेगी वहीं रिश्वतखोर निकम्मे बाबुओं की पौ बारह हो जायेगी।
मुनीष चौधरी का रिकार्ड यह रहा है कि वह कभी-कभी ही दफ्तर आया करती है। हाजिरी रजिस्टर एवं आवश्यक डाक उनके घर पर ही पहुंचाई जाया करती है।