डंके की चोट पर रिश्वत मांगता है निगम का एसडीओ सुमेर सिंह

डंके की चोट पर रिश्वत मांगता है निगम का एसडीओ सुमेर सिंह
November 03 05:58 2021

निगमायुक्त यादव व मंत्री विज खामोश बने हुए हैं
फरीदाबाद (म.मो.) नगर निगम में हरामखोरी व रिश्वतखोरी अब कोई खबर नहीं रह गई है, खबर तो अब यह है कि रिश्वत वसूली के लिये निगम के दफ्तर में कम्पलीशन की फाइल जमा करने वालों के साथ गाली-गलोच से भी आगे बढ़कर हाथापाई तक की भी नौबत आ गयी है। साथ में छाती ठोक कर यह भी कहा जाता है कि जा कर ले शिकायत जिसको करनी है।

सैनिक कॉलोनी निवासी सुमित तनेजा ने ‘मज़दूर मोर्चा’ को अपनी दास्तां बताते हुए कहा कि वे एक भवन निर्माण पूरा होने के बाद अपनी पूरी फाइल लेकर निगम की सम्बन्धित ब्रांच में जमा कराने पहुंचे तो वहां बताया गया सम्बन्धित बाबू छुट्टी पर हैं, इसलिये फाइल रिसीव नहीं होगी। दो-तीन दिन इसी तरह चक्कर काटने के बाद 6 सितम्बर को उन्होंने अपनी फाइल निगमायुक्त कार्यालय के डायरी-डिसपैच में जमा करा कर रसीद ले ली। दिनांक 21 सितम्बर को जब वे अपनी फाइल का स्टेटस पूछने सम्बन्धित ब्रांच में गये तो वहां मौजूद नये-नये बने एसडीओ सुमेर सिंह उन से भिड़ गया, कहने लगा तू है कौन और कैसी फाइल? उस वक्त सुमित तनेजा पर दबाव बनाने के लिये वहां पांच-छ: दल्ले मौजूद थे जो सुमित व उसके साथ आई महिला पर फब्तियां कसने के साथ-साथ तानाकशी भी कर रहे थे। वहां पर दूसरा एसडीओ जीतराम भी मौजूद था, जो शायद इस कम्पलीशन कार्य का इंचार्ज रहा होगा।

लेकिन पूरी दादागिरी पर उतरे सुमेर ने कहा कि ऐसे कम्पलीशन नहीं मिला करता। सुमित ने कहा कि उसकी फाइल हर लिहाज से पूरी है, उसकी इमारत का निरीक्षण करके, जो भी कमी हो उसे बताई जाये जिसे वह दूर कर सके और सरकारी फीस भी बताई जाये जिसका ड्राफ्ट वह जमा करा सके। इस पर तो सुमेर और भी बौखलाते हुए बोला कि तू है कौन और यहां आया कैसे? यह कहते हुए उसने सुमित के मुंह पर लगा मास्क नोच लिया और धक्का-मुक्की करने लगा। इस पर साथ आई महिला कुछ बोलने लगी तो सुमेर ने उससे भी बद्तमीज़ी शुरू कर दी। महिला ने जब कहा कि वह इस बदतमीज़ी की शिकायत महिला पुलिस व महिला आयोग से करेगी तो सुमेर ने कहा कि वह चाहे जहां शिकायत करले उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सुमित ने निगमायुक्त से शिकायत करने की बात कही तो सुमेर ने दहाड़ते हुए कहा कि पहले निगमायुक्त से शिकायत ही करके देख लो। इस सारे वार्तालाप व अधिकारियों को दिये गये तमाम पत्रों की रिकार्डिंग सुमित के पास मौजूद है जिसे कोई अधिकारी देखना तक नहीं चाहता। यदि आवश्यकता पड़ी तो ‘मज़दूर मोर्चा’ तमाम रिकार्डिंग को फेसबुक पर लाइव करने से भी नहीं हिचकेगा।

सुमित कई दिन तक निगमायुक्त यशपाल के चक्कर लगाता रहा लेकिन न तो वे दफ्तर में मिलते थे और न ही घर पर। चार दिन चक्कर काटे लेकिन परिणाम ज़ीरो। इस बीच सुमित तीन बार ज्वाईंट कमिश्नर गौरव अंतिल से भी मिले पहली बार तो उन्होंने भी टरकाते हुए कहा कि उनकी पीए से मिल लो लेकिन बाद में उन्होंने सुमित की दरखास्त तो पकड़ ली, लेकिन कार्यवाही निल बटा सन्नाटा। वे कार्यवाही कर भी क्या सकते थे, जब निगमायुक्त ही नहीं चाहते कि महकमे के वसूली एजेंटों के खिलाफ कोई कार्यवाही की जाय।

इसके बाद दोबारा फिर से सुमित कम्पलीशन वाली ब्रांच में यह सोच कर पहुंचे कि शायद ज्वांयट कमिश्नर से मिलने का कोई असर हो गया हो। लेकिन अब तो सुमेर और भी चौड़ा हो गया और बोला कि करली शिकायत निगमायुक्त को? फिर  कहा कि कम्पलीशन तो कम्पलीशन के तरीके से ही मिलेगा, इस बीच वहां मौजूद दल्लों ने, जिनका धंधा केवल इस ब्रांच की दलाली करना है, साफ कहा कि तुम्हें पता नहीं कि कम्पलीशन की ‘फीस’ कितनी लगती है? इसी बीच एसडीओ जीत राम ने उंगलियों के इशारे से बताया 3 यानी 3 लाख।

इतने सारे ड्रामे देखने एवं भुगतने के बावजूद सुमित को खट्टर सरकार की यह लूट व्यवस्था समझ नहीं आई और वे चल दिये विज के दरबार में अम्बाला, जो इस महकमे के मंत्री हैं। वहां भी केवल पीए तक ही पहुंच पाये जिसने दरखास्त तो पकड़ ली लेकिन कार्यवाही ज़ीरो। इतना ही नहीं उस पीए ने एक हफ्ते बाद कोई जवाब देने की बजाय सुमित का फोन तक नहीं उठाया। वह क्यों उठाने लगा, उसने तो दरखास्त दिखा कर सुमेर से हिसाब कर लिया होगा।

जब एक दिन गलती से पीए ने फ़ोन उठा लिया तो उसने दोबारा अम्बाला आने को कहा। इसी दौरान सुमित ने इस विभाग के नवनियुक्त प्रधान सचिव अरूण गुप्ता को पहले ई-मेल से शिकायत भेजी और फिर मिलने चंडीगढ़ जा पहुंचे। मिल तो लिये, दरखास्त भी पकड़ ली लेकिन परिणाम ढाक के वही तीन पात।

समझने वाली बात यह है जिसे सुमित जैसे तमाम लोग नहीं समझते कि एसडीओ सुमेर की अपनी कोई औकात नहीं जो इस तरह से खुली गुंडा-गर्दी एवं लूट-मार करे। जो कुछ भी वह एवं उस जैसे तमाम कर्मचारी कर रहे हैं, वे सब अपने आका निगमायुक्त यशपाल के संरक्षण में कर रहे हैं। और यह संरक्षण केवल हिस्सा-पत्ती के आधार पर ही मिलता है। वरना प्रतिदिन लाखों की लूट-कमाई हड़पने की हिम्मत अकेले सुमेर जैसों की नहीं हो सकती। निगमायुक्त पर सवाल यह भी उठता है कि उन्होंने जो 1500 अवैध कब्ज़ों व निर्माणों की सूची तैयार कराई थी, वह किसलिये? उनमें से किसी पर भी कोई कार्यवाही होती तो नज़र नहीं आई; जाहिर है यह सारा खेल लूट-कमाई के लिये ही तो हो रहा है। हां, कार्यवाही के नाम पर सीलिंग का ड्रामा जरूर चलता है, लेकिन यह ड्रामा केवल उनके लिये होता है जिनसे सौदा पट गया हो, वरना भवन को धराशाई कर दिया जाता है। वैसे यशपाल को भी यह धंधा चलाने का लाइसेंस मुफ्त में नहीं मिला है, इसके लिये भी विज एवं खट्टर के अलावा संघ का आशीर्वाद जरूरी है।

कुल मिला कर लूट की यह एक लम्बी चेन है जिसमें सुमेर जैसे लोग तो मात्र एक कड़ी होते हैं और जनता संघर्ष करने, पार्षदों एवं विधायकों को घेरने की अपेक्षा डर कर रहना और रिश्वत देकर काम निकालना बेहतर समझने लगी है। संदर्भवश सुधी पाठक यह भी जान लें कि इस तरह की लूट में ‘हूडा’ वाले भी एमसीएफ वालों से जरा भी पीछे नहीं हैं। और भी मजे की बात तो यह है कि अर्धनिर्मित भवनों को भी कम्पलीशन प्रमाणपत्र दे दिये जाते हैं। कम्पलीशन लेने के बाद स्टिल पार्किंग को भी रिहायशी बना दिया जाता है।

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Mazdoor Morcha
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