दवा कम्पनियों से इलैक्शन बांड के नाम का चंदा लेकर ‘ध्यानमग्र’ हैं मोदी सर्जरी के लिए मरीज को बेहोश करने वाली दवाओं से लेकर मेडिकल ऑक्सीजन तक उपलब्ध नहीं फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) वर्ष 2018 से आयुष्मान भारत योजना को गेम चेंजर बताते आ रहे स्वनाम धन्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चिरायु योजना का ढिंढोरा पीटने वाली डबल इंजन की सैनी सरकार अस्पतालों में मरीजों के लिए आवश्यक दवाएं भी नहीं उपलब्ध करा पा रही हैं। बीके अस्पताल में पेट रोग, त्वचा रोग, हृदय रोग, दंत रोग संबंधी सामान्य दवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। ओपीडी में आने वाले मरीजों को अधिकतर दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं तो ऑपरेशन थियेटर में ऑक्सीजन से लेकर बेहोश करने वाली, लोकल एनिस्थीसिया, सुन्न करने वाली लिग्नोकेन जैली और दर्द निवारक दवा मॉरफीन तक नहीं है, समझा जा सकता है कि क्यों अस्पताल में आने वाले चोटिल मरीजों को दरवाजे से ही दिल्ली रेफर कर दिया जाता है।
स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार बीके जैसे सेकेंडरी स्तर के अस्पताल में 472 तरह की दवाएं व चिकित्सा उपकरण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने चाहिए। अस्पताल में उपलब्ध दवाएं, चिकित्सा उपकरणों की जानकारी लेने के लिए शहर के अजय सैनी ने बीके अस्पताल की प्रधान चिकित्सा अधिकारी से आरटीआई में जानकारी मांगी। जो जानकारी दी गईं वह मोदी-सैनी सरकारों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में दी जा रही सेवाओं का सच उजागर करती हैं।
यदि दवाओं और उपकरणों को ओपीडी, आईपीडी और ऑपरेशन थियेटर में इस्तेमाल होने के आधार पर बांटा जाए तो सबसे खराब हालत ऑपरेशन थियेटर की है। यहां आधारभूत उपकरणों से लेकर सर्जरी के दौरान इस्तेमाल होने वाली दवाएं यहां तक कि ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड, एनिस्थीसिया हेलोथीन, आईसोफ्लूरेन, सेवाफ्लूरेन इन्हेलेशन, केटामाइन, थियोपेंटोन इंजेक्शन, दर्द निवारक फेंटानिल, पेथिडिन, मॉरफीन इंजेक्शन व टेबलेट आदि नहीं हैं। जाहिर है कि इन दवाओं के बिना कोई भी ऑपरेशन या सर्जरी किया जाना नामुमकिन है। ऑपरेशन के लिए जरूरी ये दवाएं तो उपलब्ध नहीं हैं लेकिन सर्जरी ग्लव्स, कैप, टांके लगाने वाली सुई-धागा, रुई आदि उपलब्ध हैं। समझा जा सकता है कि सर्जरी तो होनी नहीं है, ऐसे में इन उपकरणों का इस्तेमाल छोटी मोटी चोट, कट लगने में ही किया जाएगा। बता दें कि कटे फटे अंग में टांके लगाने के लिए सुन्न करने वाली लिग्नोकेन जेली भी उपलब्ध नहीं है, अब अगर मरीज को दर्द से बचाना है तो तीमारदार को ये सब बाहर से खरीद कर लाना होगा।
ओपीडी की दवाओं में बच्चों की दवाएं अल्बेंडाजोल, सेफिक्सिम ओरल सस्पेंशन, एजिथ्रोमाइसिन ओरल सस्पेंशन जैसी महत्वपूर्ण दवाएं गर्मी के इस मौसम में नदारद हैं। गर्मी में पेट संबंधी मरीज तो बढ़ रहे हैं लेकिन उनके लिए जरूरी एवं सस्ती पेंटाप्राजोल, ओमेप्राजोल, डोमपेरिडॉन जैसी दवाएं गायब हैं। कमजोर पाचन और सीने में जलन के लिए इस्तेमाल होने वाला एल्युमिनियम हाईड्रॉक्साइड मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड सस्पेंशन भी नहीं है। त्वचा रोग से संबंधी लगभग सभी दवाएं गायब हैं। हृदय रोगियों की महत्वपूर्ण दवा एस्पिरिन, नाइट्रोग्लिसरिन, जैसी दवाएं सरकार ने नहीं दी हैं।
महिला स्वास्थ्य का दावा करने वाली मोदी-सैनी सरकारों में गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी फोलिक एसिड गोली, प्रेगाब्लिन, मेथिलकोबाल्मिन, आयरन की गोलियां, कैल्शियम फॉस्फेट सिरप तक नहीं हैं। महिलाओं सहित अन्य मरीजों को दी जाने वाली एस्कॉर्बिक एसिड, बी कॉंप्लेक्स टेबलेट, विटामिन डी3, बायोटिन, थायमिन टेबलेट भी नहीं हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो अनुपलब्ध 296 दवाओं में आंख, कान, नाक, गला, सिर, हड्डी रोग की महत्वपूर्ण से लेकर सामान्य दवाएं भी शामिल हैं।
यही हाल आईपीडी का भी है जहां बुखार में भर्ती मरीजों को नस के जरिए देने के लिए पैरासीटामोल सस्पेंशन तक उपलब्ध नहीं है। सडक़ हादसे में या किसी अन्य तरीके से घायल मरीजों को दवाओं की अनुपलब्धता के कारण भर्ती करने से बचा जाता है और उन्हें रेफर कर दिया जाता है, ओपीडी और आईपीडी में मरीजों को सामान्य दवाओं के जरिए इलाज का बहलावा दिया जा रहा है।
जिले के प्रमुख अस्पताल बीके में जब दवाओं ओर उपकरणों का अभाव है तो सीएचसी, पीएचसी और यूएचसी का हाल समझा जा सकता है। इनमें दवाएं तो दूर डॉक्टर और स्टाफ ही नहीं हैं। दरअसल, मोदी हों या खट्टर-सैनी इनकी नीयत काम न कर केवल काम का ढिंढोरा पीट कर जनता को वरगलाने की ही रही है। नए अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, पीएचसी-सीएचसी की घोषणा, शिलान्यास कर झूठी वाहवाही हासिल करना और फिर उनकी ओर ध्यान न देना ही संघी-भाजपाई नेताओं का चाल चरित्र है। मोदी देश भर में एम्स खोलने का झूठ बोलते रहे तो खट्टर प्रदेश में कई मेडिकल यूनिवर्सिटी ओर मेडिकल कॉलेज खोलने का ढिंढोरा पीटते रहे। मोदी ने आयुष्मान भारत योजना तो खट्टर-सैनी ने चिरायु योजना का खूब पाखंड किया लेकिन सच्चाई ये है कि सरकार अस्पतालों में आवश्यक और जीवनोपयोगी दवाएं भी उपलब्ध नहीं करा पा रही है।
स्वास्थ्य मामलों के जानकार कहते हैं कि जिस तरह सरकार हर क्षेत्र में सब्सिडी खत्म कर रही है उसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं को भी खत्म करने की तैयारी कर रही है। इसी नीयत से प्रधानमंत्री जन औषधि योजना लागू की गई है, यानी जो दवाएं पहले सरकारी अस्पताल में मरीजों को मुफ्त दी जाती थीं अब उन्हें सस्ती दर पर बता कर बेचा जा रहा है। इस व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए ही सरकार अस्पतालों में महत्वपूर्ण और जीवन रक्षक दवा व उपकरण की आपूर्ति धीरे धीरे घटा रही है ताकि लोग जन औषधि केंद्र से या निजी दुकानों से ये दवाएं और उपकरण खरीदने के अभ्यस्त हो जाएं, इसके बाद सरकार पूरी तरह से मुफ्त दवाएं और इलाज खत्म कर देगी।