मज़दूर मोर्चा ब्यूरो जनता को छलने एवं बहकाने में माहिर मोदी सरकार के आदेश पर आजकल केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र सिहं यादव मध्य प्रदेश व राजस्थान में पूरे मेहरबान होकर बरस रहे हैं क्योंकि आगामी तीन चार महीने में वहां की जनता से वोट लेने हैं।
मध्य प्रदेश के भोपाल तथा राजस्थान के कोटा में ईएसआई कॉरपोरेशन के एक-एक अस्पताल हैं जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा चलाया जाता है। राज्य सरकारों द्वारा चलाए जाने का अर्थ, सुधी पाठक समझ लें कि जैसे सेक्टर आठ का ईएसआई अस्पताल हरियाणा सरकार द्वारा चलाया जा रहा है और एनएच तीन का अस्पताल कॉरपोरेशन द्वारा चलाया जा रहा है। अंतर स्पष्ट देखा जा सकता है, राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले अस्पताल एवं डिस्पेंसरियों की हालत इतनी विकृत हो चुकी है कि कोई मरीज वहां जाकर राजी नहीं है और एनएच तीन के अस्पताल में मरीज क्षमता से दोगुने भरे हुए हैं। मध्य प्रदेश में डबल इंजन की सरकार होते हुए भी राज्य सरकार भोपाल वाले ईएसआई अस्पताल को ढंग से नहीं चला पा रही थी, जाहिर है इससे होने वाली मरीजों की दुर्दशा का बढऩा स्वाभाविक था। अब चुनाव से चंद माह पूर्व वहां के लोगों को खुश करने के लिए मोदी के आदेश पर भूपेंद्र सिंह ने भोपाल के अस्पताल को राज्य सरकार से छीन कर अपने अधिकार में ले लिया और वहां तुर्त-फुर्त यानी विद्युत की गति से आवश्यक एवं वांछित स्टाफ की नियुक्ति कर डाली। ऐसी ही स्थिति कोटा वाले अस्पताल की भी चल रही थी, उसे भी कॉरपोरेशन ने अपने अधिकार में लेकर उसी गति से स्टाफ की नियुक्ति कर डाली।
अब पूछे कोई इस श्रममंत्री महोदय से कि उनकी नाक के नीचे मौजूद फरीदाबाद के ईएसआई मेडिकल कॉलेज-अस्पताल से उन्हें कौन से कांटे चुभते हैं जो यहां पर्याप्त एवं वांछित स्टाफ की नियुक्ति नहीं की जा रही? यह हाल तो तब है जब वे खुद अपने इलाज के लिए यहां आ चुके हैं। इतना ही नहीं ‘मन की बात’ करने, योगा दिवस मनाने अथवा पिकनिक करने तो जब चाहें इस संस्थान में आ पहुंचते हैं लेकिन इस अस्पताल को दरपेश जगह व स्टाफ एवं की कमी उन्हें क्यों नजऱ नहीं आती? मंत्री महोदय को यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव तो यहां भी होने ही हैं।
फरीदाबाद के इस संस्थान की समस्याओं को हल करने के बजाय उन्हें बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही, मानेसर गुडग़ांवां, हरियाणा के अन्य क्षेत्रों के अलावा दिल्ली व नोएडा तक के मरीजों को इलाज के लिए यहां भेजने में मुख्यालय में बैठे किसी अधिकारी को शर्म नहीं आती और मत्री महोदय बैठे-बैठे टुकुर-टुकुर ताकते रहते हैं। वह ये जानने और सोचने का प्रयास कतई नहीं करते कि फरीदाबाद पर ये सब जु़ल्म क्यों हो रहा है। और तो और, मरीज़ों की बात तो छोडि़ए गुडग़ांवा व दिल्ली के अस्पतालों के कपड़े भी धुलाई के लिए गाडिय़ों में भरकर फरीदाबाद भेज दिए जाते हैं मानो ये मेडिकल कॉलेज न होकर धोबी घाट हो गया हो, गजब की बेशर्मी है। कारण यह बताया जाता है कि उनकी लॉंड्री की मशीनेें खराब हो गई हैं। मूर्खालय में बैठे उन मूर्खों से कोई ये पूछे कि जिस दिन फरीदाबाद की मशीन खराब हो गई तो वे धुलाई के लिए कहां भेजेंगे। वैसे पूछने का यह काम है तो मंत्री महोदय का, लेकिन न जाने क्यों वे अपने मुंह में दही जमाए बैठे रहते हैं, उन्हें किस बात का डर है वे क्यों नहीं इन मूर्खों के कान को मरोड़ी लगाते?
रेडियोलॉजी में अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, एमआरआई, सीटी स्कैन इत्यादि के लिए, पांच वर्ष पहले बहुत रो पीटकर इनकी मशीनें लगाई गई थीं। और अब हालत यह है कि पूरे एनसीआर के एमआरआई सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड आदि के मरीजों की यहां लंबी लाइन लगा दी गई है, कई मरीजों को तीन-तीन महीने की तारीख मिलती है। पिछले दिनों एक गंभीर मरीज को एमआरआई कराने के लिए मानेसर से फरीदाबाद भेजा गया था, जिसने यहां तक आने जाने के दो हजार रुपये खर्च किए। उसे एक महीने की तारीख मिल गई तो रो पीट एवं झक मार कर 800 रुपये में अपना प्राइवेट एमआरआई करा लिया। मरीज के साथ क्या बनी, उसके दिल पर क्या बीती इससे मूर्खालय में बैठे मज़दूरों के खूऩ पर पलने वाले हरामखोर कमिश्नरों को क्या लेना देना, कोई मरता है तो मरे उनकी बला से, उनके वेतन-भत्तों और अय्याशियों में कोई फर्क नहीं पडऩा चाहिए।
काम का जितना बोझ एमआरआई व सीटी स्कैन पर जितना पड़ रहा है उसके चलते यह मशीनें भी बहुत लंबी चलने वाली नहीं हैं। क्यों नहीं समय रहते दिल्ली व गुडग़ांवां में भी ऐसी ही मशीेनें लगाकर मरीजों को राहत दी जाती। यहां के डॉक्टरों का कहना है कि मशीनें बेशक दिल्ली में लगा दें हम यहीं बैठे-बैठे रिपोर्ट तैयार कर सकते हैँ। लेकिन अफसोस तो उस श्रममंत्री के लिए होता है जो जनता का प्रतिनिधि होने के नाते मूर्ख एवं हरामखोर अफसरों के सिर पर बैठाया गया है और उसे कुछ भी नजऱ नहीं आ रहा। चलो श्रम मंत्री महोदय बेशक गुडग़ांवां के मूल निवासी हैं और राज्यसभा से आते हैं इसलिए शायद वे अपने आपको आम जनता का नुमाइंदा न मानते हों लेकिन फरीदाबाद में जनता के चुने हुए सांसद, विधायकों एवं मंत्रियों को क्या सांप सूघे बैठा है जो उनकी बोलती बंद हुई पड़ी है। आए दिन मेडिकल कॉलेज में अपने उल्टे सीधे निजी कामों के लिए भटकने वाले इन नेताओं को क्या इस अस्पताल में मरीजों की होती दुर्दशा नजऱ नहीं आ रही? क्या जन प्रतिनिधि होने के नाते तथा डबल इंजन की सरकार चलाने का दावा करने वाले इन नेताओं का कोई दायित्व नहीं बनता कि वे स्वत: संज्ञान लेकर इस मामले को उच्चतम स्तर तक उठा कर अपने क्षेत्र की जनता को राहत दिलाएं?