चोरों को पकडऩा तो दूर, फरीदाबाद में पुलिस पकड़े हुओं को पैसे लेकर छोड़ रही है

चोरों को पकडऩा तो दूर, फरीदाबाद में पुलिस  पकड़े हुओं को पैसे लेकर छोड़ रही है
April 17 19:22 2022

फरीदाबाद (म.मो.) एक जमाना था जब चोरी की सूचना पाकर पुलिस चोरी के माल सहित चोर को तलाश लेती थी और कोर्ट से सज़ा कराती थी। इसके विपरीत जमाना यह आ गया है कि जनता द्वारा माल सहित चोर को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिये जाने पर भी पुलिस माल व चोर दोनों को ही डकार रही है।

गांव बदरपुर सैद निवासी सोनू सिंह ने इस संवाददाता को बताया कि उनके घर के सामने गली में पंचायती सोलर लाइट लगी थी जो दिनांक 9.6.2020 को चोरी हो गई। अपने घर पर लगे सीसी टीवी कैमरे की फुटेज देखने पर उन्हें न केवल चोर का पता लग गया बल्कि उस कबाड़ी का भी पता चल गया जो चोरी का सामान यानी सोलर बैट्री आदि अपने बोरे में डाल रहा था।

ये चोर और कोई नहीं उनके घर के सामने रहने वाले 1.निशान्त पुत्र जसबीर, 2. जसबीर पुत्र रूमाल, 3. प्रदीप पुत्र सोरन निवासी बदरपुर सैद, फरीदाबाद थे जिन्होंने मात्र चोरी कर बेच दिया। सोनू ने इसकी लिखित शिकायत दिनांक 15.फरवरी 22 को भोपानी थाना में दी। सबूत के तौर पर सोनू ने कैमरे की फुटेज की सीडी भी बना कर पुलिस को दे दी। दो दिन बाद पुलिस ने फोन कर सोनू को थाने बुलाया कि चोर व कबाड़ी से आमने-सामने बात कर ले। सोनू ने कहा कि इसमें आमने-सामने बात करने जैसी कौन सी बात है? उसने चोरी के सबूत सही सब कुछ उन्हें सौंप दिया है तो पुलिस अपनी कार्यवाही करे।

जाहिर है पुलिस आमने-सामने का ड्रामा करके सोनू से अपनी दरखास्त वापस कराना चाहती थी  जो बाद में उसमें स्वत: दाखिल दफतर कर दी। इसके लिये बहाना यह बनाया कि सीडी में कुछ भी नज़र नहीं आता। यहां सवाल यह उठता है कि जब सीडी नहीं बना करती थी तब क्या पुलिस चोर नहीं पकड़ती थी? इतना ही नहीं पुलिस का रवैया अपने हक में देखते हुए चोरों ने गली में से वह खम्भा ही उखाड़ दिया जिस पर से बैट्री आदि चोरी हुयी थी।

कई दिन थाने व एसीपी-डीसीपी सेंट्रल के दफतरों के चक्कर काटने के बाद सोनू सेक्टर 21-सी स्थित सीपी दफ्तर पहुंचा। वहां का माहौल भी अजीब मिला। सीपी दफतर के स्टाफ ने पूरी कोशिश की कि वह सीपी से न मिल सके। उसकी पूरी कहानी सुन कर उसे आश्वस्त कराना चाहा कि वे थाने वालों को कह कर उसकी कार्यवाही करा देंगे। कम्पलेंट ब्रांच के इन्स्पेक्टर ने थाने वालों से बात-चीत भी करके सोनू को आश्वस्त करना चाहा था। लेकिन जब वह नहीं माना तो बड़ी मुश्किल से उसे सीपी विकास अरोड़ा तक पहुंचने दिया गया। सोनू जब सीपी को फरियाद सुना रहा था तो कम्पलेंट ब्रांच वाला थाने वालों की पैरवी करते हुए बीच में बोला कि यह मामला झूठा है। सीडी में कुछ भी नहीं है और सारा मामला आपसी लागबाज़ी का है। सीपी ने एक बार तो देखने के लिये सीडी हाथ में ले ली लेकिन फिर  बिना देखे ही लौटा दी और मामला क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दिया। बीते दो सप्ताह तक विभिन्न क्राइम ब्रांचों के धक्के खाने के बाद सोनू को पता लगा कि मामला बीपीटीपी वाली ब्रांच में धूल फांक रहा है। पुलिस की निष्क्रियता के चलते इस तरह की दर्जनों वारदातें इस गांव में हो चुकी है।

इस तरह का यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं है। लगभग हर थाने-चौकी में आये दिन इस तरह के खेल चलते रहते हैं। मार्च के अन्तिम सप्ताह शायद बुधवार के दिन का मामला तो इससे भी कहीं ज्यादा गंभीर है। हुआ यूं कि सेक्टर 21-सी व 46 की विभाजक सडक़ पर एक बैट्री चालित रिक्शा सवार तीन लोगों ने चालक की आंखोंमें मिर्च पाऊडर झोंक कर रिक्शा लूट लिया। शोर-शराबा सुन कर 21-सी पार्क में बैठे कुछ युवकों ने लुटरों का पीछा किया और रेलवे लाइन के निकट एक लुटेरे को पकडऩे मेें कामयाब हो गये जबकि अन्य दो भाग गये। सारा मामला, यानी लूट का माल, लुटेरा व पीडि़त को सेक्टर 46 की पुलिस चौकी के हवाले कर दिया गया। थोड़ी देर बैठाने के बाद बिना किसी लिखत-पढ़त के पुलिस ने रिक्शा चालक को रिक्शा सहित छोड़ दिया। जाहिर है पुलिस ने गरीब रिक्शा चालक को एफआईआर दर्ज कराने के बाद पुलिस कार्यवाही व कोर्ट की चक्करबाज़ी का हव्वा दिखा कर बिना एफआईआर दर्ज किये छोड़ दिया। उसके बाद पकड़े गये लुटेरों के साथ जिस तरह की सौदेबाज़ी चौकी वालों ने की होगी, समझना कठिन नहीं। यह सारा मामला सेक्टर 21 के एक रिटायर्ड डीएसपी जो मौके पर मौजूद थे, द्वारा बताया गया है।

दरअसल पुलिसिया लूट का यह खेल केवल थाने-चौकियों तक सीमित नहीं है, इसमें उच्च स्तरीय खिलाड़ी भी शामिल हैं। यहां जितने थाने हैं उससे कहीं अधिक तो एसीपी व डीसीपी स्तर के सुपरवाइज़री अफसर हैं  जिनका काम अपने मातहत थाने-चौकियों के काम-काज की निगरानी करना होता है। सवाल इन तमाम उच्चाधिकारियों पर बनता है कि क्या वे इतने नाकाबिल हैं कि उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि उनके मातहत क्या गुल खिला रहे हैं या फिर वे अपनी काबलियत का इस्तेमाल लूट में हिस्सा वसूली के लिये करते हैं? यही सवाल मुख्य सुपरवाइज़री अफसर सीपी विकास अरोड़ा पर भी उतनी ही शिद्दत से बनता है। अब देखना है कि उक्त दोनों मामले सामने आने पर क्या संज्ञान लिया जाता है?

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles