फरीदाबाद (विकास शर्मा) राजनीति में कोई भी छोटा या बड़ा नेता अपने आप को किसी से कम नहीं समझता है। चाहे इन छुटभैये और बड़े नेताओं में कितनी ही सामाजिक आर्थिक व वैचारिक असमानता क्यों ना हो लेकिन इनके मुंह से बड़े नेता के प्रति यह सुनने को मिलता है कि भाई वक्त की बात है हम दोनों हैं तो बराबर के लेकिन आज हम कहां और वह कहां है।
आजकल यह देखने में आ रहा है कि कुछ छुटभैया नेता वास्तव में बड़े नेताओं की तरह सोशल मीडिया के माध्यम से जनता का प्रतिनिधि होने का ढोंग करने मे लगे हुए हैं। ये नेता धरातल पर कहीं नजर नहीं आते, फिर भी बड़े नेताओं की नकल करते हुए अपने लिए कार्यकर्ताओं की टीम खड़ी करने लगे हुए हैं। ये छुटभैया नेता 10 से 12 कार्यकर्ता को एक टीम के रूप में सोशल मीडिया के सामने ऐसे प्रस्तुत करते हैं मानो किसी बड़े नेता की टीम हो। ये छुटभैये अपने मुठ्ठी भर कार्यकर्ताओं के जन्मदिन, शादी की सालगिरह, उनके घर आए हुए नन्हे मेहमान का आगमन व वाहन खरीदने जैसे कार्यों का केक काटकर सोशल मीडिया पर इन कार्यक्रमों को इतना बड़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं मानो वह उनके कितने बड़े हितेषी हैं।
छुटभैया नेता अपने वार्ड में होने वाले किसी कार्य को ऐसे सोशल मीडिया पर प्रस्तुत करते हैं जैसे कि उसका समाधान इन्होंने ही करवाया है और वह किसी बड़े नेता से कम नहीं हैं। ऐसे छुटभैया नेता आमतौर पर हर वार्ड में देखने को मिल जाते हैं। परंतु उनकी एक बात यह देखने को मिलती है कि वह यह भी कहने से नहीं हिचकिचाते कि उनके आकाओं के निर्देश पर अमुक समस्या का समाधान हुआ है।
बड़े आकाओं के पास एसे छुटभैया नेता की बड़ी फौज है। सभी छूटभैया नेताओं पर आकाओं का हाथ होता हैं। क्योंकि उनको पता है कि इन्हीं छुटभैया नेताओं के कारण नेताओं की कुर्सी बची हुई है। अधिकतर छुटभैया नेताओं की आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है कि वह पार्षद का भी चुनाव लड़ सकें परंतु सोशल मीडिया के माध्यम से वह अन्य नेताओं के समक्ष उनकी बराबरी करते हैंं।
अक्सर देखने में ऐसा आया है कि ऐसे छुटभैया पैसे के लोभ के लिए चुनाव में खड़े होते हैं व पैसे लेकर किसी नेता की शरण में चले जाते हैं। निगम चुनाव की अभी घोषणा नहीं हुई है, देखना यह होगा कि ऐसे कितने नेता टिकट लेने में कामयाब होंगे कितने पैसे लेकर दूसरे नेताओं की गोदी में बैठेंगे व कितने मैदान छोडक़र जाएंगे।