छह स्कूली बच्चे मरने पर भी आंख नहीं खुली सरकार की, दोष स्कूल पर मढक़र इतिश्री की

छह स्कूली बच्चे मरने पर भी आंख नहीं खुली सरकार की, दोष स्कूल पर मढक़र इतिश्री की
April 21 13:25 2024

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
जि़ला महेन्द्रगढ़ के कनीना में हुई एक स्कूली बस दुर्घटना में छह बच्चों की मौत हो गई। उस दिन ईद का त्योहार भी था। बताया जाता है कि ड्राइवर ने शराब पी रखी थी। चालक के नशे में होने के कारण गांव वालों ने बस रुकवा कर स्कूल की प्रिंसिपल से शिकायत भी की थी लेकिन भाजपा से जुड़े मालिक की स्कूल प्रिंसिपल ने उल्टे गांव वालों को देख लेने की धमकी देकर बस छोडऩे को मजबूर किया दी थी। स्कूल पर सवाल उठाए गए कि ईद की छुट्टी होने के बावजूद स्कूल क्यों खुला था।

ऐसा कोई कानून नहीं है कि छुट्टी के दिन बच्चों को अतिरिक्त क्लास के लिये स्कूल न बुलाया जाए। रही बात शराबी ड्राइवर की तो स्कूल वालों को समय-समय पर अपने ड्राइवर की जांच करते रहना चाहिए; फिर भी यदि कोई ड्राइवर स्कूली जांच से बच निकलता है तो उसे पकडऩे का दायित्व सरकार का है। सडक़ पर चल रहे वाहनों की हर तरह से चेकिंग करना सरकार का दायित्व है। जांच में सामने आया कि स्कूल बस फिटनेस सर्टिफिकेट सितंबर 2017 में समाप्त हो चुका था, बीमा भी नहीं था। एनसीआर में कोई डीजल बस 15 साल के बाद नहीं चल सकती। दोषियों को कानून के मुताबिक सज़ा देने का पूरा अधिकार भी सरकारी अधिकारियों को दिया गया है।

उक्त दुर्घटना होने के बाद अब पूरी हरियाणा सरकार मानों नींद से उठ गई। धड़ाधड़ स्कूल बसों के चालान थोक के भाव काटे जा रहे हैं। हर जि़ले के डीसी-एसपी तो क्या जि़ला शिक्षा अधिकारी तक एक्शन मोड में उतर आए हैं। तमाम स्कूलों को हडक़ाया जा रहा है कि वे अपनी-अपनी बसों की फिटनेस दुरुस्त कराने के साथ-साथ तमाम दस्तावेज पूरे करें। इतना ही नहीं बस ड्राइवरों की तमाम तरह की जांच पड़ताल की जिम्मेवारी भी स्कूल वालों पर ही डाल दी गई है। प्रश्न यह पैदा होता है कि सडक़ पर चलने वाले तमाम वाहनों की तरह स्कूल बसों की नियमित जांच अभी तक क्यों नहीं की जा रही थी? सरकार की ओर से बाकायदा ट्रैफिक पुलिस तथा आरटीए का जो महकमा केवल इसीलिये खड़ा किया गया है, वह अब तक क्या कर रहा था? क्या ये महकमे उक्त दुर्घटना की बाट जोह रहे थे? क्या इन महकमों का काम केवल वसूली करने का रह गया है? इतना ही नहीं वक्त जरूरत सत्तारूढ़ दल की रैलियों के लिये स्कूल बसें उपलब्ध कराना ही इनका काम रह गया है?

अपने ऊपर किसी तरह की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए, अधिकारियों द्वारा सारी जिम्मेदारियां स्कूल वालों पर डाली जा रही हैं। गौरतलब है कि स्कूल वाले केवल, वह भी कुछ सीमा तक अपनी ही बसों की जिम्मेदारी निभा सकते हैं। जो बच्चे निजी वाहनों में बुरी तरह से लद-लद कर स्कूल पहुंचते हैं, उन पर कार्रवाई करने का कोई अधिकार स्कूलों के पास नहीं है।
विदित है कि बीते वर्षों में जब भी इन निजी वाहनों द्वारा कोई दुर्घटना हुई तो प्रशासन नींद से उठकर उनके पीछे लगता रहा है लेकिन कुछ समय के बाद फिर वही पुराना ढर्रा चल पड़ता है। और तो और नाबालिग बच्चों द्वारा वाहन चला कर स्कूल पहुंचने के लिये भी स्कूल संचालकों को दोषी ठहराने की चेतावनी दी जाती रही है, जबकि किसी भी प्रिंसिपल के लिये यह मुमकिन नहीं कि वह इसका संज्ञान लेकर बच्चों के खिला$फ कोई कार्रवाई कर सके। कुल मिलाकर निकम्मे अधिकारी खुद कुछ न करके सारा काम स्कूल संचालकों पर डाल कर निश्चिंत हो जाना चाहते हैं।

छह बच्चों की मौत और दो दर्जन बच्चों के गंभीर रूप से घायल होने के लिए स्कूल प्रबंधन के साथ ही आरटीए और ट्रैफिक पुलिस भी जिम्मेदार है। इन पर कार्रवाई करने के बजाय इनको ही मामले की जांच सौंप दी गई। आए दिन सडक़ पर उतर कर वाहनों की जांच करने वाले आरटीए को और जब-तब यातायात जागरूकता सप्ताह, पखवाड़ा मनाने वाली ट्रैफिक पुलिस को सात साल से बिना फिटनेस व बीमा के दौड़ रही स्कूल बसों की जानकारी न हो ये संभव नहीं। यानी सडक़ पर यमदूत बन कर दौडऩे वाली इस तरह की स्कूल बसों के लिए ये अधिकारी भी जिम्मेदार हैं। स्कूलों में चल रही अराजकता की जवाबदेही डीईओ की है लेकिन उन्हें भी जांच कमेटी में शामिल कर लिया गया, हालांकि उन्हें बाद में हटा दिया गया। जब दोषी अधिकारी ही जांच करेंगे तो समझा जा सकता है कि रिपोर्ट क्या आएगी?

छह बच्चों की मौत के दोषियों पर कार्रवाई करने की सरकार की नीयत दिख नहीं रही है, अन्यथा हादसे की जांच हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज से कराती। न्याययिक जांच में सभी की भूमिका स्पष्ट हो जाती। लेकिन सरकार घटना के प्रति कितनी संवेदनशील है, इसे शिक्षामंत्री सीमा त्रिखा के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने पीडि़त परिवारों के सामने झूठा शोक व्यवक्त करते हुए कहा कि आचार संहिता लागू है इसलिए वो कुछ कर नहीं पाएंगी। दरअसल स्कूल मालिक सुभाष लोढा भाजपा नेता है, शिक्षामंत्री ने पार्टी का पक्ष लेते हुए स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई करने झूठी घोषणा भी नहीं की। बताया जा रहा है कि महेंद्रगढ़ में ऐसी ही अनेक स्कूल बसें चल रही हैं, हादसे के बाद जांच से बचने के लिए स्कूल वाले इन बसों को राज्य की सीमा पार करा राजस्थान पहुंचा चुके हैं। उन्हें यातायात पुलिस और आरटीए दोनों ही रोक सकते थे लेकिन सत्ता की चमचागीरी और ऊपरी कमाई की हवस मेें अधिकारियों ने आंखें बंद कर रखी हैं।

स्कूल का मालिक, प्रिंसिपल, सचिव गिरफ्तार, एक अब भी फरार
छह स्कूली बच्चे की मौत से पगलाए प्रशासन ने ड्राइवर धर्मेंद्र के साथ-साथ स्कूल की प्रिंसिपल दीप्ति यादव व सचिव होशियार सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है। बाद में मालिक राजेन्द्र सिंह लोढा को भी पकड़ा गया, लेकिन सुभाष लोढा अभी भी फरार बताया जाता है। जाहिर है कि वह अग्रिम जमानत के लिये प्रयासरत होगा। गिरफ्तार प्रिंसिपल व सचिव को अदालत में पेश किया गया तो उन्हें पांच दिन के लिये पुलिस रिमांड पर दे दिया। समझ नहीं आता कि अदालत ने क्या सोच कर इन्हें पुलिस रिमांड पर भेजा है? यह भी समझ से परे है कि फरार मालिक को गिरफ्तार करके पुलिस क्या हासिल करना चाहती है?

उपलब्ध जानकारी के स्कूल प्रबन्धन की बस की फिटनेस 2017 में ही समाप्त हो गई थी और दस्तावेज़ भी पूरे नहीं थे। इसलिये उक्त दुर्घटना के लिये उन्हें भी दोषी बना दिया गया है। धर्मेंद्र शराब के नशे में धुत्त होकर स्कूल बस चलाता है इसकी शिकायत के बावजूद प्रबंधन ने उसे नहीं हटाया। घटना के दिन भी धर्मेंद्र ने शराब पी हुई थी, एक अभिभावक ने बताया कि छह महीने पहले उसने स्कूल जाकर चालक के शराब पीकर स्कूल बस चलाने की शिकायत की थी, लेकिन प्रबंधन ने कोई कार्रवाई नहीं की। दस दिन बाद फिर शिकायत की गई लेकिन उसे नहीं हटाया गया। एक विद्यार्थीं ने बताया कि चालक रोज स्टंट करता था, चलती बस में स्टीयरिंग व्हील निकाल लेता है, घटना के एक दिन पहले भी हादसा होते बचा था। घटना वाले दिन धर्मेंद्र को नशे में देख ग्रामीणों ने हादसे की आशंका पर बस रुकवा कर प्रिंसिपल से शिकायत की थी। चालक पर सख्ती करने के बजाय प्रिंसिपल ने अभिभावकों को ही धमका दिया था। यानी स्कूल प्रबंधन को चालक धर्मेंद्र के नशा करने और जोखिम भरी ड्राइविंग करने की पूरी जानकारी थी, इसके बावजूद उस पर लगाम लगाने के लिए बस में न तो कंडक्टर तैनात किया और न ही कोई टीचर। मोटी फीस वसूलने वाले स्कूल प्रबंधन को बच्चों की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं थी।

यहां एक और बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जो बस बिना फिटनेस व दस्तावेजों के ही सडक़ों पर दौड़ी फिर रही थी तो सम्बन्धित विभाग यानी कि ट्रैफिक पुलिस व आरटीए का महकमा क्या कर रहा था? सर्वविदित है कि जब भी किसी गाड़ी को फिटनेस दी जाती है तो रिकॉर्ड में यह भी दर्ज होता है कि दी गई फिटनेस कौन सी तारीख को खत्म हो रही है। क्या सम्बन्धित अधिकारियों की यह ड्रयूटी नहीं बनती थी कि फिटनेस समाप्ति की तारीख के बाद उस बस को पकड़ती? इसी तरह क्या ट्रैफिक पुलिस ने उस बस को चलते रहने देकर कोताही नहीं की? क्या ऐसे में उक्त दोनों महकमों के सम्बन्धित अधिकारियों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिये था?

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