यूसुफ किरमानी उत्तर भारत की गोबरपट्टी में भाजपा ने तीन राज्यों में जीत हासिल की। ये राज्य हैं एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़। एमपी में उसकी सरकार थी। राजस्थान और छत्तीसगढ़ उसने कांग्रेस से छीन लिए। तेलंगाना में जरूर कांग्रेस जीती है। लेकिन उसकी चर्चा कोई नहीं करना चाहता। इसकी समीक्षा तमाम विश्लेषक कर रहे हैं और उन्होंने 2024 के आम चुनाव के लिए भाजपा की जीत की भविष्यवाणी भी कर दी है।
उसमें कोई विश्लेषक यह नहीं बता रहा है कि भाजपा का वोट शेयर वही 42-44 फीसदी के आसपास बना हुआ है। यानी किसी भी सूरत में भाजपा आज भी उत्तर भारत में 50 फीसदी वोट हासिल नहीं कर पाई है। 50 फीसदी वोट का मतलब है कुल मतदाताओं का आधा हिस्सा। बहरहाल, जीत तो जीत है। फिर भी विचार जरूरी है।
तेलंगाना की जीत की चर्चा क्यों नहीं हो रही है दक्षिण भारत में भाजपा कहीं नहीं है। किसी भी राज्य में वो उल्लेखनीय तक नहीं है। इसे क्या माना जाए… उत्तर भारत के लोगों के लिए साम्प्रदायिकता, जातिवाद क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है। उसे उनके सामने रोजगार, महंगाई, शिक्षा के मुद्दे वाहियात लगते हैं। अगर उसने केंद्र सरकार के काम के आधार पर वोट दिया है तो केंद्र सरकार की सफलताएं सभी के सामने हैं। जो सरकार राजस्थान और एमपी में 450 रुपये गैस सिलेंडर का वादा करती है, उसका फायदा वो भाजपा शासित अन्य राज्यों में अभी देने को तैयार नहीं है। लेकिन लगता है कि उत्तर भारत में गोबर पट्टी के लोग इन महीन बातों को या तो समझ नहीं रहे या फिर वो धर्म के आधार पर अभी भी भाजपा को वोट दे रहे हैं। …लेकिन यह उनका फैसला है। उसे कोई चुनौती नहीं दी जा सकती। धर्म के सामने महंगाई, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य के मसलों की क्या औकात… 2024 के चुनाव का सीन लगभग स्पष्ट है। उत्तर भारत में ही सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। यूपी और बिहार सारा फैसला करते हैं। यूपी-बिहार में धर्म के चश्मे से मुद्दों को जो देखने का नजरिया है, वो भाजपा के लिए रामबाण औषधि है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद को शहीद कर मंदिर निर्माण का काम पूरा हो चुका है। 22 जनवरी को उद्घाटन है। जाहिर है कि उसके बाद फिजा और बदलेगी। यानी कुल मिलाकर गोबरपट्टी की जनता धर्म के आसपास ही अपना भविष्य तलाश रही है। कोई बुराई नहीं है, जिसमें जिसको जो सुख मिले। लेकिन तब शिकायत करना छोड़ दीजिए। सडक़ों पर नौकरियों के लिए, महंगाई के खिलाफ उतरना छोड़ दीजिए। खराब शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर आंसू बहाना छोड़ दीजिए। राष्ट्रवाद और खूंखार ध्रुवीकरण को ओढि़ए, बिछाइए या उसे खाकर पादिए।
हर चुनाव में जबरन एक समुदाय को जानबूझकर टारगेट बनाया जाता है। उस समुदाय को समझना होगा कि अब किसी भी चुनाव में उनके लिए कुछ नहीं होता। उन्हें अपने काम धंधे पर फोकस करना चाहिए। चुनाव में दिलचस्पी लेना, बातचीत करना छोड़ दीजिए। अगर आप किसी भी पार्टी में भारत और अपने बच्चों का भविष्य खोज रहे हैं तो बहुत बड़ी मूर्खता कर रहे हैं। इस चुनाव पर अभी इतना ही। कुल सार यही है- उत्तर भारत के ज्यादातर लोग तास्सुबी (विद्वेषी) हैं। जब तक वो तास्सुबी रहेंगे, कोई बदलाव नहीं होने वाला।