मज़दूर मोर्चा ब्यूरो फरीदाबाद। 22 सितम्बर को कार फ्री डे मनाया गया। इस दिन तमाम लोगों से अपेक्षा की गई थी कि वे अपने-अपने काम पर कार की बजाय साइकिल या पैदल आयें-जायेंगे। करोड़ों रुपये के विज्ञापन प्रकाशित कर के जनता को समझाने का प्रयास किया गया कि इस के द्वारा वायु प्रदूषण घटेगा। अगले दिन के अखबारों में मुख्यमंत्री खट्टर व उनके मंत्रियों-संत्रियों को साइकिल पर अपने दफ्तर जाते दिखाया। जि़ला स्तर पर डीसी व अन्य अफसरों को भी साइकलिंग करते दिखाया गया।
दरअसल यह सब कुछ एक नौटंकी से बढ कर कुछ भी नहीं था। उक्त वीआईपियों की साइकलिंग शोभा यात्रा आम जनता पर भारी पड़ रही थी। साइकलिंग के रास्तों पर पुलिस का अच्छा-खासा बन्दोबस्त किया गया था जिससे आम लोगों को आवागमन में काफी असुविधा हुई। बाकि अफसरों का तो पता नहीं लेकिन खट्टर जी शाम को दफ्तर से घर साइकिल पर नहीं आ पाये। लगता है कि वे दो-ढाई किलोमीटर की साइकलिंग करने से काफी थक गये होंगे।
न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिये बल्कि अपनी जेब रक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिये भी पैदल व साइकिल पर चलना बहुत लाभकारी है। परंतु यह सब साल में एक बार नौटंकी की तरह क्यों किया जाय? हर रोज़ ही ऐसा क्यों न किया जाय? इस तरह की नौटंकी करने वाले शासन-प्रशासन से ‘मज़दूर मोर्चा’ पूछता है कि हरियाणा के कौनसे शहर में पैदल चलने वालें के लिये फुटपाथ व साइकिल चालकों के लिये साइकिल ट्रैक बनाये गये हैं? एक भी शहर में नहीं। इसके चलते वाहनों की चपेट में आकर अनेकों पैदल व साइकिल पर चलने वाले घातक दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। लेकिन शासन-प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
हां, साइकिल ट्रैक बनाने के नाम पर तरह-तरह की ड्रामेबाजियां अक्सर होती रहती हैं। ऐसी ही एक ड्रामेबाज़ी फरीदाबाद में मौजूद है। यहां के उपायुक्त महोदय को यदि कभी फुर्सत मिले तो वे इसे अपने दफ्तर के बगल में ही देख सकते हैं। करीब तीन-चार साल पहले बाटा मोड़ से बाईपास की ओर जाने वाली सड़क जिसकी एक ओर सेक्टर 11 व दूसरी ओर सेक्टर 12 स्थित हैं, के किनारे पर 20 लाख रुपये की लागत से एक साइकिल ट्रैक बनाया गया था। उपायुक्त महोदय जरा उस ट्रैक पर साइकिल चलाकर दिखायें तो उन्हें मान जायेंगे। नियम यह है कि जब भी कोई सड़क बने तो उसके किनारे फुटपाथ व साइकिल ट्रैक बनाया जाय, जिस पर कभी किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया।
पूरे शहर में फुटपाथ व साइकिल ट्रैक बनाने की पर्याप्त जगह होने के बावजूद ये दोनों नदारद हैं। इन स्थानों पर प्रशासन की शह पर लोगों ने अवैध कब्जे कर रखे हैं। अजरोंदा मैट्रो स्टेशन से, अजरोंदा चौक तक चलने का अनुभव यदि उपायुक्त महोदय एक बार कर लें तो उन्हें बखूबी समझ आ जायेगा कि सड़क किनारे पैदल चलना कितना दूभर है। शहर में बने तीन अंडरपास जब पानी से भर जाते हैं तो पैदल व साइकिल सवार क्या करेंगे?
शहर में आज भी इस संवाददाता जैसे हजारों लोग ऐसे हैं जो अपने आवागमन के लिये साइकिल का इस्तेमाल करना चाहते हैं, परंतु इसे सुरक्षित न समझकर चौपहिया वाहन प्रयोग करना पड़ता है।