बुनियादी मुद्दों की वापसी ही मोदी की भारी हार को सुनिश्चित कर रही है

बुनियादी मुद्दों की वापसी ही मोदी की भारी हार को सुनिश्चित कर रही है
May 19 07:56 2024

अरुण माहेश्वरी
चौथे चरण के मतदान तक आते-आते अब 2024 के चुनाव ने साफ़ दिशा पकड़ ली है। मोदी और बीजेपी ने सोचा था कि वे अपने प्रचार तंत्र के बूते इस चुनाव को ‘जीत गये, जीत गये’ के महज एक शोर में बदल कर वैसे ही लूट ले जायेंगे, जैसे पुलवामा और बालाकोट के नाम पर 2019 में लूट लिया गया था। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को बीजेपी के ‘शोर’ की इस योजना में उसकी कुरूपता को छिपाने के महज़ एक पर्दे के रूप में तैयार किया गया था। पर चुनाव प्रचार के प्रारंभ के साथ ही ख़ास तौर पर राहुल गांधी के भाषणों और उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण ने गरीब जनता के जीवन से जुड़े विषयों को मोदी की मजऱ्ी के विरुद्ध इस चुनाव के केंद्र में स्थापित कर दिया।

अब चुनाव मुद्दा-विहीन ‘शोर’ के बजाय बाक़ायदा जनतंत्र के एक गहन राजनीतिक विमर्श में बदल चुका है। इस चुनाव का यही वह पहलू है जिसने मोदी को बदहवास कर दिया है, उनका समूचा प्रचार पटरी से उतरा हुआ दिखाई देने लगा है।

संसद और मीडिया की आवाज़ को कुचल कर मोदी ने अपने लिए जो प्रश्न-विहीन राजनीतिक वातावरण तैयार कर रखा था, इस चुनाव ने एक झटके में उस स्थिति को बदल डाला है।
प्रश्न मोदी के लिए वैसे ही हैं, जैसे बैल के लिए लाल कपड़ा होता है। प्रश्नों के सामने मोदी एक क्षण के लिए भी स्थिर नहीं रह पाते हैं। इसी कारण मोदी ऐसे किसी भी संवाददाता सम्मेलन या संवाद में शामिल होने से कतराते हैं। लेकिन 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन ने मोदी को खुले राजनीतिक विमर्श में खींच लिया है। मोदी अभी भी इससे भाग कर हिंदू-मुसलमान करते हुए अपनी ख़ास-ख़ास गुफा में छिपने के लिए आज भी हाथ-पैर मार रहे हैं। पर आज की सचाई यह है कि ऐसी किसी भी जगह पर अब वे अपने को सुरक्षित नहीं पा रहे हैं।
सही वजह है कि अभी मोदी की सारी हरकतों में बदहवासी साफ़ दिखाई दे रही है। इसके विपरीत राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के दूसरे सभी नेता मतदान के हर चरण के साथ अधिक जुझारू, अधिक निश्चित और आत्म-विश्वास से भरे हुए नजऱ आते हैं।

इस लड़ाई में दोनों पक्ष के नेताओं की यह स्थिति अभी से चुनाव के परिणामों का साफ़ संकेत देने लगी है। मोदी पर भ्रष्टाचार, खरबपतियों को रियायतें देने और संविधान पर हमला करने का आरोप पूरी तरह से चस्पां हो चुका है और मोदी इनमें से एक का भी सटीक उत्तर देने में असमर्थ दिखाई देते हैं। जबकि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन सामाजिक न्याय के चैंपियन के रूप में साफ़ तौर पर अपनी खोई हुई ज़मीन को वापस पाता हुआ दिखाई देता है। चुनाव के दौरान विकसित हुए इस राजनीतिक परिवेश ने मोदी कंपनी के साथ ही पत्रकारों की उस जमात को भी बदहवास कर दिया है जो मोदी कंपनी के शोर, उनकी एजेंसियों की दमनकारी कार्रवाइयों को ही राजनीति का पर्याय मान कर मोदी को अपराजेय समझे हुए थे; जो गाहे-बगाहे मोदी की शक्ति की वंदना में लगे हुए दिखाई देते थे।

यही वजह है कि मोदी के पतन के साफ़ संकेतों के बावजूद पत्रकार बिरादरी अब भी उनकी पराजय का सही-सही आकलन करने में विफल हैं। वे राहुल गांधी के आकलन की सचाई को नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं कि बीजेपी की सीटें 150-180 से ज़्यादा नहीं जाने वाली है। आज मतदान के चौथ चरण की पूर्वबेला में हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जो लोग इस चुनाव में बीजेपी को बहुमत न मिलने पर भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में देख रहे हैं, वे अपने इस आकलन में पूरी तरह से ग़लत साबित होंगे। योगेन्द्र यादव के स्तर के चुनाव विशेषज्ञ ने खुद ज़मीनी सर्वेक्षण से यह पता लगाया है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में बीजेपी के मतों में 33त्न की कमी आने वाली है। इससे पिछले चुनाव में हिंदी भाषी प्रदेशों में उसे मिले 50 प्रतिशत मतों का एक तिहाई अर्थात उसके मत कऱीब 33 प्रतिशत रह जायेंगे।

अभी सब जगह बीजेपी और इंडिया गठबंधन के बीच सीधी टक्कर के कारण मतों में 33 प्रतिशत की गिरावट सीटों में 67त्न की गिरावट साबित होगी। इस अनुमान से बीजेपी को मिलने वाली सीटों की कुल संख्या 100 से भी कम रह सकती है। यह आकलन 2011 में पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की पराजय के इतिहास से पूरी तरह मेल खाता है। तब कमोबेश ऐसी ही परिस्थितियों में सीपीआई(एम) की सीटें 176 से घट कर सिफऱ् 40 रह गई थी। इसी लेखक ने दस महीने पहले 16 जुलाई 2023 के दिन अपने ‘चतुर्दिक’ ब्लाग पर एक लेख लिखा था- ‘फासीवाद के कैंसर के खिलाफ संघर्ष में विपक्ष की बहुलतापूर्ण एकता और राहुल गांधी’। इसमें मोदी-आरएसएस के फासीवाद के विरुद्ध विपक्ष की रणनीति का उल्लेख करते हुए रोमन साम्राज्य के खिलाफ गुलामों के ऐतिहासिक विद्रोह के इतिहास का उल्लेख किया गया था।

उसमें लिखा था कि-“रोमन साम्राज्य के खिलाफ गुलामों के संघर्ष (स्पार्टकस) का इतिहास यह बताता है कि उस साम्राज्य में जितने ज्यादा गुलाम मालिक से विद्रोह करके भाग कर साम्राज्य के दूर-दराज के विभिन्न इलाकों में फैल गए थे, स्पार्टकस के संघर्ष का दायरा उतना ही विस्तृत होता चला गया था और उस विद्रोह में हर क्षेत्र की अपनी-अपनी विशिष्टताएं शामिल हो गई थी। विद्रोही गुलामों की टुकडिय़ों का कोई एक चरित्र नहीं था। सिर्फ गुलामी से मुक्ति ही उन सब अलग-अलग टुकडिय़ों को एक सूत्र में बांध रही थी। पर रोमन साम्राज्य की एक भारी-भरकम सेना के खिलाफ विद्रोही गुलामों की अपनी ख़ास प्रकार की इन अलग-अलग टुकडिय़ों की विविधता ही उस पूरी लड़ाई को दुनिया से गुलामी प्रथा के अंत की एक व्यापक सामाजिक क्रांति का रूप देने में सफल हुई थी। संघर्ष का दायरा जितना विस्तृत और वैविध्यपूर्ण होता गया, रोमन साम्राज्य की केंद्रीभूत शक्ति उतनी कमजोर दिखाई देने लगी और साम्राज्य को अनेक बिंदुओं पर एक साथ चुनौती देने की विद्रोहियों की ताकत उसी अनुपात में बढ़ती चली गई। देखते-देखते निहत्थे गुलामों के सामने रोमन साम्राज्य के तहत सदियों से चली आ रही समाज व्यवस्था का वह विशाल, महाशक्तिशाली किला बालू के महल की तरह ढहता हुआ नजर आया।”

“रोमन साम्राज्य में गुलामों के विद्रोह का यह गौरवशाली खास इतिहास इस बात का भी गवाह है कि संघर्ष की परिस्थितियां ही वास्तव में भविष्य की नई ताकतों के उभार की प्रक्रिया और उसके स्वरूप को तय करती है। हर उदीयमान निकाय का संगठन उसके घटनापूर्ण वर्तमान की गति-प्रकृति पर निर्भर करता है।” “कहना न होगा, आज हमारे यहां विपक्ष का वास्तविक स्वरूप भी शासक दल की चुनौतियों के वर्तमान रूप से ही तय हो रहा है। यह आज के हमारे समय की सच्चाई है कि बीजेपी को जितने ज़्यादा राज्यों में कड़ी से कड़ी टक्कर दी जा सकेगी, विपक्ष 2024 की लड़ाई में उतना ही अधिक शक्तिशाली और प्रभावी बन कर उभरेगा और दुनिया भर के संसाधनों से संपन्न बीजेपी उतनी ही लुंज-पुंज और उनका ‘विश्व नायक’ नरेन्द्र मोदी उतना ही एक विदूषक जैसा दिखाई देगा।”

आज जिस प्रकार राज्य दर राज्य मोदी को इंडिया गठबंधन के घटक दलों के नेतृत्व में कड़ी चुनौती दी जा रही है, और उसके सामने मोदी गली-गली भटकते हुए हांफते नजऱ आने लगे हैं, उसमें किसी भी केंद्रीभूत आततायी सत्ता को धराशायी करने की रणनीति की सफलता को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।
(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं।)

view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles