फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) भगवा ओढक़र शहर में सरेआम गुंडागर्दी करने वाले बिटुआ की गिरफ्तारी सारण थाना की पुलिस ने की तो सही, चाहे दिखावे के लिये ही। सरेआम एक मज़दूर को डंडों से पीटे जाने का वीडियो जब दुनिया भर में वायरल हो गया तो भी पुलिस की हिम्मत नहीं हुई कि इस भगवा गुंडे को घसीट कर हवालात में बंद कर दे। लोगों द्वारा पूछे जाने पर थाने के एसएचओ संग्राम सिंह का कहना था कि कोई शिकायत आएगी तो देखेंगे।
जिसके घर खुद सीएम खट्टर आता हो और उसका रौब एवं रुतबा बढ़ाने के लिये सरकार ने एक सिपाही भी उसे दे रखा हो तो भला उसके खि़ला$फ शिकायत कौन दर्ज कराए? लगता है कि वीडियो अत्यधिक वायरल होने से पुलिस आयुक्त राकेश आर्या को ही कुछ शर्म आई होगी तो उस गुंडे के खिलाफ हल्का-फुल्का मुकदमा दर्ज करके, थाने से ही चाय पिलाकर जमानत पर छोड़ दिया। ऐसे मामले में यदि कोई साधारण गुंडा होता तो कई दिन तक जेल की हवा तो खाता ही साथ में पुलिसिया ‘सेवा’ का अनुभव भी प्राप्त करता।
इतना ही नहीं गिरफ्तारी भी केवल बिटुआ की ही दिखाई गई है जबकि वारदात में लिप्त उसके दसियों लुंगारे खुले घूम रहे हैं। विदित है कि कुछ माह पूर्व जब यह संघियों द्वारा पाला गया गुंडा धौज के इलाके में साम्प्रदायिक गुंडागर्दी करके तत्कालीन डीसीपी एनआईटी नरेन्द्र कादयान के पास, अपने लिये सुरक्षा घेरा मांगने आया था तो उन्होंने उसे अच्छे से हडक़ा कर भगा दिया था। परन्तु जब खट्टर जैसा फ्लॉप सीएम ही गुंडे को प्रोत्साहित करने के लिये सुरक्षा प्रदान कराए तो अफसर भी बेचारे क्या करें?
दरअसल संघ समर्थित भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिये साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के अलावा और कोई रास्ता बचा भी नहीं है। इसके लिये पार्टी को बिटवाओं की खास जरूरत है। सुरक्षा के नाम पर इस सडक़ छाप गुंडे को पुलिस ने शस्त्र लाइसेंस भी आनन-फानन में जारी कर दिया था। जबकि यह सरेआम न केवल तलवार भांजता फिरता था बल्कि तलवारों के जखीरे का प्रदर्शन भी करता रहा है। अब चर्चा है कि पुलिस शस्त्र लाइसेंस कुछ माह पूर्व रद्द करने पर विचार कर रही है।
दरअसल उसे यह शस्त्र लाइसेंस कुछ माह पूर्व उसके भाई की मौत के बाद जारी किया गया था। उस मौत को इस गुंडे ने साम्प्रदायिक हत्या का रूप देने का विफल प्रयास किया था। जिसका खुलासा करने की हिम्मत पुलिस आज तक नहीं जुटा पाई है।
अंतत: बर्खास्त हुआ बिटुआ का सुरक्षाकर्मी मीडिया रिपोटों के अनुसार सुरक्षा के नाम पर बिटुआ को दिया गया विशेष पुलिस अधिकारी प्रमोद को बर्खास्त कर दिया गया है। देखने-सुनने में ‘विशेष पुलिस अधिकारी’ एक बहुत बड़ा पद नज़र आता है। जबकि वास्तव में यह ढंग का सिपाही भी नहीं होता। पुलिस के काम-काज से इसका कभी कोई वास्ता नहीं रहा होता $फौज से रिटायर हुए लोगों को साल भर के लिये इस पद पर नियुक्त करके पुलिस की वर्दी पहना कर हाथ में डंडा थमा दिया जाता है। इनकी कोई पुलिस ट्रेनिंग नहीं हुई होती। ऐसे में यदि इन्हें नकली सिपाही कहा जाय तो गलत न होगा। वेतन के नाम पर इन्हें मात्र 18-20 हजार रुपये मासिक मिलते हैं। असली सिपाही को इतनी आसानी से बर्खास्त नहीं किया जा सकता जैसे कि प्रमोद को कर दिया गया।