भ्रष्टाचार रोकने का जुनून या ई-पोर्टल द्वारा रिश्वत बढ़ाने पर लगा है जोर

भ्रष्टाचार रोकने का जुनून या ई-पोर्टल द्वारा रिश्वत बढ़ाने पर लगा है जोर
March 01 02:30 2023

रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पिछले दिनों गृहमंत्री डॉ. अमितशाह अपने कमजोरी लाल खट्टर को जो ताकत का इंजेक्शन लगा कर गये थे उसका असर दिखने लगा है। बेशक यह ताकत उनके दफ्तर अथवा सदन के चारदीवारी के भीतर ही प्रदर्षित हो रही हो, पर हो तो रही है। ई-टेंडरिंग के विरुद्ध संघर्षरत सरपंचों को कड़ाई से जवाब देते हुए वे फर्माते हैं कि उन्हें भ्रष्टाचार रोकने का जुनून है जिसके लिये ई-टेंडरिंग एवं डिजिटलाईजेशन जरूरी है। भ्रष्टाचार रोकने के लिये इस इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था के बीच में वे किसी जन प्रतिनिधि एवं नेता की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेंगे।

इस इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था पर अपना अटल विश्वास जताने वाले खट्टर क्या इतने नासमझ हैं कि उन्हें मालूम ही नहीं कि इस नई व्यवस्था ने सरकारी दफ्तरों में पहले से ही व्याप्त भ्रष्टाचार को कितने गुणा बढ़ा दिया है? न केवल बढ़ा दिया है आम जनता की पूरी ऐसी-तैसी कर रखी है। न तो पोर्टल चलते हैं न बाबू काम करते हैं और न ही अफसर काम करना चाहते हैं। काम केवल तभी होते हैं जब काम की मोटी ‘फीस’ मिल जाये। डिजिटलाईजेशन के ठेके केवल उन संघी ठेकेदारों को कमाई करने के लिये दिये जाते हैं जिन्हें न तो काम का पता होता है और न ही काम के तरीके का। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जयपुर की याशी कम्पनी का है जो आईडी बनाने के नाम पर लोगों की आईडी बिगाडऩे के बदले 57 करोड़ लेकर चलती बनी।

जरूरतमंद लोग जो बाबू के आमने-सामने बैठकर सीधे-सीधे ले-दे कर अपना काम निकाल लेते थे, वे अब साइबर ठगों व बिचौलियों के चक्कर में न केवल कई गुणा अधिक रिश्वत देने को मजबूर हैं बल्कि अपना बेशकीमती समय भी इनके चक्करों में बर्बाद कर रहे हैं। लोग अपने दस्तावेज़ लेकर बाबू के सामने रखते हैं तो बाबू कहता है कि वह तो केवल ऑनलाइन कम्प्यूटर पर आये दस्तावेज़ ही देख सकता है, सामने मेज पर रखे दस्तावेज वह नहीं देख सकता। यदि कोई चतुर, बाबू के सामने ही बैठ कर अपने लैपटॉप से बाबू को ऑनलाइन दस्तावेज भेजता है तो बाबू कहता है कि सर्वर डाउन है, साइट काम नहीं कर रही है, जब साइट चलेगी तो वह दस्तावेज़ देखेगा। बस यही खेल हफ्तों और महीनों चलता रहता है।

इस तरह का कोई इक्का-दुक्का तो मामला है नहीं। ‘हूडा’, एमसीएफ तथा तहसील से लेकर हरियाणा सरकार के हर कार्यालय में यह तमाशा लगातार बीते करीब एक साल से चला आ रहा है और मीडिया में इसकी लगातार रिपोर्टिंग होने के बावजूद खट्टर के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। ऐसे में ये क्यों न समझा जाये कि ‘भ्रष्टाचार रोकने का जुनून’ बताने वाले खट्टर का असली उद्देश्य भ्रष्टाचार को अधिक से अधिक बढ़ा कर जनता की ऐसी-तैसी करना है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि दफ्तरों के चक्कर काटे बगैर घर बैठे लोगों के काम ऑनलाइन हो जायें तो इससे बढिया कोई बात हो नहीं सकती। परन्तु इसके लिये सरकार व उसके अफसरों की नीयत का सा$फ होना जरूरी है। जो सरकारी मशीनरी रिश्वतखोरी के बगैर चल नहीं सकती वह भला ऑनलाइन व्यवस्था को क्यों चलने देगी? रही-सही कसर राजनेता मोटे चंदे लेकर निकम्मे ठेकेदारों को ठेका देकर पूरी कर देते हैं।

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Mazdoor Morcha
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