फरीदाबाद (म.मो.) सरकारी फंड के 27 लाख रुपये के गबन केस में फंसी डीईओ मुनीष चौधरी ने, ‘खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे’ की तर्ज पर पूर्व डीईओ रितु चौधरी को अपने से भी ज्यादा भ्रष्ट एवं घोटालेबाज साबित करने के लिये एक सेवा निवृत डिप्टी डीईओ मंजीत सिंह को मैदान में उतारा है। लकड़ी की तलवार सरीखे आरोपों से पूर्व डीईओ पर हमला करते हुए मंजीत सिंह बाकायदा प्रेस वार्ता करके उन पर करोड़ों रुपये के गबन का आरोप लगाते हैं।
मंजीत कहते हैं कि पूर्व डीईओ रितु ने करीब सात-आठ साल पहले बतौर बीईओ (खंड शिक्षा अधिकारी) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सराय ख्वाजा साखा में अपने नाम व पद से एक निजी खाता खुलवाया था। इस खाते में उन्होंने जबरन अपने स्टाफ व अन्य सम्बन्धित लोगों से बड़ी मात्रा में धन की वसूली की थी। इस बावत उन्होंने आरटीआई के माध्यम से तमाम प्रमाण एकत्र करके सम्बन्धित उच्चाधिकारियों को शिकायतें की थी, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की।
कार्रवाई होती भी कैसे? ऊपर बैठे तमाम उच्चाधिकारी मंजीत सिंह की तरह अक्ल के अंधे तो हैं नहीं जो इस तरह की बेबुनियाद शिकायतों पर कोई कार्रवाई कर पाते।
‘मज़दूर मोर्चा’ ने अपनी जांच में पाया कि तत्कालीन बीईओ रितु चौधरी ने गरीब एवं बेसहारा अपने स्कूली बच्चों के लिये एक निजी कोष की स्थापना की थी। उनकी प्रेरणा से स्टाफ के अनेकों शिक्षक व कर्मचारी, उस वक्त अत्यधिक प्रभावित हो गये जब उन्होंने स्वयम् अपनी जेब से एक लाख रुपये इस कोष में डाले। इससे प्रेरित करीब 70-75 स्टा$फ सदस्यों ने भी अपनी-अपनी श्रद्धा एवं क्षमतानुसार 100, 200,1000, 2000 इत्यादि रुपये इस कोष में दान किये थे। रितु के अपने एक लाख व अन्य लोगों से आये दान की कुल रकम एक लाख 72 हजार हो गई, जो आज तक भी उसी बैंक के उसी खाते में ज्यों की त्यों पड़ी हुई है।
खाते में रकम ज्यों की त्यों इसलिये पड़ी रह गई कि मुनीष चौधरी व मंजीत सिंह जैसे जनविरोधी लोगों के पेट में, रितु के इस कदम से इतना दर्द हुआ कि उनका तबादला गुडग़ांव करा दिया गया। उनके स्थान पर बीईओ का चार्ज मुनीष चौधरी को मिल गया। शिकायतबाजी व तबादले के चलते रितु चौधरी वह सब नहीं कर पाई जो वे बेसहारा एवं अपने गरीब छात्रों के लिये करना चाहती थी।
गौरतलब है कि आज तक भी इस फंड में किसी दान दाता ने तत्कालीन बीईओ के खिला$फ कोई शिकायत कहीं दायर नहीं की है। इस सारे मामले को समझने के बाद अक्ल के दुश्मन सरदार मनजीत सिंह से कोई यह पूछे कि इसमें जुर्म क्या बना और कोई कार्रवाई क्या करे? जाहिर है कि मंजीत सिंह यह सारी कवायद गबन केस में आरोपित डीईओ मुनीष चौधरी को राहत पहुंचाने के इरादे से कर रहे हैं। वैसे भी मुनीष अपने विरुद्ध दर्ज एफआईआर के लिये पूर्व डीईओ को जिम्मेदार ठहरा चुकी है।
अपने आप को कवि बताने वाले मंजीत 49 देशों का दौरा कर चुकने का दावा भी करते हैं। इसके अलावा वे अपने आप को 9-10 किताबों का लेखक भी बताते हैं। सवाल पैदा होता है कि उक्त कामों में व्यस्त रहने वाले मास्टर मंजीत सिंह बच्चों को पढ़ाते कब थे?
दूसरा सवाल यह भी पैदा होता है कि क्या उन्होंने इतनी विदेश यात्रायें करने की कोई परमिशन अपने विभाग से ली थी या मुनीष चौधरी की तरह बिना परमिशन व छुट्टी लिये ही विदेश भ्रमण करते रहे? इनके विभागीय सूत्र बताते हैं कि इन्होंने प्रिंसिपल से पदोन्नत होकर बीईओ बनने से इन्कार कर दिया था। कुछ वर्ष बाद इन्हें अपनी मूर्खता का एहसास हुआ तो जुगाड़बाजी करके सीधे डिप्टी डीईओ पद पर पदोन्नत हो गये जो कि नियमों के विरुद्ध था।
कवि मंजीत सिंह को तत्कालीन बीईओ का उक्त उपक्रम तो घोटाला प्रतित होता है। लेकिन फर्जी डिग्री के आधार पर 20 साल तक सर्व शिक्षा अभियान में डकैतियां मारने वाला दीपक कपूर नजर नहीं आता जो इन्हीं के स्कूल में रहकर सारे गुल खिलाता रहा। इसी तरह सेहतपुर के स्कूल में 50-60 लाख रुपये का भवन निर्माण घोटाला करने वाला यतिन्द्र शास्त्री भी इनको नजर नहीं आता।
सर्वविदित है कि उक्त दोनों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हैं। यतिन्द्र से तो उक्त रकम की वसूली करने के भी आदेश आये हुए हैं। उसे नौकरी से बर्खास्तगी की ओर ले जाने की बजाय डीईओ मुनीष ने उसे नौकरी पर बहाल कर दिया है। इस पर भी कवि ह्दर मंजीत खामोश हैं।