हरियाणा में दस की दस सीटें हार रही है भाजपा मज़दूर मोर्चा ब्यूरो यूं तो देश भार से मिल रही सूचनाओं के आधार पर समझा जा रहा है कि भाजपा की हालत निहायत ही खस्ता है। विश्लेषक भाजपा को 150 से 200 के बीच सीट मिलने का अनुमान लगा रहे हैं। हरियाणा में, जहां 2014 और 2019 में दस में दस सीट भाजपा ने जीतीं थीं वहीं अब दस की दस सीटें भाजपा हारने जा रही है।
सिरसा की रिजर्व सीट से कांग्रेस की सैलजा के मुकाबले भाजपा के जिस अशोक तंवर को खड़ा किया गया वह कभी कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष था। लेकिन अपनी नालायकियों और अति महत्वाकांक्षाओं के चलते जल्दी सीढिय़ां चढऩे के चक्कर में कभी तृणमूल कांग्रेस तो कभी आम आदमी पार्टी से धक्के खाकर भाजपा के धौरे पहुंचने वाले तंवर की हालत क्षेत्र निहायत ही खस्ता है। वे जिस भी गांव में जाते हैं जनता उनका खदेड़ा कर देती है, कुल मिलाकर प्रचार के लिए जनता ने उन्हें इलाके में घुसने तक नहीं दिया।
लगभग यही स्थिति हिसार से कांग्रेसी उम्मीदवार जयप्रकाश के मुकाबले भाजपाई रणजीत चौटाला की भी है। रणजीत की अपनी विशेषता तो कभी कोई रही नहीं, सिवाय इसके कि वह ओम प्रकाश चौटाला का भाई है। दुष्यंत द्वारा भाजपा से की गई सौदेबाजी के तहत उन्हें भी मंत्रीमंडल में एक टुकड़ा फेक दिया गया था। कभी भाजपा या आरएसएस का सदस्य न रहते हुए भी भाजपा द्वारा उन्हें अपना उम्मीदवार बनाना सिद्ध करता है कि हिसार जिले में भाजपा के पल्ले कुछ नहीं है। चुनाव प्रचार के दौरान रणजीत जब भी इलाके में जाते हैं तो सभ्य ग्रामीण किसान आंदोलन को लेकर उन पर सवालों की बौछार करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर उग्र किसान व युवा उनका बुरी तरह से खदेड़ा करते रहे हैं, परिणाम स्वरूप वे भी इलाकेे में कहीं वोट मांगने न जा सके।
भिवानी-नारनौल से कांग्रेसी उम्मीदवार राव दान सिंह के मुकाबले भाजपा ने अपने चले हुए कारतूस धर्मवीर को पुन: मैदान में उतारा है। कहा जाता है कि खट्टर की बेरुखी के चलते कोई बड़े गफ्फे न मार पाने की वजह से धर्मवीर पूरी तरह निराश होकर घर बैठ चुके थे। मजबूरी में जब कोई न मिला तो भाजपा ने धर्मवीर को ही मैदान में उतारा।उन्हें मैदान में उतार तो दिया गया लेकिन क्षेत्र का शायद ही ऐसा गांव बचा हो जिसमें वो वोट मांगने को घुस पाए हों। भिवानी जिले के नीमड़ी वाली गांव में तो लोगों ने तो उन्हें इस कदर बेइज्ज़़त किया कि उन्हें अपने सिर की पगड़ी भी लोगों के बीच में रख कर जान छुटानी पड़ी।
भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट समझी जाने वाली गुडग़ांंवां सीट भी दो बार केंद्रीय मंत्री रहे राव इंदरजीत के हाथ से निकलती नजर आ रही है। उनके सामने जिस कांग्रेसी राज बब्बर को बाहरी एवं कमजोर समझा जा रहा था वे अब इंदरजीत पर भारी पड़ चुके हैं। विदित है कि बब्बर ने राजनीति का ककहरा मुलायम सिंह की शागिर्दी में रहकर सीखा था, बाद में वह उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व आगरा से दो बार सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस का सबसे बड़ा वोट बैंक मेवात के लगभग पांच लाख वोट है। इसके अलावा युवा एवं शहरी पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का भारी समर्थन मिला है। जाहिर है ऐसे में भाजपा की सबसे मज़बूत कही जाने वाली सीट भी हाथ से निकलनी तय है।
फरीदाबाद से सांसद एवं केंद्रीय मंत्री रह चुके कृष्णपाल गूजर ने सत्ता का दुरुपयोग करके जो लूट मार मचाई उसके चलते लोगों ने उसे करप्शनपाल तक कहना शुरू कर दिया। घमंड इतना कि ‘मुझे तुम्हारा वोट न चाहिए’ अपने काम के लिए आने वाले जनता से यह कहना आम बात थी। आत्ममुग्धता इतनी कि सार्वजनिक मंच से अपनी जीत को पत्थर की लकीर कहना उनके लिए आम बात थी। हालात ये हैं कि उनकी जमानत भी बच जाए तो बड़ी बात है।
हरियाणा की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले रोहतक क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा का अच्छा खासा प्रभाव समझा जाता है। यहां से भाजपाई पूर्व सांसद डॉ. अरविंद शर्मा के मुकाबले भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा को कांग्रेसी उम्मीदवार बनाया गया है। 2019 में भी इन दोनों के बीच मुकाबला था, उस वक्त सरकारी हेराफेरी के चलते हारते हुए अरविंद शर्मा को विजयी घोषित करवा दिया गया था। लेकिन इस बार दीपेंद्र की जीत का अंतर इतना बड़ा होने जा रहा है जिसे सरकारी अफसर नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे।
सोनीपत से भाजपा ने मोहन लाल बडोली को और कांग्रेस ने सतपाल ब्रह्मचारी को मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी के प्रचार के लिए 22 मई को गोहाना में अमित शाह की एक जनसभा का आयोजन किया गया था। भाड़े पर लाई गई भीड़ के बावजूद जब कुर्सियां भरती नजर न आईं तो जेल में बैठे तथाकथित धर्मगुरु रामपाल के करीब सात हजार अंध भक्तों को लाया गया जिनकी पहचान उनके गले में लटके बाबा के लॉकेट से होती थी, धर्मगुरुओं एवं अंधविश्वास फैलाने वालों का सहारा लेना भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है। किसान आंदोलन में बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाने वाले क्षेत्रवासी भाजपाइयों से जो कड़े सवाल पूछते हैं तो वे भाग खड़े होते हैं। जाहिर है यह सीट भी भाजपा को मिलने वाली नहीं है। करनाल सीट से भाजपा को जब कोई न मिला तो अपने उस फुके हुए कारतूस को मैदान में उतार दिया जिसने नौ साल में पूरे हरियाणा का सत्यानाश कर डाला। पाठक भूले नहीं होंगे ये वही खट्टर और वही करनाल का क्षेत्र है जहां किसान आंदोलन के दौरान पूरी हरियाणा पुलिस के प्रयासों के बावजूद इनका हेलीकॉप्टर नहीं उतरने दिया गया था इतना ही नहीं पूरे पांडाल का तहस नहस कर दिया गया था। चलो वो तो पुरानी बात हो गई, अभी कुछ दिनों पहले ही कैमला गांव में कई जिलों की पुलिस भी खट्टर के पंडाल को तहस नहस होने से नहीं बचा सकी थी। ऐसे में भला खट्टर किस मुंह से चुनाव जीतने की उम्मीद कर सकते हैं। रही सही कसर पानीपत की पूर्व भाजपा विधायक रोहिता रेवड़ी की बगावत ने पूरी कर दी। कुरुक्षेत्र से भाजपा को जब कोई उम्मीदवार नहीं मिला तो वहां के पूर्व कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल को मैदान में उतार दिया। ये वही नवीन जिंदल हैं, जिन्हें समय पहले भाजपाई कोयला चोर और न जाने क्या क्या कह कर पुकारते थे। स्थानीय भाजपाई कार्यकर्तओं ने भी इसी बिंदु को मुद्दा बनाते हुए कहा कि जिसे हम कल तक कोयला चोर कह रहे थे उसके लिए हम वोट कैसे मांगेगे? यहां जिंदल का मुकाबला इंडिया गठबंधन के घटक आम आदमी पार्टी के सुशील गुप्ता से है। मुकाबले को तिकोना बनाने के लिए इनेलो के अभय चौटाला भी जाट वोटों के दम पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैँ। उपलब्ध जानकारी के अनुसार पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा किए जा रहे कल्याणकारी कार्यों को भुना कर आम आदमी जीत हासिल करने वाली है।
अंबाला के पूर्व भाजपाई सांसद रतन लाल कटारिया का करीब डेढ़ साल पूर्व देहांत हो गया था। नियमानुसार उनकी मृत्यु के बाद इस सीट पर उप चुनाव हो जाना चाहिए था लेकिन किसान आंदोलन व सरकार की अन्य जनविरोधी नीतियों के चलते भाजपा की हिम्मत न हुई कि उपचुनाव करा सके। क्योंकि भजपा को यहां अपनी हार सुनिश्चित नजर आ रही थी। लेकिन अब तो चुनाव टाले टल नहीं सकता था इसलिए कराना पड़ रहा है। कटारिया की सहानुभूति का लाभ उठाने के लिए भाजपा ने उनकी पत्नी बंतो देवी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले कांग्रेसी नेता दिवंगत फूलचंद मुलाना के बेटे वरुण चौधरी को मैदान में उतरा है। पंजाब से लगते इस इलाके में किसान आंदोलन का भरपूर असर रहा है जो भाजपा पर भारी पड़ रहा है। रही सही कसर राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल विज ने पार्टी से अपनी नाराजगी प्रकट करके पूरी कर दी है। इन हालात ने बंतो देवी की हार निश्चित समझी जा रही है।
यही स्थिति ज्यों की त्यों दिल्ली की सात और चंडीगढ़ की एक सीटों की भी है। यानी की दिल्ली सात, हरियाणा की दस और चंडीगढ़ की एक सीट कुल 18 सीटों पर भाजपा का पूर्ण सफाया स्पष्ट है। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को मौखिक आदेश दिए गए हैं कि यदि भाजपा का कोइ उम्मीदवार बीस से पच्चीस हजार वोटों से हार रहा हो तो उसे जीता घोषित कर दो, बाकी बाद में देख लेंगे। दरअसल, बाद में होता-जाता कुछ नहीं है। इसके लिए कोर्टों में धक्के खाने पड़ते हैं, जब तक कोर्ट का फैसला होता है तब तक अगला चुनाव आ जाता है।
इस तरह की हेराफेरी कोई नई बात नहीं है, नई बात केवल इतनी है कि जो हेराफेरी सैकड़ों वोटों के मामले में की जाती थी या हजार दो हजार के मामले में की जाती थी उसकी सीमा बढ़ाकर अब बीस से पच्चीस हजार कर दी गई है। इस हेराफेरी से बचने के केवल दो ही तरीके है, पहला यह कि जीत का अंतर हजारों में न होकर लाखों में हो और दूसरा यह कि जनता मतगणना केंद्र पर सजग और जुझारू रूप से प्रशासन का मुकाबला करे। यहां प्रशासन का हथकंडा यह होता है कि मतगणना को लंबे से लंबा खींचा जाए ताकि सरकार विरोधी जनता थक हार कर टूट जाए और निढाल होकर घर चली जाए।
ला रहे भाड़े की भीड़ फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) गदपुरी टोल नाके के ठेकेदार शीशपाल जिसकी पत्नी होडल नगर पालिका की अध्यक्ष भी है, ने 23 मई का कोसी उत्तर प्रदेश से करीब साढ़े तीन सौ लडक़ों को बुलाकर कृष्णपाल की जनसभा की रौनक को बढ़ाया। विदित है कि सभा में कोई आदमी तो बुलाया जाता नहीं इसलिए भाड़े पर लोग बुलाए जाते हैं। टोल नाकों पर लूट कमाई होती है इसलिए शीशपाल ये खर्चे वहन कर सकता है।
हर तरफ हो रहा विरोध फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) मोहना से आगे सोलडा गांव में रक्षामंत्री को बुलाया गया। जो कृष्णपाल घमंड से घूमता था कि उसे वोट नहीं चाहिए उसको वोट दिलाने के लिए रक्षामंत्री को बुलाना पड़ा। गांव में महज दो ढाई हज़ार वोट हैं उन्हें साधने के लिए भाजपा को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को मैदान में उतारना पड़ा, बावजूद इसके वहां भाजपा और कृष्णपाल को विरोध का सामना करना पड़ा। गांव के अनेक युवा विरोध करने के लिए सभा स्थल की ओर जा रहे थे लेकिन पुलिस के दम पर उन्हें जाने से रोका गया, युवाओं की यह भीड़ दूर से ही भाजपा और कृष्णपाल के खिलाफ नारेबाजी करते रहे।