भाजपा शासन में गायों की दशा निम्नत्तम स्तर पर

भाजपा शासन में गायों की दशा निम्नत्तम स्तर पर
February 21 02:06 2023

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) गाय को माता कहने वाले इस भारतवर्ष में जितनी दुर्दशा गाय की होती रही है उतनी दुनियां के किसी भी देश में नहीं होती। जिस तरह से लावारिस गायों के झुंड के झुंड सडक़ों, गलियों, बाजारों व खेतों में घूमते इस देश में मिलेंगे, अन्य किसी भी देश में नहीं मिल सकते। भूखी-प्यासी गाय जिस खेत में घुसती है वहीं उसे लट्ठ पड़ते हैं, जिस दुकान अथवा रेहड़ी पर मुंह मार कर कुछ खाने का प्रयास करती है वहीं उस पर लट्ठ पड़ते हैं। इसी के चलते किसी गाय का सींग टूटा है तो किसी की टांग तो किसी की आंख फूटी है। इन्हीं हालात के चलते ये भूखी गायें गंदगी के ढेरों पर गंद व पॉलीथीन खाती मिलेंगी।

भाजपा सरकार आने के बाद तो इनकी दुर्दशा और भी बढ गई है। अब न केवल इनके झुंडों की संख्या बढ गई है बल्कि सरकारी एवं गैर सरकारी गौशालाओं में भी कैद काट रही हैं। खट्टर ने हरियाणा की बागडोर सम्भालते ही गौ-सेवा आयोग बना कर उसका एक चेयरमैन बना दिया था। सर्वप्रथम पलवल के किसी भानीराम को तथा अब श्रवण कुमार गर्ग को इस आयोग का चेयरमैन बनाया है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार राज्य भर की 600 गौशालाओं में साढ़े 16 लाख से अधिक गायें कैद हैं। इन पर हरियाणा सरकार 50 करोड़ वार्षिक खर्च करने का दावा करती है। यह रकम इतनी गायों के लिये ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इतनी रकम से तो उनके चारे व बीमारी का इलाज तो दूर पानी पिलाने का खर्च भी नहीं चल सकता।

गौशालाओं की हालत देखने वाले बताते हैं कि उनमें न तो गर्मी-सर्दी व बरसात से बचने के लिये शेड है और न ही अच्छी तरह टहल पाने की जगह क्योंकि कम स्थान में इतनी अधिक गायें घुसेड़ रखी हैं कि उनका खुल कर चलना-फिरना भी दूभर है। जहां तक बीमार गायों के इलाज का सवाल है, उस पर तो बात करना ही फिजूल है। यद्यपि संघी-भाजपाई रोगी गायों के इलाज एवं दवा-दारू का ढोल तो खूब पीटते हैं परन्तु धरातल पर निल बटा सन्नाटा है। जब पशु चिकित्सा सेवाओं के आभाव के चलते पालतू पशुओं का ही इलाज दुर्लभ है तो इन बेचारी लावारिस गायों को इलाज कहां सुलभ हो सकता है?

रही बात सरकार द्वारा 50 करोड़ खर्च करने की तो यह सही हो सकती है, परन्तु इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस भ्रष्टाचारी युग में यह सारा पैसा बिना किसी सेंधमारी के गौमाताओं के मुंह तक पहुंच पाता हो। हां, गौमाताओं के सिर पर सवार होकर किसी न किसी संघी को गौ-आयोग के चेयरमैन बन कर अपनी राजनीतिक दुकानदारी चलाने का सुवअसर जरूर मिलता रहता है।

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Mazdoor Morcha
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