मज़दूर मोर्चा ब्यूरो देश के नागरिकों को निशुल्क अथवा सस्ती चिकित्सा सेवा प्रदान करना टैक्स वसूलने वाली सरकार का दायित्व है। इसके बावजूद औद्योगिक मज़दूरों को विशेष चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के नाम पर देश की संसद ने 1952 में ईएसआई कॉर्पोरेशन एक्ट बनाया था। इसके द्वारा मज़दूरों के वेतन से वसूली तो कॉर्पोरेशन करता है तथा चिकित्सा सेवा देने का काम राज्य सरकारों को सौंप दिया गया जिसके लिये कुल खर्च का आठवां भाग राज्य सरकार तथा शेष सात भाग कॉर्पोरेशन द्वारा खर्चने का नियम बनाया गया था लेकिन अधिकतर राज्य सरकारों ने न तो इस योजना के तहत सेवाएं दी और न ही कॉर्पोरेशन से वसूली की।
ईएसआईसी द्वारा मज़दूरों से वसूली के बावजूद जब उन्हें संतोषजनक सेवाएं नहीं मिल पाई तो हल्ला-गुल्ला होने पर कॉर्पोरेशन को स्वयं अपने अस्पताल भी खोलने पड़े। आज देश भर में ईएसआई के कुल 154 अस्पताल हैं। इनमें से 51 अस्पतालों को खुद कार्पोरेशन तथा शेष 103 को राज्य सरकारें चलाती हैं। 23-29 अप्रैल के अंक में कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित अस्पतालों का ब्यौरा दिया गया था। इस बार राज्यों द्वारा चलाये जा रहे अस्पतालों का ब्यौरा दिया जा रहा है।
इन 103 अस्पतालों में कुल 13,510 बेड हैं जिनमें से केवल 10,533 बेड चालू हैं यानी कि मरीजों द्वारा इस्तेमाल में लाये जा सकते हैं; परन्तु इनमें से केवल 35 प्रतिशत ही इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं। यानी कि 65 प्रतिशत बेड उपलब्ध होने के बावजूद भी किसी काम नहीं आ रहे। इसका यह मतलब कदापि नहीं निकाला जा सकता कि मज़दूर बीमार नहीं होते अथवा उन्हें इन बेड की कोई जरूरत ही नहीं है। वास्तव में जरूरत तो इससे भी कहीं अधिक है परंतु घटिया सेवाओं के चलते अधिकतर मज़दूर इन अस्पतालों में भर्ती होने का जोखिम नहीं उठाना चाहते और बाहर से ही अपना इलाज कराना बेहतर समझते हैं।
राज्य सरकारों द्वारा इन अस्पतालों में दी जाने वाली सेवाओं का स्तर इसी बात से आंका जा सकता है कि औसतन प्रति बेड 5000 रुपये प्रतिदिन का खर्च आ रहा र्है जबकि कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित अस्पतालों में प्रति बेड प्रति दिन 15,000 रुपये का खर्चा आ रहा है।
राज्य सरकार संचालित ईएसआईसी अस्पतालों में कुल 2957 डॉक्टरों के स्वीकृत पद हैं जो कुल जरूरत का चौथाई भी नहीं है। इस पर भी स्वीकृत पदों में से 800 खाली पड़े हैं। पैरामेडिकल तथा नर्सिंग स्टा$फ के पद कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित अस्पतालों के मुकाबले आधे भी नहीं हैं। इतना ही नहीं कॉर्पोरेशन स्वयं भी इन अस्पतालों के रख-रखाव का दायित्व भी नहीं निभा रहा है।
नियमों के अनुसार इन अस्पतालों के भवन निर्माण से लेकर उनके रख-रखाव का पूरा दायित्व कॉर्पोरेशन का है। अपना यह दायित्व कॉर्पोरेशन कैसे निभाता है उसका बेहतरीन नमूना सेक्टर आठ फरीदाबाद का अस्पताल व सेक्टर सात की डिस्पेंसरी हैं। रख-रखाव के अभाव में दोनों बिल्डिंगें खंडहर हो चुकी हैं। सेक्टर आठ केअस्पताल में बिजली केदो ट्रांसफार्मर शुरू में लगाये गये थे। जो दोनों नाकारा हो गये। अब केवल एक ट्रांसफार्मर काम कर रहा है। जिसका किराया 12 लाख भरा जा चुका है जबकि उसकी कुल कीमत तीन लाख है।