बेगुनाहों का मोरबी हत्याकांड

बेगुनाहों का मोरबी हत्याकांड
November 07 15:51 2022

स्वास्थ्य मंत्री जन्मदिन पार्टी में तथा मोदी चुनाव रैलियों में व्यस्त रहे

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
फरवरी सन् 1879 में बनकर तैयार हुआ 220 मीटर लम्बा व सवा मीटर चौड़ा पुल 30 अक्टूबर को टूट गया। उस दिन सूर्यास्त के समय, लोहे की रस्सियों द्वारा थामे गये इस झुलते पुल पर 500 से अधिक लोग सूर्यास्त दृष्य का नजारा ले रहे थे कि पुल टूट गया। 400 से अधिक लोग नीचे बह रही मच्छू नदी में जा गिरे। इनमें अधिकांश महिलायें व बच्चे थे। कुछ समर्थ लोग टूटी एवं लटकती लोहे की रस्सियों व पुल की जाली को पकड़ कर तब तक लटके रहे जब तक बचाव दल न आये।

पानी की गहराई अपेक्षाकृत कम होने के चलते पुल से गिरने वाले लोग नदी के तल में बनी नुकीली चट्टानों से टकरा कर मारे गये या इतने जख्मी हो गये की तैर भी न पाये।

परिणामस्वरूप 150 से अधिक शव निकाले जा चुके हैं, लगभग इतने ही लोग घायल अवस्था में हैं। बचाव दलों को मौके पर पहुंचने में करीब तीन घंटे लग गये। इस दौरान कुछ स्थानीय लोगों ने अपनी जान पर खेल कर कई लोगों की जान बचाई। इनमें वे दो मुस्लिम भाइयों ने अग्रणी भूमिका निभाते हुए सबसे अधिक लोगों को नदी से जिंदा बाहर निकाला, जिन्होंने डूबते लोगों से उनका धर्म तक नहीं पूछा। विदित है कि भाजपा ने पूरे गुजरात में साम्प्रदायिकता का जबरदस्त जहर घोल रखा है। हिन्दूओं के दिमाग में जबरदस्त मुस्लिम विरोध भर रखा है। इसके बावजूद इन दोनों भाईयों ने डूबते हुए लोगों को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

इस बर्बर नरसंहार के लिये नरेन्द्र मोदी पूरी तरह से जिम्मेवार हैं। इन्होंने ही 2004 में बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री, जयसुख भाई पटेल को यह झूलता पुल लूट कमाई करने के लिये 15 साल के लिये सौंपा था। 2018 में अवधि समाप्त होने के बाद इन्हें फिर से नया ठेका दे दिया गया। इतना ही नहीं पुल की मुरम्मत व रख-रखाव के लिये दो करोड़ रुपये भी दिये। एक साधारण घड़ी साज की समझ रखने वाले इस पटेल को पुल की मुरम्मत की तो कोई समझ थी ही नहीं। लिहाजा पुल के रंग-रोगन के साथ-साथ पुल के फर्स पर भी मोटे एलूमिनियम की चादर बिछा दी गई जिससे पुल का भार बढ़ गया। लोहे की जिन रस्सियों पर पुल का वजन था उनमे लगे जंग व घिसाई की ओर ध्यान देने की बजाय पटेल ने मुरम्मत के नाम पर मिली रकम को डकार लिया।

पुल की क्षमता के अनुसार इस पर 100 व्यक्तियों को ही जाने का नियम था। इस पर जाने के लिये प्रति व्यक्ति 15 रुपये के टिकट लगती थी। पटेल ने मोटा मुना$फा काटने के चक्कर में 600 लोगों को टिकट दे दिये। मीडिया से मिली खबरों के अनुसार टिकट खिडक़ी से 15 रुपये की टिकट 19 रुपये में बिक रही थी जो ब्लैक में 50 रुपये तक भी बिकी। मुनाफे की यही हवस इस हत्याकांड का कारण बना। इसके लिये दोषीगण बिल्कुल सा$फ नजर आ रहे हैं, लेकिन पुलिस ने गिरफ्तार किया मात्र तीन गार्डों, दो टिकट क्लर्कों तथा इनके एक मैनेजर को।

नरेन्द्र मोदी ने अपना गुनाह तो क्या स्वीकार करना था पटेल को भी गिरफ्तार नहीं हाने दिया। लिपा-पोती करने के लिये जांच कमेटी बना दी गई है। प्रयास यह किये जाने की सम्भावना है कि पुल टूटने का कारण किसी आतंकवादी के मत्थे मढ़ा जाये। झूठ बोलने व झूूठी कहानियां रचने में माहिर ये लोग कुछ भी कहानी रच कर आम जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास कर सकते हैं। इन संघियों की संवेदन हीनता का एक नमूना तो वहां का स्वास्थय मंत्री ऋषिकेश पटेल स्वयं हैं। उक्त कांड की सूचना जब उन्हें दी गई तो वे अपने घर पर सारे परिवार व मित्रगणों के साथ अपने जन्मदिन का केक काट रहे थे। पूरे घर में जश्न का माहौल था। आतिशबाजी चल रही थी, रंग रेलियां मन रही थी। सूचना मिलने के बावजूद मंत्री ने जश्न छोडक़र मौका वारदात पर जाने की जरूरत नहीं समझी।

दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी को जब यह सूचना दी गई तो वे एक चुनाव रैली को संबोधित करके सौगातें बांटने की तैयारी कर रहे थे। सूचना मिलने के बाबजूद कार्यक्रम को स्थगित नहीं किया गया। इतना ही नहीं अगले दिन प्रात: 10 बजे, सरदार बल्लब भाई पटेल के जन्मदिन पर एकता दिवस परेड की सलामी लेने पहुंच गये।

सलामी के बाद रंगा-रंग सांस्कृतिक प्रोग्राम भी यथावत चलता रहा। हां, मोदी ने अगले दिन मौका व वारदात पर जाने का फैसला किया तो मोरबी के गले-सड़े अस्पताल में, जहां उस वक्त 136 शव तथा इससे कहीं अधिक घायल परे थे, रंगाई-पुताई व मुरम्मत आदि का काम शुरू हो गया। रातों-रात अस्पताल को चकाचक कर दिया गया। फटे-पुराने बिस्तरों की जगह नये बिस्तर लगा दिये गये।

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