हर शिकायत के बाद होता है जांच का नाटक, कार्रवाई निल बटा सन्नाटा फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) जिला अस्पताल में बैठा 108 एंबुलेंस ऑपरेटर खुलेआम तीमारदार पर उसके मरीज को निजी अस्पताल ले जाने का दबाव डाल रहा है। यही नहीं वह बीके के सरकारी डॉक्टरों की कार्यशैली पर भी उंगली उठाता है। तीमारदार को बताता है कि यहां के डॉक्टर बस यूं ही इंजेक्शन लगा देते हैं इससे मरीज को कोई फायदा नहीं होगा। इस दौरान 108 एंबुलेंस रूम में बैठा केदार अस्पताल का दलाल भी तीमारदार को सस्ते में अच्छा इलाज दिलाने के लिए प्राइवेट अस्पताल ले जाने का दबाव बनाता है। इसका वीडियो वायरल होने और घटना के सभी तथ्य सामने आने के बावजूद सीएमओ ने कोई कार्रवाई करने के बजाय जांच का दिखावटी आदेश दिया है।
जो सीएमओ अदना से ऑपरेटर को जांच तक निलंबित करने की नीयत नहीं रखता उसके द्वारा जांच भी कैसी कराई जाएगी समझा जा सकता है। यदि गंभीरता से जांच हुई तो रेफरल मरीजों को निजी अस्पताल पहुंचाने में कमीशन की मोटी कमाई और उसकी हिस्सापत्ती का भी खुलासा होगा, ऐसे में आला अधिकारी खुद को बचाने के लिए जांच का नाटक ही करेंगे। सुधी पाठक अभी मोनू की गर्भवती पत्नी खुशबू को 108 एंबुलेंस चालक और ईएमटी द्वारा सफदरजंग अस्पताल की जगह प्रयागराज नर्सिंग होम में जबरन भरती कराने की घटना भूले नहीं होंगे। मोनू ने इस मामले की शिकायत की तो सीएमओ ने 108 एंबुलेंस के नोडल अधिकारी डॉ. एमपी सिंह से ही इसकी जांच करा दी थी। रेफरल के धंधे में जो अधिकारी हिस्सा पत्ती पाता हो वो कैसी जांच करेगा समझा जा सकता है। हुआ वही डॉ. एमपी सिंह ने मोनू को झूठा साबित करते हुए उसकी शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि पीडि़त ने खुद ही नर्सिंग होम पहुंचाने की मांग की थी और दो किलोमीटर जाने के 14 रुपये भी जमा करवाए थे। मोनू ने विरोध किया तो एक बार फिर जांच का नाटक किया जा रहा है लेकिन कोई न कोई बहाना बना कर जांच टाली जा रही है।
कमीशनखोरी का एक भाग ईमानदारी से ऊपर तक पहुंचाने वाले बीके के 108 एंबुलेंस कंट्रोल रूम का स्टाफ और एंबुलेंस चालक भी अच्छी तरह जानते हैं कि कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता, इसलिए बेखौफ होकर मरीजों को निजी अस्पताल पहुंचाने का धंधा जारी रखे हुए हैं। 16 मार्च की रात पेट दर्द की शिकायत से जूझ रहे रॉकी नामक युवक को उसका भाई टिंकू बीके अस्पताल लेकर पहुंचा था। ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने इलाज करने के बजाय कोई इंजेक्शन लगाकर सफदरजंग दिल्ली रेफर कर दिया। माना जा सकता है कि बिना काम किए निजी अस्पताल के कमीशन में से मोटा हिस्सा मिलने की लालच में ही डॉक्टर ने ऐसा किया होगा, क्योंकि सफदरजंग अस्पताल में भी अधिकतर उसके जैसे एमबीबीएस या जूनियर रेजिंडेंट यानी छात्र ही इलाज करते हैं, तो वो क्यों नहीं कर सकता।
टिंकू एंबुलेंस लेने 108 एंबुलेंस कंट्रोल पहुंचा। यहां बैठे ऑपरेटर और एक अन्य व्यक्ति जिसे केदार अस्पताल का कर्मचारी व दलाल बताया जा रहा है, मौजूद थे। ऑपरेटर ने रेफरल पर्ची देखते ही टिंकू से कहा कि एंबुलेंस मिलने में कम से कम 45 मिनट से एक घंटा लगा सकता है, जबकि दो एंबुलेंस बीके अस्पताल में खड़ी थीं। इसके बाद ऑपरेटर ने समय न बर्बाद करते हुए पास ही निजी अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दे डाली। मरीज की स्थिति गंभीर दर्शाने के लिए ऑपरेटर ने बीके की पर्ची ली और दबाव बनाया कि डॉक्टर ने तो बेकार सा इंजेक्शन लगाया है, इससे तो मरीज को कोई फायदा नहीं होने वाला, समय न गंवाते हुए मरीज को निजी एंबुलेंस से निजी अस्पताल पहुंचाओ, निजी एंबुलेंस चालक 1500 रुपये में पहुंचा देगा। टिंकू ने इलाज महंगा होने की मजबूरी जताई तो वहां मौजूद दलाल ने निजी अस्पताल में डॉक्टरों से कह कर पैसा कम कराने का जाल फेक कर फंसाना चाहा, टिंकू ने मना किया तो एक घंटा इंतजार करने को कहा गया। मोनू प्रकरण वायरल होने से सचेत टिंकू ने इस सबकी वीडियो बनानी शुरू कर दी थी।
ऑपरेटर की चाल समझते हुए टिंकू ने 108 नंबर पर कॉल कर मदद मांगी। डिटेल नोट करने के बाद पंचकूला कंट्रोल रूम ने पांच मिनट में सेवा पहुंचने की बात कही। थोड़ी देर में टिंकू के पास 108 एंबुलेंस चालक का फोन आया, बीके लोकेशन बताते ही एंबुलेंस भी आ गई। इधर एक घंटे का राग अलाप रहे ऑपरेटर को जब टिंकू ने कॉल सेंटर से बात होने और एंबुलेंस आने की जानकारी दी तो उसने चालक को कुछ समझाया और मरीज को पहुंचाने की हिदायत दी। बीके से बाहर निकलते ही चालक ने नाटक शुरू कर दिया, पहले एक नर्सिंग होम के सामने जाकर खड़ा हो गया, तो टिंकू ने सफदरजंग ही जाने की जिद की। लेकिन वहां न जाकर चालक एंबुलेंस ने एनआईटी तीन स्थित संतोष हॉस्पिटल की इमरजेंसी के गेट पर जाकर लगा दी। खुद ही स्ट्रेचर आदि लाए और मना करने के बाद बीमार रॉकी को लादकर इमजरजेंसी में पहुंचा दिया।
यहां परिजनों ने बवाल किया तो संतोष हॉस्पिटल वालों ने पुलिस बुला ली। एनआईटी तीन से पहुंचे पुलिसकर्मी भी एंबुलेंस चालक और संतोष हॉस्पिटल का पक्ष लेकर टिंकू पर दबाव बनाने लगे लेकिन जब उन्हें पता चला कि वीडियो बनाई जा रही है तो पलटी मारते हुए किनारा कर लिया। उन्होंने चालक से यह पूछने की भी जहमत नहीं की कि सरकारी एंबुलेंस निजी अस्पताल में मरीज क्यों लेकर आई? मोनू और टिंकू की ही तरह बीके अस्पताल आने वाले अनेक मरीजों को रोजाना निजी अस्पतालों में पहुंचाने का खेल अर्से से चल रहा है, शिकायत के बावजूद पुलिस का जांच या कार्रवाई न करना इशारा करता है कि उसे भी निजी अस्पताल वालों ने खिला पिला कर अपने पक्ष में कर लिया है। कम से कम टिंकू के केस में तो ऐसा ही नजर आ रहा है अन्यथा पुलिस वाले एंबुलेंस चालक के खिलाफ कार्रवाई करते लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
टिंकू ने सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल कर दी, इसमें घटना का दिन, तारीख, समय आदि सब कुछ स्पष्ट हैं। बीके अस्पताल और 108 एंबुलेंस का रिकॉर्ड भी साफ है, बावजूद इसके सीएमओ डॉ. विमल गुप्ता ने न तो नोडल अधिकारी डॉ. एमपी सिंह से कोई सवाल किया और न ही ऑपरेटर के खिलाफ कार्रवाई की। जांच बैठाने की ऑपचारिकता कर पल्ला झाड़ लिया। मरीजों को निजी अस्पताल पहुंचाने के खेल में यदि सीएमओ की हिस्सा पत्ती नहीं है तो उन्हें सबसे पहले ऑपरेटर और चालक को निलंबित करना चाहिए, वायरल वीडियो में एंबुलेंस ऑफिस में बैठे दलाल के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज करा उसकी गिरफ्तार कराना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
दस साल में प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को कबाड़ा बनाने वाले खट्टर-मोदी की डबल इंजन सरकार की मंशा आम आदमी के लिए सस्ता और अच्छा इलाज दिलाने की कभी नही रही, वो तो अम्मा के निजी फाइव स्टार अस्पतालों को बढावा दे रहे हैं ताकि धर्म का चोला ओढ़े ये पूंजीपति गरीबों को लूट कर खज़ाना भरते रहें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उनकी सरकार के अधिकारी और छोटे कर्मचारी भी गरीब जनता को निजी अस्पतालों के जाल में फंसा कर लूट कमाई कर रहे हैं।