बीके अस्पताल का एचडीयू ढाई साल में चालू नहीं कर सकी सरकार

बीके अस्पताल का एचडीयू ढाई साल में चालू नहीं कर सकी सरकार
April 28 13:25 2024

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सुविधा नहीं सुविधा का ढोल बजा कर जनता को गुमराह करने वाली भाजपा की केंद्र व राज्य की डबल इंजन सरकारें बीके अस्पताल में ढाई वर्ष से बने पड़े हाई रिस्क डिपेंडेंसी यूनिट (एचडीयू) के लिए जरूरी स्टाफ मुहैया नहीं करा रही हैं। यह तब है जब शहर से एक केंद्रीय और राज्य के दो मंत्री हैं। खुद को महिलाओं का हिमायती बताने वाली मंत्री सीमा त्रिखा तो हर महीने बीके अस्पताल का दौरा करने का पाखंड करती हैं, स्टाफ न होने के कारण एचडीयू का संचालन नहीं हो पा रहा इसकी जानकारी उन्हें बाखूबी होगी, लेकिन उन्होंने भी आज तक कुछ नहीं किया।

प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर कम करने के प्रयास का दिखावा करते हुए विधायक सीमा त्रिखा ने वर्ष 2020 में बीके अस्पताल में हाई रिस्क डिपेंडेंसी यूनिट की स्थापना की घोषणा की थी। तब इस यूनिट को दो महीने में तैयार करने का दावा किया गया था लेकिन लग गए करीब डेढ़ साल फिर भी आज तक चालू नहीं किया जा सका। यूनिट में आठ बेड का आईसीयू, वेंटिलेटर, रक्तचाप, हृदय गति, ईसीजी, ब्लड ऑक्सीजन लेवल, आदि जांचने के आधुनिक मॉनिटर आदि लगाए गए। गर्भस्थ शिशु की मॉनिटरिंग के लिए करीब 55 लाख रुपये कीमत की अल्ट्रासाउंड मशीन भी लगा दी गई। ये सब तो किया गया लेकिन इस यूनिट को चौबीस घंटे चलाने के लिए चार विशेषज्ञ चिकित्सक और 16 विशेष ट्रेंड नर्सिंग स्टाफ की तैनाती आज तक नहीं की गई। नतीजा ये हुआ कि पूरा यूनिट ठप पड़ा है।

जिले के अन्य सीएचसी-पीएचसी में सामान्य प्रसव तक की पूरी सुविधाएं नहीं हैं ऐसे में प्रसव के लिए गर्भवतियों को बीके अस्पताल रेफर किया जाता है। बीके अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार प्रतिदिन औसतन सात से आठ हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाली महिलाएं आती हैं। हाई रिस्क गर्भवती वो होती हैं जिनके शरीर में खून की मात्रा बहुत कम हो, बच्चा उल्टा या आड़ा हो, महिला हृदय, रक्तचाप, मधुमेह या सांस की रोगी हो, पहला बच्चा सीजेरियन से हुआ हो या अन्य समस्याओं से ग्रस्त। ऐसी महिलाओं को प्रसव के दौरान वेंटिलेटर, ब्लड इन्फ्यूजन, हृदय रोग विशेषज्ञ की देखरेख आदि की जरूरत होती है। बीके अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक तो छोडि़ए सामान्य डॉक्टरों की कमी है, 104 नर्सिंग स्टाफ की जगह केवल 48 उपलब्ध हैं, यानी ये सामान्य ओपीडी और आईपीडी के लिए पर्याप्त नहीं हैं ऐसे में हाई रिस्क डिपेंडेंसी यूनिट (एचडीयू) क्या चलाएंगे।

भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार बीके अस्पताल में प्रतिदिन औसतन सात से आठ हाई रिस्क प्रेगनेंसी के केस आते हैं, यानी प्रति माह करीब सवा दो सौ। स्टाफ नहीं होने के कारण इन सब को सफदरजंग रेफर कर दिया जाता है जिसमें बीके के डॉक्टर विशेष महारत रखते हैं। ये मरीज सफदरजंग तो क्या पहुंचती हैं अस्पताल के दल्ले और 108 एंबुलेंस का स्टाफ इन्हें कमिर्शयल नर्सिंग होम पहुंचा कर मोटा कमीशन बनाते हैं।

एचडीयू बने ढाई साल बीत गए, पूरे यूनिट और इसमें उपकरण आदि लगाने में एक करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिया गया। जहां कहीं उपलब्धियां गिनानीं हों तो मंत्री से लेकर सीएमओ तक सब बीके में एचडीयू होने का ढिंढोरा पीट देंगे। एचडीयू सफेद हाथी बना खड़ा है ये कोई नहीं बताएगा। पूर्व सीएम खट्टर हों या सीएम का पद संभालने वाले नए ताजे नायब सिंह सैनी, जब देखो तब फरीदाबाद के दौरे पर रहे लेकिन ढाई साल में एचडीयू नहीं चला सके। पीएमओ डॉ. सविता यादव के मुताबिक एचडीयू के लिए चार विशेषज्ञ चिकित्सक और 16 स्टाफ नर्स की मांग 2022 में इसकी स्थापना होने के बाद से ही की जा रही है, हाल ही में एक बार फिर सरकार और स्वास्थ्य निदेशालय को पत्र लिख कर स्टाफ की मांग की गई है ताकि एचडीयू को चलाया जा सके।

दरअसल, काम नहीं काम का ढिंढोरा पीटने में विश्वास करने वाली मोदी-खट्टर-सैनी की डबल इंजन सरकारों की नीयत कभी भी नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं दिलाने की नहीं रही। बीके में एचडीयू हो या फिर जोर शोर से प्रचार प्रसार किए गए अर्बन हेल्थ सेंटर, सीएचसी, नेताओं का काम इनका फीता काट वाहवाही लूट कर भूल जाना है न कि इनके जरिए जनता को स्वास्थ्य सेवाएं दिलाना। केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर को मेवला महाराजपुर में तीन मंजिला स्वास्थ्य केंद्र का उद्घाटन किए लगभग एक साल हो गए लेकिन स्टाफ न होने के कारण आज तक इसमें इलाज की सुविधाएं शुरू नहीं हो पाई हैं। शहर के अन्य पीएचसी-सीएचसी और यूएचसी की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है, पर्याप्त स्टाफ न होने के कारण, आम जनता को बीके ही आना पड़ता है। बीके भी भ्रष्ट स्टाफ और निजी अस्पतालों के दलालों के कारण रेफरल सेंटर से अधिक कुछ रह नहीं गया है।

पूंजीपतियों के हाथों में खेल रही मोदी-सैनी की इवेंटजीवी सरकारों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के बजट में हर साल कटौती करना बताता है कि वो नागरिकों की इस आधारभूत सेवा का भी निजीकरण करने पर उतारू हैं। यदि सरकारी अस्पताल में ही सब इलाज मिलने लगेगा तो फिर करोड़ों रुपये दान देने वाली अम्मा और उसके जैसे अन्य फाइव स्टार अस्पतालों में मरीज कैसे पहुंचेंगे। वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश चंद गोयल कहते हैं कि मोदी द्वारा आयुष्मान भारत योजना ही पूंजीपति स्वास्थ्य माफिया को फायदा पहुंचाने केे लिए शुरू की गई थी। इलाज के लिए एक परिवार पर पांच लाख रुपये खर्च करने के बजाय यदि मोदी सरकार ये धन सरकारी अस्पतालों में आधारभूत ढांचा, आवश्यक स्टाफ, दवाएं, उपकरण आदि पर खर्च करती तो गरीबों ही नहीं सब को मुफ्त इलाज मिल सकता था, लेकिन ऐसा करने से इलेक्टोरल बांड के जरिए मोटा चंदा देने वाले व्यापारी अस्पतालों की दुकान बंद हो जातीं। सरकार ने बाकायदा आयुष्मान योजना बना कर इन स्वास्थ्य माफिया को पांच लाख रुपये लूटने की छूट दी है।

आयुष्मान योजना में सीएजी ने बड़ा घोटाला निकाला है, अनेक केस सामने आए जिनमें कागजों पर ही इलाज दिखा कर धन की बंदरबांट की गई। फर्जी फोन नंबरों पर हजारों गोल्डन कार्ड बनाए गए और उनका धन हड़पा गया लेकिन सरकार ने न तो जांच कराई और न ही योजना बंद की। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो सरकार ढाई साल बाद भी एचडीयू को चालू नहीं कर रही है वो नाजुक हालत वाली गर्भवतियों को बचाने के लिए कितनी गंभीर है, और इसका लाभ अस्पताल का कमीशनखोर स्टाफ रेफर का खेल कर खूब हासिल कर रहा है।

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Mazdoor Morcha
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