मजदूर मोर्चा ब्यूरो दिसंबर 2023 के राज्य विधानसभा नतीजों का राजनीतिक संदेश यही है। पार्टी की दक्षिण में तेलंगाना की जीत में ही नहीं, उत्तर में तीन राज्यों की हार में भी। कांग्रेस मुक्त भारत कदापि संभव नहीं।
कांग्रेस पार्टी जिस अखिल भारतीय अपील वाली राजनीति के प्रतिनिधित्व का दावा कर सकती है उसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए भाजपा को गांधी, अंबेडकर, भगत सिंह की विरासत को मटियामेट करना होगा जो फिलहाल संभव नहीं। न ही स्वतंत्र भारत में नेहरू, इंदिरा के ऐतिहासिक योगदान को एकाएक नकार पाना।
हां, ठीक है, इस बार राजस्थान और छत्तीसगढ़ में करीबी मुकाबला करते हुए भी वे एंटी इनकंबेंसी और आंतरिक कलह का शिकार हुए, लेकिन, मानना होगा कि यह कांग्रेस शासन का चरित्र चला आ रहा है। इसमें नया कुछ नहीं, वही वोटर इस पार्टी को सत्ता में फिर वापस लायेगा।
मध्य प्रदेश में जीत के लिए कमलनाथ मुक्त कांग्रेस होनी चाहिए थी। भारत जोड़ो यात्रा के मूल्यों और ऊर्जा को आगे ले जाती युवा नेतृत्व वाली कांग्रेस, जैसे कि तेलंगाना में दिखा। जबकि कमलनाथ के प्रचार अभियान का स्वरूप भाजपा की बी टीम की राह पर ही छद्म सांप्रदायिक था, और उनकी 2018/19 की महीनों चली भ्रष्ट और दिशाहीन सरकार का ट्रेलर शिवराज चौहान की 18 वर्षों की एंटी इनकंबेंसी पिक्चर के समक्ष भी बेहद फीका सिद्ध हुआ।
2024 में कांग्रेस जरूरी नहीं कि उत्तरी राज्यों में भाजपा से ऐसे ही पिटे, बेशक वे संगठन के मामले में भाजपा से मीलों पीछे हैं और रहेंगे। लेकिन आज भी उनके पास तीन राज्यों में अपनी सरकारें हैं। जैसा केजरीवाल ने दिल्ली में दिखाया है कि वोटर एक अपेक्षाकृत बेहतर प्रशासन से मिलने वाले फलों के लिए भी उत्सुक रहता है। भाजपा की तमाम सरकारें, प्रशासनिक रूप से लगातार फिसड्डी साबित होती आ रही हैं। केंद्र में स्वयं पीएम मोदी की प्रशासनिक अक्षमताएं, व्यापक प्रचार तंत्र के बावजूद, छिपाए नहीं छिपती।
क्या कांग्रेस के कर्ता धर्ता, हिमाचल, कर्नाटका, तेलंगाना में अपनी घोषणाओं के अनुरूप फल दे सकने में सक्षम एक जनवादी प्रशासनिक मॉडल साकार करने की सोच सकते हैं? 2024 चुनाव ज्यादा दूर नहीं।