गुडग़ांव (म.मो.) भाजपा की कृपा से बने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला अपनी ‘जेजेपी’ का जनाधार बढाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसी प्रयास में वे 30 नवम्बर को, शहर से सटे गांव बसई पहुंचे थे। इस गांव में वे अपनी पार्टी का कार्यालय स्थापित करने आये थे। जिनके भरोसे पर वे इस गांव में अपना आधार बनाना चाहते थे, वे पूरी तरह से नंगड़ थे। यूं भी चौटालों के पास कोई ढंग के आदमी तो कम ही जाया करते हैं, अधिकांश नंगड़ एवं सत्ता की दलाली करने वाले ही जुटते हैं। ऐसे ही लोगों के भरोसे दुष्यंत बसई गांव जा पहुंचे।
गांव के नंगड़ों ने चौटाला को आमंत्रित तो कर लिया लेकिन ग्रामीणों की भीड़ जुटाने के लिये उनके पल्ले धांस भी न थी। ऐसे में इन नंगड़ों ने गांव की बेटी सिमरन कटारिया जो कि जुडो में एशियन व ओलम्पिक मेडलिस्ट है, को चौटाला द्वारा सम्मानित करने के नाम पर भोपाल से बुलवा लिया। पल्ले से 13 हजार रुपये खर्च करके तथा काम छोडक़र सिमरन गांव में आ तो गई, परन्तु सम्मानित करना तो दुर चौटाला ने बिटिया को स्टेज पर भी नहीं आने दिया। इस बावत नंगड़ों द्वारा बार-बार अनुरोध किये जाने के बावजूद चौटाला स्टेज से उतर कर अपने तथाकथित नवनिर्मित कार्यालय में जा बैठे और चाय पीने लग गये। ज्यादा अनुरोध किये जाने पर चौटाला ने कहा कि उसे दफ्तर के अंदर ही ले आओ, यहीं सम्मानित कर देंगे। यह सुनकर सारा गांव आग बगुला हो गया। सिमरन कटारिया ने भी चौटाला को खुब खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि वह तो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहले से ही का$फी सम्मानित हो चुकी है, उसे चौटालों जैसों से सम्मानित होने की कतई कोई जरूरत नहीं है। दरअसल गांव की आबादी का 60 प्रतिशत में तो सिमरन का ही परिवार बसा है। सिमरन को सम्मानित करने का तो बहाना मात्र ही था, इस बहाने सारा गांव चौटाला की जनसभा में जोड़ कर नंगड़ अपनी पीठ थपथपाना चाहते थे। अंत में इस धोखाधड़ी का परिणाम यह निकला कि सारे गांव ने चौटाला के विरुद्ध जमकर नारेबाजी की, काले झंडे दिखाये और गांव से भागने को मजबूर कर दिया। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि एक कमरे में चौटाला का दफ्तर खोल कर पूरी अवैध निर्मित बिल्डिंग को बचाने का उद्देश्य था।
दुष्यंत के दादा एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला भी इन्हीं ग्रामीणों से उस वक्त उखड़ गये थे जब ग्रामीणों की ओर से उन्हें माला पहनाने के लिये एक विकलांग को स्टेज पर चढ़ा दिया गया था।