बजरंगियों ने लूटा जमात अली का पशुधन

बजरंगियों ने लूटा जमात अली का पशुधन
July 08 14:40 2023

खोरी जमालपुर के पशु पालक को इंसाफ दिलाने के लिए ‘जय श्री राम’ नारे के पीछे छुपे गुंडों, लुटेरों, शैतानों को नंगा करना जरूरी

सत्यवीर सिंह
फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) तलवारों, लाठियों व कट्टों से लैस बिट्टू बजरंगी के गुंडा गिरोह के दर्जनों सदस्यों ने जिस जमात अली व उनके बेटों पर गोकशी के आरोप लगाकर लाखों रुपये के पशु लूट लिए उस घटना स्थल एवं लुटे पिटे परिवार से मिलने के लिए क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा की एक महिला सहित चार सदस्यीय टीम दिनांक 4 जुलाई को जमालपुर खोरी गांव पहुंची। फऱीदाबाद-गुडग़ांव सीमा पर बसा, यह खोरी ज़मालापुर गांव, फऱीदाबाद-सोहना हाई वे से महज 100 मीटर दूर है, लेकिन कीकर के घने, हरे पेड़ों से इस क़दर ढका हुआ है कि सडक़ से बिलकुल नजऱ नहीं आता। खोरी जमालपुर में 30 जून को हुई भयानक गुंडई, लूट और समाज को मज़हब के नाम पर टुकड़े-टुकड़े करने की वारदात की असलियत जानने के लिए पहुुंची टीम ने ढाबे पर रुककर, जैसे ही मोहम्मद जमात अली के घर का रास्ता पूछा, तुरंत वहां मौजूद लोग हरकत में आ गए और हमारे पूछने का मक़सद समझ गए। एक बुजुर्ग रास्ता समझा ही रहे थे कि ज़ाहिद उठे और बोले, चलो मैं आपको उनके घर छोडक़र आऊंगा।
जमात अली, कई मायूस लोगों और सुबकती महिलाओं के बीच, गुम-सुम, अपने चेहरे को दोनों हथेलियों पर रखे, खाट पर बैठे थे। दुआ-सलाम के लिए जैसे ही मुंह ऊपर किया, तब समझ आया, उनकी ऑंखें बहुत देर से नम थीं। दो-मिनट तक उन लोगों ने हमें परखा, हम कौन हैं, हमारे आने का मक़सद क्या है? जैसे ही उन्हें समझ आया कि हम उनका दर्द बांटने आए हैं, 72 वर्षीय, दुबले-पतले, जमात अली ने कौली भर ली और सुबकने लगे। ‘मेरी गायें ले गए, मेरा सब कुछ लुट गया। बीसियों गायें तो प्रतिदिन पंद्रह से बीस लीटर दूध देने वाली हैं। किसी की भी कीमत 50,000 से कम की नहीं है। कुछ देसी गायें हैं तो कुछ उम्दा हाइब्रिड नस्ल की। इसी नस्ल की कुछ बछडिय़ां अगले एक दो साल में गाय बनने वाली हैं। लेकिन उससे भी ज्यादा तक़लीफ़ इस बात की है कि ‘‘जिन गायों को मैंने अपने बच्चों की तरह पाला, मुझ पर, उन्हें काटने का इल्ज़ाम लगा’’, उनका पहला वाक्य था। कई दिनों से भावनाओं का बवंडर उनके कलेजे में घुमड़ रहा था। एक बार शुरू हुए तो जमात अली, हमारे सवालों का इंतज़ार किए बगैर, बोलते चले गए। ठेठ मेवाती भाषा में, गहरी सांसों के बीच, मुंह से जो भी निकल रहा था, सीधे उनके दिल की गहराई से आ रहा था। भावनाओं को नियंत्रित रखना, ख़ुद को रोने से रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था।

‘30 जून के दिन, मेरी छोटी बेटी की बारात आनी थी। एक दिन पहले, शादी के लिए बल्लभगढ़ से खऱीदा, 1 लाख से भी ज्यादा का सामान, घर में ऐसे ही रखा है, चलो अंदर, मैं तुम्हें दिखता हूं’, कहकर ज़मात अली फिर सुबकने लगे। ‘हमें क्या पता था, शैतानों की नजऱ मेरे ढोरों पर है और उन्होंने हमारी दुनिया लूटने के लिए, वही दिन चुना है। वे मेरी, 55 गायों, 13 बछड़ों, 17 बकरियों और 4 गधों और उनके 2 बच्चों को, हमारी आंखों के सामने, कट्टे लहराते, लाठियां, तलवारें लहराते, मुसलमानों को गंदी-गंदी गालियां बकते, ये कट्टे तुम मुल्लों को काटने के लिए ही हैं, ज़मीन में जिंदा गाड़ देने की धमकियां देते, हांक कर ले गए।

मैंने अपने बेटों को डांटकर घर में बंद कर दिया और दरवाज़े पर खड़ा अपनी दुनिया लुटते देखता रहा। गायें भी मुझे देखती रहीं, जैसे कुछ कहना चाह रही हों!! उसके बाद क्या बारात आनी थी और शादी का क्या उत्सव होना था। हम अपनी बच्ची को उसकी ससुराल छोड़ आए। सारा सामान ऐसे ही पड़ा है। मेरी बच्ची तो अपनी शादी के दिन को याद कर, हर साल रोएगी।’

‘मेरे पेट में तो बस एक बात की हौल हो रही थी, कहीं ऐसा ना हो जाए कि मेरा कोई बेटा या भतीजा, अपने गुस्से पर काबू ना रख पाए, कहीं मुंह ना खोल दे। बहुत बुरा वक़्त है यह, हमारी जमात के लिए। हर रोज़ हो रही वारदातों से अंदर दहशत होती है, कैसे, ये लोग हमारे बच्चों को जिंदा जला देते हैं। मेरे बच्चों को ऐसा कुछ हो गया तो कैसे जीऊंगा, मुझे ये खौफ खाए जा रहा था। जब मेरी गायें दूर निकल गईं, तो दर्द के साथ राहत भी महसूस हुई, ‘मेरे बच्चे तो बच गए’। वे लोग, मुसलमानों के 5 गावों से, बिलकुल इसी तरह हथियार लहराते हुए, बेहद भडक़ाऊ गालियां देते हुए और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए निकले। हर गांव में बिलकुल वही हुआ जो मैंने किया था। कहीं भी, किसी भी युवक ने अपना मुंह नहीं खोला। जि़ल्लत और गुस्से का ज़हर हम इसी तरह पीते गए।’

डकैती के इस भयानक जघन्य अपराध की एफआईआर, थाना धौज़, जि़ला फऱीदाबाद में, साजिद खान द्वारा दर्ज कराई जा चुकी है। एफआईआर क्र 0189 दिनांक 03.07.2023 (शाम 08.30) की कॉपी हमारे पास है। भारतीय दंड संहिता की संगीन धाराओं 148, 149, 295-ए, 506 एवं 25 में नामदर्ज आरोपी हैं; बिट्टू बजरंगी, गोपाल, पंकज जैन, अनूप, मोनू, सतेन्द्र, मोती खटाना व 50-60 अन्य। बिट्टू बजरंगी, इस गिरोह का सरगना है।

यह वही बिट्टू बजरंगी है, जिसके विरुद्ध, नीलम-बाटा रोड पर स्थित मज़ार पर, हनुमान चालीसा का पाठ रखने के प्रपंच द्वारा, फऱीदाबाद को हिन्दू-मुस्लिम दंगों की आग में झोंकने का मुक़दमा, ‘सामाजिक न्याय एवं अधिकार मंच’ के चेयरमैन, साथी दीनदयाल ने दर्ज कराया था, जिसमें वह ज़मानत पर है। लोगों को अमन-चैन से न रहने देने और सामाजिक सौहार्द बिगाडऩे के इरादे से, मुस्लिम समाज के विरुद्ध हिंसा भडक़ाने की, न जाने कितनी पुलिस शिकायतें, उसके खि़लाफ़ दजऱ् हैं। ‘क़ानून अपना काम करेगा’, बिट्टू बजरंगी जैसे दंगाईयों, उन्मादियों को तैयार करने, पालने-पोसने वाले, जाने कितने ठग टाइप नेता, यह प्रवचन ज़रूर देते हैं। अगर यह बात सच होती, तो बिट्टू बजरंगी अपना पूरा जीवन जेल में काटता। इस क्रूर जुमले का, असलियत में, आज ये मतलब है कि ‘कानून हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता’!!

मुस्लिम समाज में फैली दहशत की तीव्रता का ये आलम है कि, 3 जुलाई को एफआईआर दर्ज होने के बाद भी, 4 तारीख को जब, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ की टीम ने, वस्तुस्थिति जानने के लिए, उस गांव का दौरा किया, और जिससे पूरा पीडि़त बहुत खुश हुआ था, कौली भरकर रोए, कि हम उनका दु:ख बांटने पहुंचे हैं, लेकिन फिर भी बयान कैमरे पर देने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि आज ही डीएसपी सोहना ने, उन्हें अपने दफ़्तर बुलाया है, कहीं हमारे बयान का बहाना बनाकर, हमारे खि़लाफ़ ही मुक़दमा न दर्ज हो जाए!! हमारे समाज के खि़लाफ़, आजकल कुछ भी हो सकता है। पुलिस तफ्तीश का ये हाल है कि अभी तक (5 जुलाई) रात तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है। गिरोह सरगना, बिट्टू बजरंगी, अपने चेलों-चमचों के साथ डीसीपी, एनआईटी, फऱीदाबाद कार्यालय के सामने हुड़दंग कर चुका है, ‘उसे जेहादियों से ख़तरा है इसलिए ज़ेड सुरक्षा मुहैया कराई जाए’!!

गायों के मालिक, जमात अली का गांव, खोरी ज़मालपुर, फऱीदाबाद जिले में आता है, लेकिन गायें जिस जगह से लूटी गईं वह जगह, गांव बाईखेड़ा, जिला गुडगांव है जिसकी पुलिस चौकी निमोठ थाना सोहना पड़ती है। यहां पर बिट्टू बजरंगी गुंडा गिरोह ने जमात अली के विरुद्ध गौकशी की एफआईआर दर्ज कराई है। यही वजह है कि इस मामले की शुरुआती तफ्तीश गुडगांव पुलिस ने की थी। पुलिस, अपनी जांच की अपडेट नहीं दे रही, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की साहसी पत्रकार, ऐश्वर्य राज की शानदार रिपोर्ट, 4 जुलाई को इंडियन एक्सप्रेस में छपी, और उसी से, समूचे देश को ये भयानक डकैती की वारदात मालूम पड़ी, लिखती हैं कि जब जमात अली का परिवार, अन्य 4 लोगों के साथ, गुडग़ांव की पुलिस कमिश्नर, कला रामचंद्रन से मिला, तो उनका कहना था कि मामले को एसीपी सोहना देख रहे हैं, लेकिन ‘जमात अली, गायों के मालिक होने का कोई दस्तावेज़ नहीं दे पाए हैं।’ इस आखिऱी अर्द्ध-वाक्य से ये अंदाज़ लगाना मुश्किल नहीं कि इस मुक़दमे का अंजाम क्या होगा? ‘पीडि़त को ही क़सूरवार बनाओ’, हिन्दू फ़ासिस्टों द्वारा किए जा रहे जघन्य अपराधों में, पुलिस इस मक़सद से काम करती है।

इन पुलिस कमिश्नरों ने, गांव सिफऱ् फिल्मों में ही देखे हैं। इन्हें यह भी मालूम नहीं कि गांव वास्तव में होते कैसे हैं? पीढ़ी दर पीढ़ी गांव में रह रहे लोगों के पास, अपने घरों के मालिकाने के भी, कोई दस्तावेज़ नहीं होते। गायों के बछड़े-बछियाँ बड़े होते रहते हैं, आगे, प्रजनन कर बछड़े-बछियाँ बढ़ाते जाते हैं। इनके, मालिकाने के क्या और कौन से दस्तावेज़ तैयार होंगे? जिस व्यक्ति का सब-कुछ लुट चुका हो, जीवन भर की मेहनत किसी ने छीन ली हो, लुटेरे उनकी आँखों के सामने, कट्टे लहराकर, ‘मुल्लो, ये तुम्हारे लिए ही हैं’ धमकाते हुए, ‘जय श्री राम’ का उद्घोष करते हुए, उनकी रोज़ी-रोटी, 40 लाख रुपये से भी ज्यादा का उनका पशु-धन लूटकर, उन्हीं को ‘गौ माता के हत्यारे’ ठहराते हुए, दिन-दहाड़े ले गए हों, उसे ये बोलना कि गायों के मालिकाने के कागज़ दिखाओ, उनके ताज़े, गहरे ज़ख्मों पर नमक-मिर्च रगडऩा तो है ही, इसका ये भी मतलब है कि ‘दफ़ा हो जाओ’। उसी दिन, 30 जून का, ‘फऱीदाबाद न्यूज़ टुडे’ का एक विडियो वायरल है, जिसे सभी पुलिस अधिकारीयों, गृह मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट को देखना चाहिए। धौज थाने में, बजरंग दल के गुंडे, पीडि़त मुस्लिम परिवार पर टूटे पड़ रहे हैं, गालियां देते हुए, शिकायतकर्ताओं को ही बाहर खदेड़ रहे हैं और पुलिस वाले आराम से देख रहे हैं, तमाशबीन बने हुए हैं। कुटिल मुस्कान के साथ, बीच-बीच में बोल देते हैं, ‘ऐसा ना करो भई’!! पुलिस स्टेशन का ये हाल है तो ये गुंडा-वाहिनी बाहर क्या हाल करेगी? क्या ये सामान्य घटनाएं हैं? क्या ऐसे मंजऱ चुपचाप खड़े होकर देखना, अपराध नहीं है?

सीपी कला रामचंद्रन ने मांगे पशुओं के दस्तावेज़
गुडग़ांवां की पुलिस कमिश्नर एडीजीपी कला रामचंद्रन द्वारा पशुओं के मालिकाना हक के दस्तावेज़ मांगा जाना यह सिद्ध करता है कि वे या तो खुद संघी प्रभाव में डूब चुकी हैं अथवा उन पर भारी राजनीतिक दबाव है। बीते तीसियों साल से हरियाणा काडर में नौकरी कर रहीं यह अधिकारी इतनी नासमझ तो नहीं हो सकती कि उन्हें पता ही न हो कि पशुओं के कोई मालिकाना दस्तावेज़ नहीं होते और तो और गांवों के अंदर पुश्तैनी घरों तक के भी कोई दस्तावेज़ नहीं होते। पशु चोरी होने पर थाने में लिखाई जाने वाली रपट में केवल पशु का हुलिया लिखाया जाता है न कि कोई दस्तावेज़ पेश करना होता है। कला रामचंद्रन एक बहुत ही साफ सुथरी और ईमानदार छवि की अधिकारी मानी जाती रही हैं। राजनीतिक दबाव की भी वे कोई खास परवाह नहीं किया करती थीं। लेकिन इस मामले में उनका रवैया देख कर लगता है कि गुडग़ांवां का रुपहला रंग उन पर भी चढ़ गया है।

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Mazdoor Morcha
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