मासूम बच्चे खुद को पापी, पतित, चरणों की धूल बताते हुए जाने कौन-कौन सी प्रार्थनाएं नहीं गाते रहे स्कूलों में। डॉ. इकबाल की बच्चों के लिए लिखी गई कविता जैसी अद्भुत, सुच्ची सी प्रार्थना शायद ही कोई दूसरी हो। ।। बच्चे की दुआ।। लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी जिंदगी शम्अ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी! दूर दुनिया का मिरे दम से अँधेरा हो जाए! हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए! हो मिरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत जिंदगी हो मिरी परवाने की सूरत या-रब इल्म की शम्अ से हो मुझ को मोहब्बत या-रब हो मिरा काम गऱीबों की हिमायत करना दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को