बाटा चौक के गऱीब अपनी रोज़ी-रोटी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं

बाटा चौक के गऱीब अपनी रोज़ी-रोटी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं
January 22 01:52 2023

सत्यवीर सिंह
फरीदाबाद। बाटा चौक से एनआईटी रेलवे स्टेशन तक पुल के नीचे व दाएं-बाएं बैठे सभी 500 रेहड़ी एवं दुकानदारों ने संगठित होकर, यहां से 10 जनवरी को बाटा चौक से नगर निगम कार्यालय में निगमायुक्त के दफ्तर तक, एक शानदार मोर्चा निकालाँ जिसमें ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फऱीदाबाद की ओर से कामरेड्स नरेश और सत्यवीर सिंह भी शामिल हुए. निगमायुक्त के दफ्तर के ठीक सामने, ज़ोरदार आक्रोषपूर्ण नारों के बीच, एक सभा हुई. बड़ी संख्या में वैकल्पिक मीडिया के अनेक चैनलों जैसे मज़दूर समाचार, मज़दूर मोर्चा आदि ने इसे कवर किया. सभा में दीनदयाल गौतम ने अपने वक्तव्य में ये स्पष्ट किया कि वे सभी सरकारी नियमों का पालन करेंगे. वेंडर ज़ोन बनने के बाद, निर्धारित शुल्क देंगे, साफ़-सफ़ाई रखेंगे, सडक़ पर कोई अवरोध भी नहीं होने देंगे, लेकिन नगर निगम को उनकी रोज़ी-रोटी के साधन, उनकी दुकानों को उजाडऩे नहीं देंगे. तोड़-फोड़ की किसी भी कार्यवाही का विरोध, संगठित होकर, पूरी ताक़त के साथ, बहुत तीखा किया जाएगा. ये उनके जीवन-मरण का सवाल है, इसलिए अगर इस टकरावपूर्ण संघर्ष में कोई जनहानि होती है तो उसकी जि़म्मेदारी फरीदाबाद नगर निगम की होगी. नगर निगम किसी मुगालते में ना रहें, हम पिछले 40 सालों से मेहनत कर अपने बच्चों को किसी तरह पाल रहे हैं, हालाँकि उन्हें शिक्षा देने लायक़ फिर भी नहीं कमा पा रहे. हम वहां से हटने वाले नहीं हैं.

परिस्थिति की नज़ाक़त भांपकर, नगर निगम के रेहड़ी-पटरी विभाग से संबंधित अधिकारी मथुरा प्रसाद ने सभा में उपस्थित होने में कोई देर नहीं की. सभा में, मीडिया के सामने उन्होंने आश्वासन दिया, कि एक-दो दिन में वे स्वयं बाटा चौक का सर्वे करेंगे, जिससे 2014 की वेंडर पॉलिसी के तहत वहां ‘वेंडर ज़ोन’ बनाया जा सके. ‘अब वहां तोड़-फोड़ की कार्यवाही नहीं होगी’, इस आश्वासन के बाद ही सभा संपन्न हुई।

पिछले कुछ सालों में, सत्ता दमन-उत्पीडऩ का औज़ार बन गया है; ‘बुलडोजऱ’. “ये दैत्याकार मशीन, देश भर में, मज़दूरों की झोपडिय़ों और उनकी रोज़ी-रोटी के साधन, उनकी टपरियों, गुमटियों, खोखों, पटरियों को रोंद रही है, मज़दूर लड़ रहे हैं, पुलिस ल_ बरसा रही है, बच्चे बिलख रहे हैं, अपनी किताबें- कॉपियां समेट रहे हैं, या मलबे में ढूंढ रहे हैं”, ये दर्दनाक दृश्य आम हो गए हैं. कोई दिन नहीं जाता, जब ये नज़ारा नजऱ ना पड़े. कैसा भी उत्पादन, मज़दूरों के हाथों के बगैर नहीं होता. इंग्लैण्ड की कंपनी, जेसीबी, फऱीदाबाद में ही है. जिस बुलडोजऱ को आज के मदांध सत्ताधीश, गऱीबों की बस्तियों को उजाडऩे, उनकी रोज़ी-रोटी छीनने, और उससे भी आगे, शोषित- पीडि़त मेहनतकशों के दिल में सत्ता की दहशत क़ायम करने में, हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे बनाने का गौरव भी फऱीदाबाद के मज़दूर हाथों को ही हासिल है.

तोड़-फोड़ के इस ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ की चपेट में अब, बाटा चौक और एनआईटी रेलवे स्टेशन के बीच वाली उस सडक़ के किनारे जहाँ आवागमन नहीं होता, रेहड़ी-पटरी लगाकर बा-मुश्किल अपनी गुजऱ-बसर करने वाले मज़दूर-व्यापारी भी आ गए हैं. ये लगभग 500 सबसे छोटे, अत्यंत निर्धन मज़दूर-दुकानदार, पिछले 40 वर्षों से कपड़े, पुराने जूते, बैग, फल-फ्रूट, चाय-समोसे आदि बेचकर, दिन-भर में 400-500 रु. कमा लेते हैं जिससे इनके घरों में चूल्हा जलता है. निर्धन तो हैं ही, ये मज़दूर-दुकानदार अल्पसंख्यक और दलित-वंचित-उत्पीडि़त समाज से भी हैं.

‘शहरी रेहड़ी-पटरी वालों की राष्ट्रीय नीति 2009’ के अनुसार, “रेहड़ी-पटरी वाले शहरी आबादी का 2 प्रतिशत हैं. ये वे लोग हैं जिन्हें नियमित रोजग़ार नहीं मिल पाया. इन्हें सरकारी मदद मिलनी चाहिए.” ‘सोदान सिंह व अन्य बनाम एनडीएमसी (1989)’ मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है- “अगर ठीक से नियमित किया जाए, तो कठिन परिस्थितियों में, सडक़ों के किनारे फुटपाथ पर सामान बेच रहे ये छोटे-छोटे दुकानदार, बहुत कम क़ीमत पर, घर की ज़रूरी वस्तुएं उपलब्ध करा कर, लोगों की सुविधाओं और उनके आनंद में बहुत वृद्धि कर सकते हैं. एक आम आदमी, जिसकी आय बहुत कम है, जब दफ़्तर से घर जा रहा होता है, तब वह दूर बाज़ार में जाए बगैर, अपनी ज़रूरतों की चीजें वहीं सडक़ किनारे खऱीद सकता है. संविधान की धारा, 19(1) जी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति रेहड़ी-पटरी पर नियमित रूप में अपना व्यवसाय कर रहा है, तो उसके अधिकार को इस बहाने नहीं छीना जा सकता कि सडक़ किनारे रेहडिय़ां, वहां से गुजरने वाले लोगों के लिए असुविधा कर रही हैं.”

4 मार्च 2014 को यूपीए सरकार ने, ‘रेहड़ी-पटरी दुकानदार (जीवन यापन तथा रेहड़ी-पटरी व्यापार का संरक्षण) क़ानून 2014’, पास किया था, जो रेहड़ी-पटरी व्यापार को ना सिर्फ मान्यता देता है, बल्कि इन छोटे दुकानदारों के व्यापार को वैधानिक आधार भी प्रदान करता है. उसी एक्ट के बाद, ‘रेहड़ी-पटरी ज़ोन’ बनाने का अभियान चला और बैंकों ने रेहड़ी-पटरी दुकानदारों को छोटे-छोटे ऋण देने शुरू किए. बाटा चौक के इन गऱीब दुकानदारों ने भी दस-दस हज़ार के ऋण लिए और उनका भुगतान भी नियमित रूप से कर रहे हैं. बाटा चौक के रेहड़ी-पटरी वाले मज़दूर दुकानदारों ने सबसे पहले अपने संघर्ष के औज़ार अपना संगठन, ‘रेहड़ी पटरी विकास संघ’ का गठन किया और 17 दिसंबर 2021 को, उपायुक्त फऱीदाबाद को ज्ञापन देकर, 2014 की स्ट्रीट वेंडर पालिसी के तहत, अपने क्षेत्र को ‘वेंडर जोन’ बनाने की प्रार्थना की. लेकिन भाजपा की मौजूदा सरकार ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह पलटने का अभियान बहुत आक्रमक रूप से चलाया हुआ है.

कुछ दिन से, इस क्षेत्र में अपनी गुजर-बसर कर रहे लोगों के खोखे, टपरियां एक योजना के तहत तोड़ी जा रही हैं. क्षेत्र के गऱीब लेकिन जागरुक और संघर्षशील दुकानदार नगर निगम फरीदाबाद की मंशा समझ गए. उन्होंने अपने संगठन के प्रधान, दीन दयाल गौतम के नेतृत्व में लडऩे का फैसला किया. साथ ही फरीदाबाद में मज़दूर वर्ग से प्रतिबद्धता रखने वाले संगठनों से अपील की कि वे उनके आन्दोलन में शरीक हों.

गऱीबों के ‘ग़ैरकानूनी अतिक्रमण’ से सरकारी संपत्ति को मुक्त कराने के दमनकारी अभियान में, रेलवे की ज़मीन ख़ाली कराना, सरकार के एजेंडे में पहले नंबर पर है. रेलवे लाइन के किनारे, ख़ाली पड़ी जमीन पर मज़दूर, दशकों से रहते आए हैं क्योंकि वे किसी भी शहर में, किसी भी जगह, एक बाथरूम बनाने लायक़ ज़मीन का टुकड़ा भी क़ानूनी रूप से खऱीदने लायक नहीं है। 70 सालों में जो नहीं हुआ, वो अब हो रहा है. इससे आम जन-मानस में ये चर्चा विश्वसनीय लग रही है कि भाजपा सरकार इसलिए रेलवे की ज़मीन को ख़ाली कराना चाहती है जिससे रेलवे का निजीकरण होने के बाद, सरकार के लाड़ले धन्ना सेठों को कोई असुविधा ना हो.

बाटा चौक के ये मज़दूर-दुकानदार लड़ाकू हैं और संगठित हैं. इसलिए, उनके उजडऩे का खतरा फि़लहाल टल गया, लेकिन अगर वे, ये सोचकर बे-ख़बर हो जाएँगे कि हमेशा के लिए सुरक्षित हो गए, तो ये उनकी बहुत बड़ी भूल होगी. मौजूदा फ़ासिस्ट हुकूमत, जन-आक्रोश के हिंसक हो जाने के डर से पीछे हटती तो है, लेकिन रणनीतिक तौर पर ही. वह अपने ‘असल प्रोजेक्ट’ को छोड़ती कभी नहीं. गऩीमत है, बाटा चौक के साहसी दुकानदारों की तहरीक का नेतृत्व ये बात समझता है. अपनी रोज़ी-रोटी बचाने के संघर्ष के इस दौर की क़ामयाबी के लिए उन्हें बधाई, इस शर्त पर ही दी जा सकती है कि वे भविष्य में भी इसी तरह जागरुक रहेंगे, और तोड़-फोड़ की विध्वंसात्मक सरकारी परियोजना को रोकने में वे फऱीदाबाद और देश के मेहनतकशों के सामने एक मिसाल क़ायम करेंगे.

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Mazdoor Morcha
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