करनाल (शांडिल्य) तमाम कानून-कायदों को ताक पर रखते हुए जिस बेशर्मी से, राजस्थान के पत्रकारों के सामने खट्टर ने कानून को परिभाषित किया है उसका स्वागत तो तमाम आपराधिक प्रवृति के लोग करेंगे ही। उनकी परिभाषा के अनुसार तो पुलिस को किसी भी महिला की शिकायत पर, किसी भी आरोपित के खिला$फ बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण आदि का मुकदमा दर्ज ही नहीं करना चाहिये। शिकायत मिलने पर एफआईआर दर्ज करने व आरोपित को गिरफ्तार करने की अपेक्षा शिकायतकर्ता महिला को ही चक्कर कटाने चाहिएं और उसी से तमाम सबूत एकत्र कराने चाहियें।
सवाल यह भी बनता है कि खट्टर ने कानून की जो परिभाषा संदीप के इस मामले में दी है क्या यह केवल इसी मामले के लिये है अथवा पूरे राज्य की जनता पर भी लागू होगी? यदि खट्टर जी ऐसा कर दें तो तमाम अपराधी प्रवृति वालों की बल्ले-बल्ले हो जायेगी। फिर तो वे पूरी तरह से बेखौफ होकर खुला खेल फरूखाबादी खेलेंगे। इससे बेटी बचाओ, बेटी पढाओ का नारा देने वाली भाजपा सरकार की पोल भले ही खुल जाये परन्तु लोफरगिरी करने वाले तमाम लफंटर तो मोदी के परमानेंट वोट बैंक बन ही जायेंगे।
वैसे यदि खट्टर जी चाहें तो अपने मंत्रियों विधायकों एवं लगुओं-भगुओं के लिये एक कानून बनाकर उन्हें विशेषाधिकार भी प्रदान कर सकते हैं जिसके अनुसार उन पर कोई भी आपराधिक धारा लागू ही नहीं हो सकेगी।
जनता ने उन्हें पांच साल के लिये चुन कर विधानसभा में जब हर तरह का कानून बनाने का अधिकार दे रखा है तो ऐसा कानून भी उन्हें बनाने से भला कौन रोक सकता है? फिर उन्हें किसी को बचाने के लिये गैरकानूनी एसआईटी गठित करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।