अंधविश्वास : भूतप्रेत का भ्रम एक मानसिक रोग

अंधविश्वास : भूतप्रेत का भ्रम एक मानसिक रोग
February 05 16:11 2024

भय का भूत होता है, वास्तविकता का नहीं. भ्रामक धारणाओं व अंधविश्वास के वशीभूत हो कर भूतप्रेत की कल्पना कैसे मानसिक रोगों को जन्म देती है, जानें. बिहार के चैनपुर रोड पर एक राजा के पुराने किले में बना हरसू ब्रह्मा जिला मुख्यालय भसुआ से 10 किलोमीटर दूर है. चैत्र नवरात्र को यहां हजारों लोग जमा होते हैं जिन में वे औरतें ज्यादा होती हैं जिन पर देवी या माता आर्ई होती है. तरहतरह के स्वांग करती इन औरतों में कुछ को तो बांध कर भी लाया जाता है.

मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऔर्डर की शिकार ये औरतें असल में घरों में बेहद कुंठित रहती हैं और दूसरों की नजर में चढऩे के लिए तरहतरह के स्वांगों को करने लगती हैं जो इन्होंने खुद बचपन से देखे हैं. मेंहदीपुर के बालाजी महाराज मंदिर की भी ऐसी ही पूछ है जहां जाने से मरीज का भूत उतर सकता है और गांव वाले ही नहीं, शहरी भी इस में बहुत उत्साह व उम्मीद से हिस्सा लेने को सालभर आते हैं. गुजरात में हजरत सैयद मीरा दातार दरगाह में जाओ तो वहां भी चीखतेचिल्लाते लोग दिखेंगे जिन पर साया चढ़ा हुआ माना जाता है.

राजस्थान में तो अगस्त 2022 में एक 7 साल की लडक़ी की बलि 16 साल की बहन ने ले ली और कहा कि मरते समय उस पर देवी आई हुई थी और देवी ने कहा था कि वह सब को मार कर खा जाएगी. पुलिस अब खानापूर्ति कर रही है और लडक़ी बालगृह में है. यह आम बात है कि किसी गांव की गली या कसबे के महल्ले की कोई महिला अचानक चीखनेचिल्लाने लगती है, इधर से उधर दौड़ती है और खुद को किसी देवी का रूप बताने लगती है. उस की इस तरह की हरकत को तुरंत भूतबाधा मान कर गांव के ही एक झाडफ़ूंक करने वाले को बुला लिया जाता है. वह आते ही उस रोगी महिला को आग के सामने बैठा देता है और आग में ढेरों मिर्च झोंक कर महिला से कुछ सवाल पूछता है.

महिला की आंखों में मिर्च से असहाय वेदना होती है और वह तड़प उठती है. जब इस से कोई लाभ नहीं होता, वह ओझा लोहे के सरिए को आग में गरम कर के रोगी के हाथ व पैरों पर रख देता है. इस सब से रोगी बेहोश हो जाती है. ऐसी ही एक महिला रोगी जब इलाज के लिए आई तो उस के शरीर पर गहरे घाव थे. कई दिनों से कुछ भी न खाने से शरीर जीर्ण था. रोगी की जांच व मानसिक स्थिति का जायजा लेने के बाद शुरू में उसे इंजैक्शन के जरिए दवाएं दी गईं, बाद में वह मुंह से दवा खाने लगी. केवल 2 सप्ताह तक दवाएं खाने पर उस की स्थिति में व्यापक सुधार हुआ. इस के बाद उस के परिवार व आसपास के वातावरण में मौजूद तनावभरे माहौल का भी अध्ययन किया गया.

परिवार में आपसी रिश्तों में बहुत अधिक तनाव पाया गया. परिवार के सभी लोगों को एकसाथ बैठा कर समझाया गया. इस तरह इलाज के दौरान रोगी को जांच के लिए बुला कर देखा जाता रहा जिस में वह पूरी तरह स्वस्थ व खुश पाई गई. ऐसे ही एक कमजोरी की निशानी मान कर एक बच्चे का स्कूल छुड़वा दिया गया और ऊपरी हवा या भूत का असर मान कर उस का उपचार किया गया. इस से हुआ कुछ नहीं और न दौरा पडऩा कम हुआ. बच्चा जब परामर्श के लिए डाक्टर के पास लाया गया तो लगभग 3 साल से वह स्कूल नहीं गया था. कारण, कभी भी दौरे आ जाते थे, सिर पर बारबार गिरने से चोट के निशान भी थे. बच्चे के मांबाप को कई सालों तक लगातार दवा देने के लिए राजी करना कठिन काम था.

जब उन की मुलाकात इसी तरह के एक दूसरे रोगी से कराई गई जो पिछले 3 साल से नियमित दवा ले रहा था और पूरी तरह से दौरे से मुक्त था तो उन्होंने भी दवा के लिए अपनी सहमति दे दी. उस बच्चे को दवा लेने के साथ एक भी दौरा नहीं आया और उस की पढ़ाईलिखाई सामान्य हो गई. एक संभ्रांत महिला अपने पति व बच्चों के साथ एक पौश कालोनी में रहती है. कुछ दिनों से वह कुछ अजीब सा अनुभव करती है, मसलन उस के सामने वाले फ्लैट के लोग उस की हर गतिविधि को गौर से देखते हैं, उस का पीछा करते हैं और कई बार तो वे उस की बातों को दोहराते भी हैं.

धीरेधीरे उसे लगने लगा कि सामने घर वालों ने जगहजगह वीडियो कैमरे लगा रखे हैं. इन सब से उसे षड्यंत्र की बू आने लगी और इन भ्रामक आवाजों को हकीकत मान कर गालियां देने लगी. उस की इस हरकत से परेशान हो कर उस के घरवालों ने वह मकान बदल लिया पर नई जगह भी महिला को वही सब होने लगा तो इसे किसी ऊपरी बाधा का प्रकोप मान लिया गया और जम कर उस की झाडफ़ूंक करवाई गई. सलाह के लिए महिला डाक्टर के पास जब लाई गई तो कुछ दिनों पहले उस ने खानापीना छोड़ दिया था और दवा भी लेने को तैयार न थी. सभी को वह अपनी जान का दुश्मन मान रही थी.

महिला को पहले इलैक्ट्रोशौक ट्रीटमैंट दिया गया, फिर दवाएं शुरू की गईं. नतीजतन, 2 सप्ताह में वह महिला सामान्य हो गई. इन रोगियों के विवरण उन अधिकांश मानसिक रोगियों की कहानी कहते हैं जोकि उपचार तक पहुंचने से पहले भूतप्रेत के व्याप्त अंधविश्वास के कारण शारीरिक यातनाएं व आर्थिक नुकसान झेल चुके होते हैं. क्या कहते हैं विशेषज्ञ मानसिक रोग विशेषज्ञों का मानना है कि 60 से 70 प्रतिशत मानसिक रोगी चिकित्सालय पहुंचने से पहले झाडफ़ूंक का सहारा ले चुके होते हैं. इंसान दिमागी तौर पर किस प्रकार भ्रामक धारणाओं से पीडि़त है, इस का उदाहरण है भूतप्रेत में उस का विश्वास, जो पढ़ेलिखों, अनपढ़ों, शहरियों व ग्रामीणों में समानरूप से व्याप्त है.

भूतप्रेत केवल कल्पना होने पर भी इतना सशक्त भ्रम है कि इसे इंसान हमेशा से सच मानता आ रहा है. दरअसल मानसिक रूप से असंयमित व्यवहार करने वाले व्यक्ति को भूत से पीडि़त करार दे दिया जाता है, जबकि इस अवस्था में रोगी कुछ का कुछ बोलता है तो झाडफ़ूंक करने वाले भूत का भ्रम पैदा कर रोगी को तरहतरह का शारीरिक कष्ट दे कर अपनी बातों का उत्तर हां में देने को मजबूर कर देते हैं. वास्तव में ऐसा व्यक्ति न तो ढोंग कर रहा होता है न ही किसी तरह की हवा के प्रभाव में होता है.

भूतपीड़ा जहां रोगी के लिए असहनीय है वहीं इस के सहारे अपनी रोटियां सेंकते लोगों के लिए यह लोगों की जेब पर डाका डालना है. कुछ पत्रपत्रिकाएं भी कई बार भूतों पर विशेषांक निकाल कर केवल मनगढ़ंत बातों के आधार पर सस्ता बिकाऊ माल तैयार कर लेती हैं. मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने अपने अथक प्रयासों से मानव मस्तिष्क के उस भाग की ओर ध्यान खींचा, जो इंसान की चेतन्यता से सुप्त पड़ा रहता है. मानव के इस अवचेतन मन में कुंठाओं, हीनभावनाओं, पश्चात्तापों, इच्छाओं का भंडार जमा रहता है. ये संवेदनशील भावनाएं सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक कारणों से बाहर नहीं आ पातीं तथा मन में धीरेधीरे इन्हें भुलाने की प्रक्रिया चलती रहती है. इन में जिन भावनाओं की संवेदनशीलता अधिक होती है वे अवचेतन मन में जा कर दब जाती हैं. चैतन्य अवस्था में मस्तिष्क किसी भी ऐसी भावना, जो प्रचलित मान्यताओं व आचरण के खिलाफ हो पर नियंत्रण रखता है. यही अंकुश भावनाओं के दबाव के प्रबल होने पर उन्हें नियंत्रित कर पाने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाता.

ऐसी स्थिति में भावनाएं विस्फोट के रूप में बाहर आती हैं. इन्हीं भावनाओं के बाहर आने से शरीर में अत्यधिक ऊर्जा पैदा होती है जोकि कई प्रकार के हार्मोन स्रावित होने के कारण होती है. इस में शरीर कांपने लगता है, होंठ फडफ़ड़ाने लगते हैं, कुछ समय के लिए जोश इतना बढ़ जाता है कि उस में किसी का भी सामना करने की हिम्मत आ जाती है. इस स्थिति को भूत या प्रेत पीड़ा जान कर लोग झाडफ़ूंक का सहारा लेते हैं. इस तरह की मानसिक अवस्था को मैडिकल शब्दावली में हिस्टेरिकल साइकोसिस कहा जाता है. इस के बारे में जानने के लिए मस्तिष्क की सामान्य गतिविधि के लिए जिम्मेदार जैव रासायनिक पदार्थों की जानकारी आवश्यक है. जैव रासायनिक पदार्थों को न्यूरोट्रांसमीटर कहते हैं. दरअसल इंसान के मस्तिष्क में कुछ ऐसे पदार्थ हैं जिन के असंतुलित हो जाने से मस्तिष्क में विचार, भावनाएं, तर्क, बौद्धिकता व संवेदनशीलता प्रभावित होती है तथा व्यवहार असंतुलित व असंगत हो जाता है.

ये न्यूरोट्रांसमीटर मनोवैज्ञानिक दबावों के अलावा आनुवांशिक व वातावरण प्रदूषण जैसे कारणों से भी असंतुलित हो जाते हैं. आधुनिक अनुसंधान से अब तक कई ऐसे न्यूरोट्रांसमीटर्स का पता लगा लिया गया है जिन के बढऩे या घटने से तरहतरह की मानसिक शिकायतें होती हैं और इसी का नतीजा है कि न्यूरोट्रांसमीटर के असंतुलन को दूर करने के लिए अत्यधिक प्रभावशाली दवाएं अब आसानी से उपलब्ध हैं. दवाओं के अलावा इलैक्ट्रिक शौक थेरैपी भी एक कारगर उपाय है. व्यक्तिगत तथा पारिवारिक कारणों से पैदा होने वाले तनाव ही खासतौर से ऐसे कारक हैं जिन्हें कम कर के इस रोग को होने से रोका जा सकता है.

तनाव की स्थिति को अपने ऊपर हावी न होने देना रोकथाम की ओर प्रथम कदम माना जा सकता है. इंसान खुद ही तनाव का सामना सफलतापूर्वक करने में असफल रहता है.
ऐसे में मानसिक रोग विशेषज्ञ से सलाह लेने में संकोच नहीं करना चाहिए. तनाव बहुतकुछ व्यक्ति के गलत दृष्टिकोण या किसी समस्या के गलत ढंग से सामना करने से पैदा होता है. चिकित्सक इन हालात का सही विश्लेषण कर के उस का उचित निराकरण बताने का कार्य करते हैं. साइको थेरैपी मानसिक रोगी को दवाओं व इलैक्ट्रिक शौक दिलाने के बाद लंबे समय तक के लिए साइको थेरैपी दी जानी सहायक होती है. इस में तनावपूर्ण स्थिति का सामना अधिक सक्षमता से करना सिखाया जाता है, रोगी को अपने वातावरण से सही तालमेल बैठाने के बारे में बताया जाता है.

इस थेरैपी में रोगी की समस्याओं को गलत ढंग से देखने के तरीकों को बदला जाता है. परिवार के सदस्यों को एकसाथ बैठा कर परिवारजनिक तनावों को कम किया जाता हैं. इस प्रकार मानसिक तनाव को कम कर के इस रोग की पुनरावृत्ति को कम किया जाता है. मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं अभी हर जिले में संभव नहीं है, फिर भी ज्यादातर जिलों में अब ये सेवाएं उपलब्ध हैं. आश्चर्य तो यह है कि भारत में हृदय की बाइपास सर्जरी तथा अंग प्रत्यारोपण का दौर चल रहा है, ऐसे में मानसिक रोग के लिए झाडफ़ूंक का उपयोग किया जाना शर्म की बात है.
(साभार – सरिता पत्रिका)

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Mazdoor Morcha
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