फरीदाबाद (म.मो.) सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे व अवैध निर्माण नगर निगम के छोटे से लेकर बड़े अधिकारी तक की लूट कमाई का एक बड़ा स्रोत है। भीतरी जानकारी रखने वाले सूत्र बताते हैं कि इस तरह के हो रहे निर्माणों में कहीं निगम पार्षद तो कहीं निगमकर्मी का बेनामी हिस्सा-पत्ति रहती है। शहर की बिल्डर लॉबी बड़े ही संगठित तरीके से निगमकर्मियों के साथ मिल-जुल कर अवैध निर्माण का धंधा चलाती है।
बड़े भारी खर्चे पर पाल-पोस कर रखा गया तोड़-फोड़ दस्ता वास्तव में तोड़-फोड़़ के लिये नहीं केवल सम्बन्धित लोगों को नगर निगम की शक्तियों का अहसास कराने के लिये रखा गया है, इसमें पुलिस की फजीहत मुफ्त में ही हो जाती है। शहर भर में शायद ही कोई ऐसा निर्माण हो जिसे इस दस्ते ने तोडऩे का नाट्क किया हो और वह आज भी पूरी तरह से सही-सलामत बन कर आबाद न हो गया हो। तोड़-फोड़ के नाम पर इमारत का छोटा-मोटा हिस्सा तोड़ दिया जाता है जो मुरम्मत के बाद एकदम ठीक हो जाता है। इस जरा से नुक्शान से बिल्डर को बचाने के लिये ‘सीलिंग’ का नया फंडा शुरू कर दिया गया है। लेकिन यह फंडा केवल उन्हीं पर लागू होता है जिन पर निगम अफसर ज्यादा ही मेहरबान हों। सील लगने का तो पता लगता है, लेकिन कब और कैसे खुल गई पता ही नहीं चलता।
बीते तीन सप्ताह में एनएच दो-तीन में कुछ पांच मंजिला नवनिर्मित एवं निर्माणाधीन इमारतों की तोड़-फोड़ का नाट्क किया गया था, जिनका विवरण गतांकों में दिया जा चुका है। इन्हीं में से एक-दो को सील भी कर दिया गया था तथा एक इमारत का नक्शा पास हुआ बताकर, पूरी तरह से छोड़ दिया गया।
इस सारे खेल में सबसे ज्यादा जोखिम उस व्यक्ति का होता है जो अपने रहने के लिये उस अवैध इमारत को खरीदता है, क्योंकि अवैध तो हमेशा अवैध ही रहेगा जिसे कभी भी कोई अधिकारी आकर तोड़ सकता है अथवा तोडऩे की धमकी दे सकता है। ऐसे में भुगतना तो उस खरीदार को ही परता है जिसने अंजाने में उसे खारीद लिया होता है। बिल्डर तो अपना मुनाफ लेकर पार हो जाता है।
फुटपाथों पर कब्जे बरकरार हैं बीते करीब सात-आठ माह से निगमायुक्त जशपाल यादव बड़े जोर-शोर से तडक़-फडक़ रहे थे। स्वयं बाजारों में घूम-घूम कर दुकानों के आगे से सामान उठवा कर सडक़ों को चलने लायक बनाने का दावा कर रहे थे। जब कभी वे नींद से जागते हैं अथवा अपनी शक्ति का अहसास करवाना होता है तो वे एक झटके में हल्ला बोल कर सामान उठवा देते हैं। लेकिन अगले ही दिन से यथा स्थिति पुन: बहाल हो जाती है। एनएच दो की मुख्य सडक़ पर एक दिन के लिये भी कभी झटका नहीं लगता। यहां दसियों छोटी-छोटी दुकानों में बैठे दुपहिया वाहन विक्रेताओं ने दस-दस फीट सडक़ घेर कर अपने वाहन ऐसे खड़े कर रखे हैं जैसे शो-रूम में खड़े हों। लगता है नगर निगम के साथ इनकी कोई बड़ी डील हो रखी है।