अटल लाइब्रेरी के नाम पर हो गई 2.80 करोड़ रुपयों की बंदरबांट

अटल लाइब्रेरी के नाम पर हो गई 2.80 करोड़ रुपयों की बंदरबांट
June 30 08:04 2024

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) भाजपा की दस साल की सरकार में एक के बाद एक गबन व घोटाले खुल रहे हैं। सेक्टर 12 स्थित टाउन पार्क में लाइब्रेरी बनाने के नाम पर डूडा के भ्रष्ट अधिकारियों ने 280 लाख से भी अधिक की रकम की बंदरबांट कर डाली। काम के नाम पर लाइब्रेरी की आधी अधूरी इमारत बना कर छोड़ दी गई। लाइब्रेरी तो बन कर तैयार हुई नहीं लेकिन घटिया निर्माण सामग्री लगाए जाने के कारण पांच साल में ही यह इमारत इस्तेमाल योग्य नहीं रह गई। अब इसे दोबारा बनाने के लिए 2 करोड़ 83 लाख रुपये का एस्टीमेट तैयार किया गया है। हूडा के मुख्य प्रशासक टीएल सत्य प्रकाश ने घोटाला पकड़ा और एस्टीमेट को नामंजूर करते हुए संबंधित अधिकारियों के खिलाफ रूल सात के तहत कार्रवाई करने का आदेश जारी किया है। पहली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे विपुल गोयल ने 25 दिसंबर 2018 को सेक्टर 12 स्थित टाउन पार्क में भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की स्मृति में लाइब्रेरी भवन की नींव रखी थी। 1 करोड़ 55 लाख रुपये कीमत की यह लाइब्रेरी हूडा द्वारा एक साल में बनवाई जानी थी। टेंडर कोह कंस्ट्रक्शन नाम की कंपनी को दिया गया था। लाइब्रेरी का शिलान्यास तो कर दिया गया लाइब्रेरी जिस जगह बनाई जानी थी वहां 25 पेड़ थे। इन पेड़ों को काटा जाए या शिफ्ट किया जाए यही तय करने में हूडा के निकम्मे अधिकारियों ने एक साल निकाल दिया। नवंबर 2019 म तय हुआ कि पेड़ यहां से उखाड़ कर सेक्टर 13 नर्सरी में शिफ़्ट किए जाएंगे। अभी काम शुरू भी नहीं हुआ लेकिन काम के नाम पर लाखों रुपये खर्च कर दिए गए।

नवंबर 2019 में तत्कालीन एसई राजीव शर्मा और एक्सईएन जोगीराम ने छह महीने में लाइब्रेरी का काम पूर्ण कराने का दावा किया था, ठेकेदार फर्म कोह कंस्ट्रक्शन ने निर्माण कार्य शुरू किया लेकिन धन चुक गया। काम पूर्ण करने के लिए तत्कालीन हूडा एडमिनिस्ट्रेटर गरिमा मित्तल की अध्यक्षता वाली लोअर वर्क्स कमेटी ने 98.6 लाख रुपये के अतिरिक्त एस्टीमेट को स्वीकृति दी। इस धन का भी बंदरबांट हो गया लेकिन लाइब्रेरी बन कर तैयार नहीं हो सकी। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार और धन की बंदरबांट करने के लिए 2019 में आवंटित काम में कुछ और काम जोड़ कर एस्टीमेट 2 करोड़ 80 लाख रुपये पहुंचा दिया गया। धन भी आवंटित हुआ लेकिन काम पूर्ण नहीं किया गया। हालांकि लाइब्रेरी की इमारत बन गई लेकिन उसमें न तो दरवाजे लगे, न इलेक्ट्रिक वायरिंग हुई और न ही कोई फर्नीचर लगाया गया। बताया जाता है कि 2021-22 में ठेकेदार अधूरा काम छोड़ कर चलता बना। इसके बाद हूडा के अधिकारियों ने भी कोई सुध नहीं ली। नतीजा ये हुआ कि यह इमारत नशेबाजों और अपराधियों का अड्डा बन गई।

अब विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है तो सरकार को भूले बिसरे विकास कार्यों की याद आ रही है। नेता लाइब्रेरी का उद्घाटन करने का लालायित नजर आ रहे हैं। लाइब्रेरी पूर्ण करने के नाम पर हूडा के भ्रष्ट अधिकारी भी बहती गंगा में हाथ धोने के लिए एक बार फिर तैयार हो गए। लाइब्रेरी पूर्ण करने के लिए 2 करोड़ 83 लाख रुपये का नया एस्टीमेट मार्च 2024 में बना कर पंचकूला स्थित हूडा मुख्यालय भेज दिया। बताया जा रहा है कि मुख्य प्रशासक टीएल सत्य प्रकाश के सलाहकार आरके गर्ग ने उन्हें लाइब्रेरी के नाम पर बीते पांच साल में करीब 280 लाख रुपयों की लूट किए जाने की जानकारी दी।

मुख्य प्रशासक ने नाराजगी जताते हुए सचिव हूडा को इस अपराध में लिप्त सभी संबंधित अधिकारियों के खिलाफ रूल सात के तहत चार्ज शीट जारी करने का आदेश दिया है। हूडा सूत्रों के अनुसार इस मामले में पूर्व प्रशासक गरिमा मित्तल के साथ ही एसई राजीव शर्मा, एक्सईएन जोगीराम व मनोज सैनी की जवाबदेही तय की जा सकती है लेकिन सब औपचारिकता में ही निबटा दिया जाएगा, किसी पर कोई आंच नहीं आने वाली। सूत्रों के अनुसार अधिकारियों की बेगुनाही साबित करने के लिए गोलमोल जवाब पहले से ही तैयार हैँ। इसके तहत दिसंबर 2018 के प्रोजेक्ट में नेताओं के कहने पर बार बार प्रोजेक्ट में कुछ न कुछ बढ़ाना पड़ा जैसी बातें कहीं जाएंगी। जैसे इमारत में पत्थर की जगह टाइल्स, व फर्नीचर आदि का प्रावधान बाद में नेताओं के कहने पर या आवश्यकता के अनुसार बदलाव करना पड़ा जिससे कीमत में भी बढ़ोत्तरी होती गई।

यदि इस तर्क को मानें तो इसका अर्थ ये हुआ कि दिसंबर 2018 में लाइब्रेरी का शिलान्यास बिना डीपीआर बनाए ही कर दिया गया था। यदि डीपीआर बनी होती तो उसमें इमारत, वायरिंग-लाइटिंग, पेयजल आपूर्ति और सीवेज निकासी, फर्नीचर आदि की भी व्यवस्था होती। लेकिन लगता है कि विपुल गोयल ने सस्ती लोकप्रियता बटोरने के उद्देश्य से बिना किसी तैयारी के लाइब्रेरी की नींव का पत्थर रख दिया था जिसका बजट भी शायद तब पास नहीं हुआ था तभी तो एक साल बाद भी काम शुरू नहीं हो सका था। लाइब्रेरी तो अब भी नहीं बनेगी, न ही भविष्य में इसके बनने के कोई आसार नजर आ रहे हैं। अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट जारी करने का आदेश केवल जनता के बीच सरकार की छवि चमकाने की कोशिश है कि मुख्यमंत्री सैनी लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त हैं।

यदि मुख्य प्रशासक को कार्रवाई ही करनी होती तो एक साल का प्रोजेक्ट पांच साल में भी तैयार नहीं होने पर ठेकेदार कंपनी पर जुर्माना लगाते, दोषी अधिकारियों के खिलाफ सीधे कार्रवाई करते। रूल सात की चार्जशीट तो केवल दिखावा मात्र बन कर रह गई है, अनेक मामले ऐसे हैं जिनमें चार्जशीट तो जारी कर दी गई लेकिन न तो जांच पूरी हुई और न कोई कार्रवाई, इस मामले में भी ऐसा ही होगा।

यहां समझने वाली बात यह भी है कि निर्माण स्थल को हूडा प्रशासक अपनी सीट पर बैठे बैठे ही देख सकते हैं, लेकिन देख तो तब न जब नीयत साफ हो, तभी तो पांच साल तक किसी ने उसे देखने की जरूरत नहीं समझी। दूसरी बड़ी बात यह है कि निर्माण स्थल के लिए वही जगह चिह्नित की गई जहां 25 दरख्त खड़े थे, क्या इस पूरे पार्क में कोई अन्य ऐसी जगह नहीं थी जहां वृक्षों को बरबाद किए बगैर पुस्तकालय का निर्माण किया जा सकता था ? बड़े पेड़ों को उखाड़ कर नर्सरी तक ले जाना भी एक बड़ा ड्रामा है। जिस पर लाखों रुपये के वारे न्यारे आसानी से हो जाते हैं। पेड़ तो कोई बचता नहीं है पर इस खेल तमाशे में संबंधित लोगों की जेबें अवश्य भर जाती हैं।

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Mazdoor Morcha
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